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सागरमल गोपा (Sagarmal Gopa)

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Sagarmal gopa
Sagarmal gopa

देश को आजादी दिलाने के लिए क्रांतिकारी बनाये नहीं जाते बल्की क्रांतिकारी अपने आप बन जाते है।  क्रांतिकारी या देशभक्त बनने के लिए किसी जगह जाकर ट्रेनिंग लेनी की जरुरत नहीं पड़ती। जब हालात विपरीत हो उस समय क्रांतिकारी का जन्म अपने आप हो जाता है। एक ऐसे ही क्रांतिकारी जो जैसलमेर से थे उनकी बात भी कुछ इसी तरह की है। इस देशभक्त का नाम सागरमल गोपा – Sagarmal Gopa  था। उन्होंने कभी नहीं सोचा था की वे आगे चलकर क्रांतिकारी बनेंगे।

स्वतंत्रता सेनानी सागरमल गोपा का जीवन परिचय – Sagarmal Gopa

लेकिन उनके यहाँ जिस तरह का माहौल था, जिस तरह की विपरीत परिस्थिति थी उसे देखकर उन्हें खुद से क्रांतिकारी बनने की प्रेरणा मिली। जिस जगह पर वे रहते थे वहा के लोगो पर जुल्म होते थे। यह सब उनसे देखा नहीं गया और उसके खिलाफ उन्होंने आवाज उठाई, कड़ी मुश्किलों का सामना किया। आज इसी महान देशभक्त सागरमल गोपा (Sagarmal Gopa) की जानकारी हम आप तक पहुचाने वाले है।

स्वतंत्रता सेनानी सागरमल गोपा (Sagarmal Gopa) का जन्म 3 नवम्बर 1900 में हुआ था। वे एक जाने माने ब्राह्मण परिवार से थे और उनके पूर्वज जैसलमेर में राजगुरु के पद पर काम करते थे। उनके पिताजी अख्य राज जैसलमेर शासन में काम करते थे।

जब सागरमल बड़े हो रहे थे तो उस वक्त देश की आजादी को लेकर उनके राज्य का नजरिया बहुत ही अलग था। इसकी वजह से वे बहुत परेशान होने लगे थे और जिसके चलते देश को आजादी दिलाने की प्रेरणा उन्हें मिली। उसके बाद में सागरमल गोपा (Sagarmal Gopa) देश को स्वतन्त्र करने के लिए अपने परिवार के साथ में नागपुर चले गए।

सागरमल ने सन 1921 में असहकार आन्दोलन में अपना पूरा योगदान दिया और उन्होंने स्थानीय शासक का कड़ा विरोध भी किया क्यों उस समय का शासक स्थानीय लोगो के साथ में बहुत ही बुरा बर्ताव करता था। सागरमल ने रियासतों की अखिल भारतीय परिषद में भी हिस्सा लिया था।

जैसलमेर और हैदराबाद आने पर सागरमल पर पाबन्दी लगाने के बाद भी उन्होंने अपनी लड़ाई जारी ही रखी। सागरमल अखबार और किताबो के जरिये लोगो को प्रेरित करने का काम करते थे और उसके लिए उन्होंने ‘जैसलमेर राज्य का गुंडाशासन’ और ‘रघुनाथ सिंह का मुकदमा’ जैसी क़िताबे भी लिखी।

आजादी हासिल करने के लिए सागरमल का संघर्ष जैसलमेर में लगातार जारी रहा। अक्तूबर 1938 में उनके पिताजी की मृत्यु हो गयी थी जिसकी वजह से उन्हें अपने घर दोबारा लौटना पड़ा।

लेकिन उनसे जो वायदा किया गया था उसे तोडा गया और और उन्हें 25 मई 1941 को बंदी बना लिया गया। लेकिन एक बार बंदी बनाने के बाद उन्हें कभी रिहा नहीं किया गया। वे आखिर तक कैद में ही रहे और 4 अप्रैल 1946 को उनका निधन हो गया।

उनकी याद में भारत सरकार और डाक विभाग ने 29 दिसंबर, 1986 को उनके नाम का एक टिकेट ‘भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन श्रेणी में’ जारी किया। इंदिरा गांधी कैनाल के एक और कैनाल को सागरमल गोपा (Sagarmal Gopa) का नाम भी दिया गया।

इस महान सगरमल गोपा की जानकारी पढ़ने के बाद हमें पता चलता है की उन्हें बचपन से ही लोगो पर हो रहे जुल्म और अन्याय का अहसास था। वे बचपन से ही विपरीत परिस्थिति को बदलना चाहते थे। वे अच्छे परिवार से होने के कारण निजी तौर पर उन्हें कोई तकलीफ नहीं थी।

लेकिन जिस समाज में वे रहते थे उसपर होनेवाले अन्याय उन्हें मंजूर नहीं थे। इसके लिए इस तरह के हालात बदलने का फैसला उन्होंने किया और देश को आजादी दिलाने का सपना देखा। इसी सपने को पुरा करने के लिए वे जीवनभर लड़ते रहे और उन्होंने आखिर तक हार नहीं मानी। इनके जैसे महान देशभक्त बार बार जन्म नहीं लेते। ऐसे महान क्रांतिकारी केवल एक बार ही बनते है और लोगो के लिए मिसाल बन जाते है।

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