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लोकमान्य तिलक (Bal Gangadhar Tilak) ने 1917 में नाशिक में होम रूल लीग की स्थापना के पहली वर्षगाठ पर भाषण दिया था। उस भाषण को आपके लिये पब्लिश कर रहें हैं।
लोकमान्य तिलक का भाषण – Lokmanya Tilak speech in Hindi
मैंस्वभाव से जवान हूँ, भले ही शरीर से बुढा हो चुका हूँ। मैं युवावस्था के इस विशेषाधिकार को गवाना नहीं चाहता। जो कुछ भी आज मैं कहने जा रहा हूँ, वह हमेशा से ही युवा की तरह है। शरीर भले ही वृद्ध, जर्जर और नाश हो सकता है लेकिन आत्मा अमर होती है। (लेख – बाल गंगाधर तिलक Bal Gangadhar Tilak)
इसी तरह यदि हमारे स्वराज्य के क्रिया कलापों में स्पष्ट तौर से गति में कमी आ जाती है तब अंतरात्मा की स्वतंत्रता जो कि शाश्वत और अविनाशी है वह पीछे छूट जायेगी और यही हमारी आजादी को सुनिश्चित करेगी।
स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। जब तक यह मुझमें जिंदा रहेगा, तब तक मैं बुढा नहीं हूँ। इस भावना को न कोई हथियार काट सकता है और न ही अग्नि जला सकती है, न जल भिगो सकता है और न ही हवा सूखा सकती है।
हम लोग स्वराज्य की मांग करते हैं और हम लोग इसे अवश्य प्राप्त करेंगे। राजनीति का विज्ञान वही है जो स्वराज्य से समाप्त होता है न कि वह जो गुलामी से खत्म होता है। राजनीति का विज्ञान ही देश का वेद है, आपकी आत्मा है और मैं इसे सिर्फ जागृत करना चाहता हूँ। मैं उस अंधविश्वास को समाप्त करना चाहता हूँ जो अज्ञानी, धूर्त और स्वार्थी लोगों के द्वारा लाया गया है। (लेख – बाल गंगाधर तिलक Bal Gangadhar Tilak)
राजनीति के विज्ञान के दो भाग हैं। पहला भाग ईश्वरीय और दूसरा भाग शैतानिक है। किसी राष्ट्र की गुलामी का निर्माण दूसरा भाग करता है। राजनीति के शैतानिक भाग का कोई औचित्य नहीं हो सकता है। वह राष्ट्र जो इसे उचित करार देता है, ईश्वर की नजर में पाप का भागी है। कुछ लोग साहस करते हैं और कुछ लोग साहस नहीं करते हैं, उन चीजों की घोषणा करने के लिये जो उनके लिये हानिकारक होती है। (लेख – बाल गंगाधर तिलक Bal Gangadhar Tilak)
राजनीतिक और धार्मिक शिक्षण इसी सिद्धांत का ज्ञान देने में शामिल है। धार्मिक और राजनीतिक शिक्षण अलग-अलग नहीं हैं बल्कि वे ऐसे प्रतीत होते हैं। सभी दर्शन राजनीति विज्ञान में शामिल हैं।
स्वराज्य का अर्थ कौन नहीं जानता? कौन नहीं इसे चाहता। क्या आप यह पसंद करेंगे कि मैं आपके घर में प्रवेश कर जाऊं और आपके रसोई घर पर अधिकार जमा लूँ? मुझे घरेलू मामले की व्यवस्था का अधिकार अवश्य है। हम लोग को कहा गया कि हम स्वराज्य के काबिल नहीं हैं। एक शताब्दी बीत जाने के बाद भी अंग्रेजी हुकूमत हम लोगों को स्वराज्य के योग्य नहीं मानती। (लेख – बाल गंगाधर तिलक Bal Gangadhar Tilak)
अब हमलोग खुद को योग्य बनाने के लिये खुद ही प्रयास करेंगे। असंगत बहानेबाजी प्रदान करना, किसी प्रकार के लालच का प्रतिकार करना और दूसरे को ऐसा मौका प्रदान करना अंग्रेजी राजनीति को कलंकित करने के सामान है, इंग्लैंड भारत की मदद से बेल्जियम जैसे छोटे से राज्य को बचाने की कोशिश कर रहा है। तब यह कैसे कहा जाता है कि हमारे देश में स्वराज्य नहीं है? वे लोग जो हम में दोष ढूंढते हैं, वे लालची लोग हैं। लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं जो दयावान ईश्वर में भी दोष ढूंढ़ लेते हैं।
हम लोगों को जरुर किसी की चिंता किये बगैर राष्ट्र की आत्मा को बचाने के लिये कठिन परिश्रम करना चाहिये। हमारे देश की भलाई इसी जन्मसिद्ध अधिकार की रक्षा करने में है। कांग्रेस ने इस स्वराज्य को पाने का प्रस्ताव पारित किया है।
व्यवहारिक राजनीति में हमारे स्वराज्य की इच्छा का प्रतिकार करने के लिये कुछ लालची परेशानिया उठाई जाती हैं। हमारे अधिकांश लोगों की निरक्षरता उन परेशानियों में से एक है, लेकिन मेरे ख्याल से उसे अपने मार्ग में बाधा के तौर पर नहीं आने देना चाहिये।
हम लोगों के लिये यह कहना पर्याप्त होगा कि हमारे देश के निरक्षर लोगों के पास केवल स्वराज्य की स्पष्ट विचारधारा है, उसी तरह से जैसे ईश्वर के बारे में उनकी अस्पष्ट धारणा है। वे लोग जो अपने निजी मामलों को कुशलतापूर्वक निपटा लेते हैं, वे अशिक्षित हो सकते हैं लेकिन मुर्ख नहीं हो सकते। वे उतने ही बुद्धिजीवी होते हैं जितना कि एक शिक्षित इंसान। और अगर वे मुश्किल मुद्दों को समझ सकते हैं तो उन्हें स्वराज्य के सिद्धांत को समझने में या उसे ग्रहण करने में कोई कठिनाई नहीं होती है। (लेख – बाल गंगाधर तिलक Bal Gangadhar Tilak)
अगर निरक्षरता सभ्य कानून की दृष्टि में अयोग्यता नहीं है तो अकारण प्रकृति के नियम में ऐसा क्यों होना चाहिए?
अशिक्षित लोग भी हमारे भाई हैं और उन्हें भी यही अधिकार हैं और वे भी इसी भावना से प्रेरित हैं। इसीलिए हमलोग हमने कर्तव्य से बंधे हैं कि हम लोगों को जागरूक करें। परिस्थितियाँ बदल गयी हैं और अनुकूल हैं। (लेख – बाल गंगाधर तिलक Bal Gangadhar Tilak)
आवाज उठ रही है कि ‘अभी नहीं तो कभी नहीं।’ ईमानदारी और संवैधानिक आन्दोलन अकेले नहीं हैं जो आप लोगों से उम्मीद की गयी हैं। पीछे नहीं हटें और आत्मविश्वास के साथ अंतिम मुद्दे को प्रभु के हाथों में सौंप दें।“ (लेख – बाल गंगाधर तिलक Bal Gangadhar Tilak)
इसेभी देखे – फ़्लाइंग ऑफ़िसर निर्मलजीत सिंह सेखों (Flying Officer Nirmal Jit Singh Sekhon), लांस नायक अल्बर्ट एक्का (Lance Naik Albert Ekka), Other Links – योग (Yoga)