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देश को आजादी दिलाने के लिए देश के हर कोने से क्रांतिकारी देखने को मिलते है। जिस वक्त देश को आजादी के लिए सच्चे देशभक्तों की जरुरत थी उस समय इस जमीन पर सैकड़ो क्रांतिकारियों ने जन्म लिया। उस समय किसी को बताने की जरुरत नहीं थी की किस किस को क्रांतिकारी बनना चाहिए। सभी खुद से प्रेरित होकर क्रांतिकारी बनते थे और अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाते थे। पंजाब में भी कुछ ऐसे ही क्रांतिकारी हुए थे जिन्होंने देश को आजादी दिलाने में पूरा जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया था।
हमें पता है की गांधीजी ने अहिंसा के जरिये देश को आजादी दिलाई थी जिसके लिए उन्होंने असहकार और सविनय अवज्ञा जैसे आन्दोलन किया थे। लेकिन इस तरह के आन्दोलन का अंग्रेजो के खिलाफ हथियार के रूप में महात्मा गांधी से पहले भी एक क्रांतिकारी ने किया था। उस क्रांतिकारी ने असहकार और बहिष्कार का इस्तेमाल करके अंग्रेजो को पूरी तरह से परेशान कर रखा था। पंजाब में रहने वाले इस क्रांतिकारी की जानकारी हम आपको देने जा रहे है। राम सिंह कुका – Ram Singh Kuka इस क्रांतिकारी का नाम है। इस क्रांतिकारी की सारी जानकारी निचे दी गयी है।
स्वतंत्रता सेनानी राम सिंह कुका – Ram Singh Kuka Biography
राम सिंह कुका (Ram Singh Kuka) एक बहादुर सैनिक और धार्मिक नेता थे। भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में उन्होंने जो योगदान दिया वह बहुत ही महत्वपूर्ण है। कूका विद्रोह की शुरुवात राम सिंह कुका (Ram Singh Kuka) ने ही की थी। उन्होंने पंजाब में अंग्रेजो के खिलाफ जो असहकार आन्दोलन किया था वह बहुत ही प्रभावी आन्दोलन साबित हुआ था।
सन 1816 में राम सिंह (Ram Singh Kuka) का जन्म लुधियाना जिले (पंजाब) में भैनी में हुआ था। आगे चलकर वे सिख सेना के सैनिक बन गए थे और उस समय वे भाई बालक सिंह से काफी प्रभावित हुए थे। बालक सिंह की मृत्यु होने के बाद मिशनरी के काम की सारी जिम्मेदारी राम सिंह (Ram Singh Kuka) ने अपने कंधो पर ली थी। उन्होंने सीखो के आपस में जाती के आधार पर होने वाले भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने अंतर जाती विवाह और विधवा पुनर्विवाह करने के लिए लोगो को प्रेरित किया था।
राम सिंह (Ram Singh Kuka) ने अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाई थी और बाद में उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ बड़े पैमाने पर असहकार आन्दोलन भी किया था। उनके नेतृत्व में हुए असहकार आन्दोलन में लोगो ने अंग्रेजो की शिक्षा, कारखानों में बने कपडे और कई सारी महत्वपूर्ण चीजो का बहिष्कार किया था। समय के साथ में कुका आन्दोलन और भी तीव्र होता गया। इस आन्दोलन से अंग्रेज बहुत परेशान गए थे इसीलिए उन्होंने कुका आन्दोलन के कई सारे क्रांतिकारियों की हत्या कर दी और राम सिंह को रंगून भेज दिया। बाद में उन्हें आजीवन कारावास के लिए अंदमान के जेल में भेज दिया गया। 29 नवम्बर 1885 को उनकी मृत्यु हो गयी।
बाबा राम सिंह (Ram Singh Kuka) के शिष्य और अनुयायी पर उनका इतना प्रभाव था उनकी मृत्यु के बाद भी उनके अनुयायी उनकी मृत्यु पर विश्वास नहीं करते थे और उन्हें लगता था की राम सिंह (Ram Singh Kuka) फिर से आयेंगे और मार्गदर्शन करेंगे। वे जिस तरह से असहकार आन्दोलन और सविनय अवज्ञा आन्दोलन करते थे उसे महात्मा गांधी ने समझ लिया था और उन्होंने आगे चलकर इसी तरह के आन्दोलन को हथियार बनाकर अंग्रेजो के खिलाफ आन्दोलन किया।
पूर्वी जीवन
सादा कौर और जस्सा सिंह सतगुरु राम सिंह के माता पिता थे। वे भैनी साहिब के पास के रेयान गाव में रहते थे और उनका गाव लुधियाना जिले में आता था।
जब राम सिंह नौजवान हो गए थे तो उस वक्त वे महाराजा रणजीत सिंह की बगागेल रेजिमेंट में थे। वे बहुत ही अनुशासित जीवन जीते थे और उनके साथ के सैनिको को हमेशा धार्मिक रहने के लिए प्रेरित करते थे। सिख सैनिको की नैतिकता को लेकर वे काफी जागरूक रहते थे और इसीलिए वे उन्हें बेहतर बनाने पर जोर देते थे।
राम सिंह राजकुमार नौनिहाल सिंह के दल के सदस्य थे इसलिए सन 1841 में शाही खजाने को लाने के लिए उन्हें लाहौर से पेशावर जाना पड़ा था। जब उनका दल पेशावर से वापस आ रहा था तो उस वक्त उन्होंने पाकिस्तान के हजरों किले में कुछ समय बिताया था। ऐसा कहा जाता है की उस समय राम सिंह और उनके कुछ साथी एक महान संत सतगुरु बालक सिंह से मिलने गए थे। राम सिंह (Ram Singh Kuka) से मिलकर बालक सिंह काफी खुश हुए थे और उन्होंने राम सिंह से कहा था की, “मै तुम्हारी ही राह देख रहा था।”
उस वक्त बालक सिंह ने राम सिंह को गुरु मंत्र दिया था और उनसे कहा था की उस मंत्र को वे हमेशा अपने पास ही रखे और जो उस मंत्र के काबिल हो उसे बाद में दे दे। बालक सिंह ने उन्हें शक्कर, नारियल और पाच पैसे के सिक्के दिए, उनके सम्मान में उनके चारो तरफ़ पाच चक्कर लगाये और उन्हें नमस्कार किया। सन 1845 में राम सिंह (Ram Singh Kuka) ने खालसा की सेना को छोड़ दिया और अध्यात्मिक जीवन बिताने के लिए वे भैनी साहिब वापस आ गए थे।
नामधारी शिख धर्म की स्थापना करने में राम सिंह की भूमिका
12 अप्रैल 1857 को सतगुरु राम सिंह ने अपने पाच अनुयायी को अमृत संचार की दीक्षा दी और नामधारी संप्रदाय की स्थापना की। उस दिन राम सिंह ने भैनी साहिब में कुछ किसान और कारीगरों के सामने एक त्रिकोणीय झंडे को फहराया।
राम सिंह ने संप्रदाय का नाम इसीलिए नामधारी संप्रदाय रखा था ताकी उनके शिष्य भगवान को अपने मन और आत्मा में धारण कर सके। राम सिंह (Ram Singh Kuka) का ऐसा मानना था की जिस व्यक्ति के पास में नैतिकता है वही अपने देश और समाज के लिए बलिदान दे सकता है।
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में राम सिंह कुका का योगदान
इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के मुताबिक राम सिंह (Ram Singh Kuka) सिख धर्म के दार्शनिक और समाज सुधारक थे और साथ ही वे ऐसे पहले भारतीय थे जिन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ लड़ने के लिए असहकार जैसे हथियार का इस्तेमाल किया था और अंग्रेजो के सभी चीजो का बहिष्कार किया था।
उन्होंने अंग्रेजो को देश से निकालने के लिए रूस से मदत भी मांगी थी लेकिन ग्रेट ब्रिटन के साथ में युद्ध करने का खतरा रूस खुद पर लेना नहीं चाहता था इसीलिए रूस ने उन्हें सहायता करने से इंकार कर दिया था। राम सिंह ने जिंदगी के आखिरी दिन कारावास में बिताये। उन्हें कैद से छुटकारा मिलने पर उन्हें रंगून में भेजा गया जहापर उन्हें 14 साल तक कैदी बनकर रहना पड़ा।
सामाजिक सुधारना
राम सिंह ने विवाह के एक बहुत ही आसान और सरल तरीके की शुरुवात की थी। उस विवाह को आनंद कारज कहा जाता था। आनंद कारज मार्ग से विवाह करने से वेद और ब्राह्मण द्वारा बताये गए विवाह से छुटकारा मिल गया था। इस तरह के विवाह से आम लोगो का शादी करने का बोझ काफी हद तक ख़तम हो गया था।
सतगुरु के मुताबिक विवाह गुरुद्वारा में सतगुरु और श्री गुरु ग्रन्थ साहिब ग्रंथ के सामने किये जाते थे। इस तरह के विवाह में दहेज़ पर बंदी लगायी गयी थी। विवाह के बाद सभी को लंगर में भोजन दिया जाता था। इस तरह के विवाह की वजह से गरीब किसान अपने लडकियों का विवाह बिना किसी चिंता से कर सकते थे। उन्होंने पंजाब में भ्रूणहत्या और लडकियों को मारने पर पाबन्दी लगाई थी।
राम सिंह कुका ने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में जो योगदान दिया है वह काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ जो कुका आन्दोलन किया था वह सबसे प्रभावशाली आन्दोलन साबित हुआ था। इस आन्दोलन में उन्होंने अंग्रेजो की परेशानियों को और भी बढ़ा दिया था।
राम सिंह ने अपनी एक खुद की सेना बनाई थी और इसी सेना की मदत से कुका आन्दोलन किया था। राम सिंह (Ram Singh Kuka) केवल आन्दोलन करने पर ही नहीं रुके बल्की उन्होंने समाज को सुधारने के लिए भी कई प्रयास किये। उन्होंने विवाह की नयी और सरल परम्परा को शुरू किया था। उसमे गरीब किसान अपनी लडकियों की बिना दहेज़ विवाह कर सकते थे।
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