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मेजर रामास्वामी परमेश्वरन (Major Ramaswamy Parameswaran)

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विषय सूची

Major Ramaswamy Parameswaran
Major Ramaswamy Parameswaran

नाम:- मेजर रामास्वामी परमेश्वरन (Major Ramaswamy Parameswaran)

Father’s Name :- KS RAMASWAMY

Mother’s Name :- NA

Domicile :- Mataura Maharashtra

जन्म:- 13 सितम्बर 1946

जन्म भूमि :- बम्बई (अब मुम्बई), महाराष्ट्र

शहादत :- 25 नवम्बर 1987 (उम्र 41)

शहादत स्थान :- श्रीलंका

सेवा/शाखा :- भारतीय थल सेना

सेवा वर्ष :- 1972-1987

रैंक (उपाधि) :- मेजर

सेवा संख्यांक(Service No.) :- IC-32907

यूनिट :- 8 महार रेजिमेंट

युद्ध/झड़पें :- श्रीलंका सिविल वॉर, ऑपेरशन पवन

सम्मान :-  परम वीर चक्र (1987)

नागरिकता :- भारतीय

अन्य जानकारी :– सन् 1987 से 1990 तक श्रीलंका में विश्व स्तर पर शांति बनाए रखने के लिए ‘ऑपरेशन पवन’ मिशन चला, जिसमें भारतीय सेना के वीर मेजर रामास्वामी परमेस्वरन् ने शांति विरोधी तत्वों के हाथों अपने प्राण गँवाए।

जीवन परिचय

मेजर रामास्वामी परमेस्वरन् (Major Ramaswamy Parameswaran) का जन्म 13 सितम्बर 1946 में बम्बई में हुआ था। सेना में कमीशंड अधिकारी के रूप में वह महार रेजिमेंट में 16 जनवरी, 1972 को आए थे। उन्होंने मिजोरम तथा त्रिपुरा में युद्ध में भाग लिया था। वह अपने स्वभाव में अनुशासन तथा सहनशीलता के कारण बहुत लोकप्रिय अधिकारी थे और उन्हें उनके साथी ‘पेरी साहब’ कहा करते थे।

तमिल ईलम की माँग

श्रीलंका में शांति भंग की समस्या की जड़ में वहाँ के निवासी सिंघली तथा तमिलों के बीच का द्वन्द्व है। तमिल लोग वहाँ पर अल्पसंख्यकों के रूप में बसे हैं। आंकड़े बताते हैं कि तमिल श्रीलंका की कुल आबादी का केवल 18 प्रतिशत हिस्सा हैं और श्रीलंका की सिंघली बहुल सरकार की ओर से तमिलों के हितों की अनदेखी होती रही है। इससे तमिलों में असंतोष की भावना इतनी भरती गई कि उसने विद्राह का रूप ले लिया और वह स्वतंत्र राज्य तमिल ईलम की माँग के साथ उग्र हो गया। स्पष्ट है कि श्रीलंका इस प्रकार की उग्र तथा विघटनकारी भावना का दमन करती।

इस दमन चक्र का परिणाम यह हुआ कि श्रीलंका से तमिल नागरीक बतौर शरणार्थी भारत के तमिलनाडु में भागकर आने लगे। यह स्थिति भारत के लिए अनुकूल नहीं थी। ऐसे में 29 जुलाई, 1987 को भारत और श्रीलंका के बीच एक अनुबंध हुआ, जिसमें श्रीलंका के कई तमिल प्रतिनिधि भी साथ लिए गए। इस अनुबंध के अनुसार भारत की इण्डियन पीस कीपिंग फोर्स (IPKF) का श्रीलंका जाना तय हुआ जहाँ वह तमिल उग्रवादियों का सामना करते हुए वहाँ शांति बनाने का काम करें ताकि श्रीलंका से भारत की ओर शरणार्थियों का आना रुक जाए।

टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (LTTE)

इस IPKF अर्थात् भारतीय शांति सेना ने सभी उग्रवादीयों से हथियार डालने का दवाब वनाया, जिसमें वह काफ़ी हद तक सफल भी हुई लेकिन तमिल ईलम का उग्रवादी संगठन LTTE अर्थात् टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम इस काम में कुटिलता बरत गया। उसने पूरी तरह से हथियार न डाल कर अपनी नीति बदल ली और उन्होंने आत्मघाती दस्तों का गठन करके गोरिल्ला युद्ध शिल्प अपना लिया। 5 अक्टूबर, 1987 को टाइगर्स की ओर से ऐसा ही कृत्य देखने को मिला। ऐसी स्थिति में भारत की शांति सेना की भूमिका बदल गई। खुद को टाइगर्स के हमले से बचने के लिए उन्हें भी सतर्क योद्धा का तरीक़ा अपनाना पड़ा और वहाँ भी युद्ध जैसी स्थिति आने से बच नहीं पाई।

ऑपरेशन पवन

इसी शांति सेना की भूमिका में 8 महार बटालियन से मेजर रामास्वामी परमेस्वरन् (Major Ramaswamy Parameswaran) श्रीलंका पहुँचे थे। उनके साथ 91 इंफेंटरी ब्रिगेड तथा 54 इंफेंटरी डिविजन था और उनके इस लक्ष्य का नाम ‘ऑपरेशन पवन’ दिया गया था। यह ग्रुप 30 जुलाई, 1987 को ही, यानी अनुबंध होने के अगले ही दिन श्रीलंका पहुँचा था और जाफ़ना पेनिनसुला में तैनात हुआ था वहाँ पहुँचते ही इन्हें कई मोर्चों पर टाइगर्स का सामना करना पड़ा था, जिनमें मरुथनामादास, तथा कंतारोदाई प्रमुख कहे जा सकते हैं।

24 नवम्बर, 1987 को इस बटालियन को, जिसकी अगुवाई मेजर रामास्वामी कर रहे थे, सूचना मिली कि कंतारोताई के एक गाँव में शस्त्र तथा गोलाबारूद का एक जखीरा किसी घर में उतारा गया है। सूचना मिलते ही कैप्टन डी. आर. शर्मा के साथ 20 सैनिकों का एक दल इस सूचना की सत्यता और उससे जुड़े तथ्य पता करने रवाना कर दिया गया। इस गस्ती दल पर, उस संदिग्ध घर के पास एक मन्दिर के परिसर से गोली बरसाई गई जिससे इस दल को भी गोलियां चलानी पड़ीं। उस समय भारत की बटालियन उडूविल में थी।

वहाँ इस दल ने सूचना भेजी कि संदिग्य मकान में टाइगर्स का अड्डा है और वहाँ इनकी गिनती हमारे अनुमान से कहीं ज्यादा है। इस सूचना के आधार पर मेजर रामास्वामी (Major Ramaswamy Parameswaran) तथा ‘सी’ कम्पनी के कमाण्डर ने यह तय किया कि इस स्थिति का मुकाबला नियोजित ढंग से किया जाना चाहिए। उन्होंने मजबूर गश्ती दल के साथ-साथ साढ़े 8 बजे कैप्टन शर्मा के दल के साथ मिलने के लिए कूच किया ताकि उस संदिग्ध मकान पर कार्यवाही की जा सके।

मेजर रामास्वामी का पूरा दल उस मकान के पास रात को डेढ़ बजे 25 नवम्बर 1987 को पहुँच गया। वहाँ कोई हलचल उन्हें नजर नहीं आई, सिवाय इसके कि एक ख़ाली ट्रक घर के पास खड़ा हुआ था। मेजर रामास्वामी (Major Ramaswamy Parameswaran) के दल ने उस मकान की घेरा बन्दी कर ली और तय किया कि सवेरे रौशनी की पहली किरण के साथ ही वहाँ तलाशी अभियान शुरू कर दिया जाएगा।

सुबह पाँच बजे तलाशी का काम शुरू हुआ लेकिन वहाँ कुछ भी नहीं मिला। आखिर वे लोग वापस चल पड़े। तभी मन्दिर के बगीचे से गोलाबारी शुरू हो गई। इस दल ने भी जवाबी कार्यवाही की। दुश्मन की अचानक गोलाबारी से इस दल का एक जवान मारा गया था और एक घायल हो गया था।

इस पर मेजर रामास्वामी (Major Ramaswamy Parameswaran) तथा कैप्टन शर्मा ने अपनी रणनीति तय की और उसके हिसाब से कार्यवाही शुरू की। इस दौरान मन्दिर की बगिया और वहाँ नारियल के झुरमुटों के बीच से दुश्मन गोलाबारी कर रहा था। इसी का सामना करते हुए जब मेजर रामास्वामी नारियल के बाग के सामने पहुँचे तो उनका सामना उग्रवादी टाइगर्स से हो गया और स्थिति आमने-सामने की मुठभेड़ की बन गई। तभी अचानक एक उग्रवादी की राइफल से छूट कर एक गोली सीधे मेजर रामास्वामी परमेस्वरन् (Major Ramaswamy Parameswaran) की छाती पर लागी।

यह एक प्राणघाती हमला था लेकिन रामास्वामी ने इसकी परवाह किए बगैर उस उग्रवादी से झपट कर उसकी राइफल छीनी और उसी दुश्मन का काम तमाम कर दिया। छाती पर गोली लगने से मेजर रामास्वामी परमेस्वरन् निढाल हो गए थे, तब भी वह साहस पूर्ण नेतृत्व क्षमता दिखाते हुए अपने दल को निर्देश देते रहे उनके दल ने फुर्ती से दुश्मन को घेर लिया था और दुश्मन भी समझ गया था कि अब वह आक्रामक रुख नहीं अपनाए रह सकता।

उसने तुरंत पैंतरा बदल और जंगल की तरफ भागने के लिए रुख किया, फिर भी भारत के, जवानों ने इनमें से छह उग्रवादी तमिल ईलमों को मार गिराया तथा उनसे तीन ए. के. 47 राइफल्स तथा दो रॉकेट लांचर्स हथिया लिए जिनमें बम भी लगे हुए थे। इस तरह से वीरतापूर्वक मेजर रामास्वामी परमेस्वरन् (Major Ramaswamy Parameswaran) श्रीलंका के ‘ऑपरेशन पवन’ में शहीद हो गए और उन्होंने भारत सरकार का युद्ध में दिया जाने वाला सर्वश्रेष्ठ सम्मान परमवीर चक्र प्राप्त किया। 25 नवम्बर, 1987 को 46 वर्ष की आयु में पराक्रमी रामास्वामी (Major Ramaswamy Parameswaran) वीरगति को प्राप्त हुए लेकिन उन्होंने देश के हित में एक आदर्श स्थापित किया।

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Major Ramaswamy Parameswaran
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