विषय सूची
भारत वीरागंनाओं की जन्म भूमि रहा है। भारत को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी दिलवाने की लड़ाई में उनकी बहादुरी के लिए रानी लक्ष्मीबाई, सावित्री बाई फुले, सरोजिनी नायडू, अरुणा असफ अली जैसी साहसी और वीर महिलाओं का नाम लिया जाता हैं, वहीं ऐसे ही क्रांतिकारी महिलाओं में बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) का नाम भी शामिल है।
जिन्होंने 1857 में हुई आजादी की पहली लड़ाई में अपनी बेहतरीन संगठन शक्ति और बहादुरी से ब्रिट्रिश हुकूमत के छक्के छुड़ा दिए थे। बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) ने लखनऊ को अंग्रेजों से बचाने के लिए एक जाबांज योद्धा की तरह लड़ाई लड़ी और तमाम क्रांतिकारी कदम उठाकर अंग्रेजों को अपनी शक्ति की ताकत दिखा दी थी। वे अवध के शासक वाजिद अली शाह की पहली बेगम थी, जिन्हें अवध की आन-बान शान माना जाता था।
बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) सैन्य और युद्ध कौशल में निपुण महिला थी, जो खुद युद्ध के मैदान में जाकर अपने सिपाहियों को प्रशिक्षण देती थी और युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए उनका हौसला अफजाई करती थी। उनके अंदर एक आदर्श और कुशल शासक के सारे गुण विद्यमान थे।
अपने जीवन में तमाम संघर्षों के बाबजूद भी अपनी कुशल रणनीतियों से अपने राज्य को बचाने के तमाम प्रयास करती रहीं, हालांकि बाद में उन्हें अंग्रेजों से पराजय का सामना करना पड़ा था और अपना राज्य छोड़कर नेपाल की शरण लेनी पड़ी थी। बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) विपरीत परिस्थितियों में भी कभी हार नहीं मानने वाली वीरांगना थी, उनका जीवन बेहद प्रेरणादायक हैं, तो आइए जानते हैं इतिहास की इस सबसे साहसी और वीर महिला हजरत महल के बारे में –
बेगम हजरत महल का जीवन परिचय – Begum Hazrat Mahal in Hindi
पूरा नाम (Name) – बेगम हज़रत महल
जन्म (Birthday) – लगभग 1820 ई., फ़ैज़ाबाद, अवध, भारत
मृत्यु (Death) – अप्रैल, 1879, काठमांडू, नेपाल
पति का नाम (Father Name) – नबाब वाजिद अली शाह
बच्चे (Children) – 1 बेटा
कार्य (Work) – 1857 में ब्रिटिश इस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह, अपने राज्य अवध को बचाने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
बेगम हजरत महल का जन्म और प्रारंभिक जीवन – Begum Hazrat Mahal History
आजादी की पहली लड़ाई 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई करने वाली वीरांगना बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) 1820 ईसवी में अवध प्रांत के फैजाबाद जिले के एक छोटे से गांव में बेहद गरीब परिवार में जन्मी थीं। बचपन में उन्हें सब मुहम्मदी खातून (मोहम्मद खानम) कहकर पुकारते थे।
बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) की परिवार की दयनीय हालत इतनी खराब थी कि उनके माता-पिता उनका पेट भी नहीं पाल सकते थे। जहां वे बड़े और राजशाही घरानों के शहंशाहों का डांस कर मनोरंजन करती थीं। इसके बाद उन्हें शाही हरम में परी समूह में शामिल कर लिया गया, जिसके बाद वे ‘महक परी’ के रुप में पहचाने जाने लगीं।
‘हजरत महल’ की उपाधि – Hazrat Mahal
बेगम हजरत महल का सुंदर रुप भी हर किसी को मोहित कर लेता था, वहीं एक बार जब अबध के नवाब ने उन्हें देखा तो वे उनकी सुंदरता पर लट्टू हो गए और उन्हें अपने शाही हरम में शामिल कर लिया और फिर बाद में अवध के नवाब वाजिद अली शाह ने उन्हें अपनी शाही रखैल से बेगम बना लिया। इसके बाद उन्होंने बिरजिस कादर नाम के पुत्र को जन्म दिया। फिर उन्हें ‘हजरत महल’ की उपाधि दी गई।
शौहर को बंदी बनाए जाने के बाद संभाली अवध की सत्ता:
काफी संघर्षों के बाद अवध के नवाब की बेगम बनने के बाद जब बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) की जिंदगी में थोड़ी सी खुशहाली आई ही थी कि उस दरमियां 1856 ईसवी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने ताजदार-ए-अवध नवाब वाजिद अली शाह के अवध राज्य पर कब्जा कर लिया और बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) के नवाब को बंदी बना कर उन्हें कोलकाता भेज दिया।
इसके बाद बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) ने अवध राज्य की सत्ता संभालने का निर्णय लिया और फिर अपने नाबालिग बेटे बिरजिस कादर को अवध की राजगद्दी पर बिठाकर 7 जुलाई, 1857 ईसवी से अवध के कुशल शासक के रुप में ब्रिटिश शासकों के खिलाफ चिंगारी लगाना शुरु कर दिया था।
बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) एक कुशल रणनीतिकार थी, जिनके अंदर एक सैन्य एवं युद्ध कौशल समेत कई गुण विद्यमान थे। उन्होंने अंग्रेजों के चंगुल से अपने राज्य को बचाने के लिए अंग्रेजी सेना से वीरता के साथ डटकर मुकाबला किया था एवं तमाम लड़ाईयां लड़ी थीं।
सैनिकों का बढ़ाती थी मनोबल, महिला सैनिक दल था उनकी शक्ति:
बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) एक कुशल प्रशासक की तरह सभी धर्मों को समान रुप में देखती थीं, वे धर्म के आधार पर कभी भी भेदभाव नहीं करती थीं, उन्होंने अपने सभी धर्मों के सिपाहियों को भी समान अधिकार दिए थे।
इतिहासकारों की माने तो बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) अपने सिपाहियों के हौसला बढ़ाने के लिए खुद ही युद्ध मैदान में चली जाती थी। हजरत महल की सेना में वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई की तरह महिला सैनिक दल भी शामिल था।
1857 की क्रांति में दिया था अपने साहस और वीरता का परिचय:
सन् 1857 में भारत को आजाद करवाने के लिए हुई पहली लड़ाई के दौरान बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) ने अपनी सेना और समर्थकों के साथ ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया और वीरता के साथ अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध लड़ा। बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) के कुशल नेतृत्व में उनकी सेना ने लखनऊ के पास चिनहट, दिलकुशा में हुई लड़ाई में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे।
लखनऊ में हुए इस विद्रोह में साहसी बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) ने अवध प्रांत के गोंडा, फैजाबाद, सलोन, सुल्तानपुर, सीतापुर, बहराइच आदि क्षेत्र को अंग्रेजों से मुक्त करा कर लखनऊ पर अपना कब्जा जमा लिया था।
लखनऊ की लड़ाई में मिला था कई बड़े राजाओं का साथ:
इतिहासकारों के मुताबिक 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ हुई इस लखनऊ की लड़ाई में बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) का कई राजाओं ने साथ दिया था। बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) की सैन्य प्रतिभा से प्रभावित होकर ही स्वंतत्रता संग्राम में मुख्य भूमिका अदा करने वाले एवं महारानी लक्ष्मी बाई के बेहद करीबी रहे नाना साहिब ने भी उनका साथ दिया था।
बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) के कुशल नेतृत्व, बेहतरीन संगठन क्षमता और उनके अदम्य साहस से प्रभावित होकर राजा जयलाल, राजा मानसिंह आदि भी इस लड़ाई में रानी हजरत महल का साथ देने के लिए आगे आए थे। यही नहीं बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) के प्रभावशाली संगठन का प्रभाव अवध के किसान, जमीदार और अवध प्रांत के युवा नागरिक पर भी पड़ा था और उन्होंने भी अंग्रेजों के खिलाफ हुई इस लड़ाई में हजरत महल का साथ दिया था।
इस लड़ाई मे हजरत महल ने हाथी पर सवार होकर अपनी सेना का कुशल नेतृत्व किया और अंग्रेजों के दांतों तले चना चबाने के लिए मजबूर कर दिया था। इस लड़ाई में अंग्रेजों को लखनऊ रेजीडेंसी में छिपने के लिए मजबूर होना पड़ा था। बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) की अंग्रेजों के साथ यह लड़ाई काफी दिनों तक चलती रहीं। वहीं हजरत महल के नेतृत्व में उनकी सेना भी अंग्रेजों का पूरी वीरता के साथ मुकाबला करतीं रही।
हालांकि बाद में अंग्रेजों नें ज्यादा सेना और हथियारों के बल पर एक बार फिर से लखनऊ पर आक्रमण कर दिया और लखनऊ और अवध के ज्यादातर हिस्सों में अपना अधिकार जमा लिया यहां तक की अंग्रेजों ने बेगम की कोठी में भी कब्जा कर लिया जिसके चलते बेगम हजरत महल को पीछे हटना पड़ा और अपना महल छोड़कर जाना पड़ा।
लखनऊ पर अंग्रेजों का कब्जा होने के बाद भी क्रांति की चिंगारी भड़काती रहीं बेगम:
अपना सिंहासन छोड़ने के बाद भी हजरत महल ने अपनी हार नहीं मानी और फिर वे अवध के देहातों में जाकर लोगों के अंदर अग्रेजों के खिलाफ क्रांति की चिंगारी भड़काती रहीं और अवध के जंगलों को अपना ठिकाना बनाया। इस दौरान उन्होंने नाना साहेब और फैजाबाद के मौलवी के साथ मिलकर शाहजहांपुर में भी आक्रमण किया और गुरिल्ला युद्ध नीति से अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया।
इस तरह जहां तक संभव हो सका वे भारत की एक साहसी वीरांगना की तरह वे अंग्रेजों का मुकाबला करती रहीं। ऐसा कहा जाता है कि बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) के नेतृत्व में अवध की लड़ाई में अंग्रजों के पसीने छूट गए थे एवं वे पहली ऐसी बेगम थी, जिन्होंने लखनऊ के विद्रोह में हिन्दू-मुस्लिम सभी राजाओं और अवध की आवाम के साथ मिलकर अंग्रेजों को पराजित किया था।
हालांकि बाद में उनका अपना राज्य छोड़कर जाना पड़ा था। अवध की रानी बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) ने अंग्रेजों पर मुस्लिमों और हिन्दुओं के धर्म में फूट और नफरत पैदा करने का आरोप भी लगाया था।
अपना राज्य छोड़कर नेपाल में लेनी पड़ी थी शरण और यहीं ली अपनी अंतिम सांस – Begum Hazrat Mahal Death
अंग्रेजों के खिलाफ इस लड़ाई के दौरान मौलाना अहमदशाह की हत्या कर दी गई थी, जिसके बाद हजरत महल बिल्कुल अकेले पड़ गईं और उनके पास लखनऊ छोड़ने के अलावा कोई और दूसरा रास्ता नहीं बचा था।
वहीं इसी दौरान ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ इलाहाबाद और कानपुर में भी मोर्चा टूट चुका था और दिल्ली और मेरठ में भी अंग्रेजों का काफी अत्याचार बढ़ गया था, जिसके चलते कई क्रांतिकारियों को इस लड़ाई में पीछे हटना पड़ा था। वहीं उस समय अंग्रेजों ने बादशाह बहादुर शाह जफर को कैद कर रंगून भेज दिया था।
हालात काफी बिगड़ चुके थे, वहीं स्वाभिमानी हजरत महल किसी भी हालत में यह नहीं चाहती थी कि उन्हें अंग्रजों द्धारा बंदी बनाया जाए, इसलिए उन्होंने लखनऊ छोड़ने का फैसला लिया और अपने बेटे के साथ नेपाल चलीं गईं। बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) की बहादुरी के चर्चे हर तरफ थे, नेपाल के राजा राणा जंगबहादुर भी उनके साहस से और स्वाभिमान से काफी प्रभावित थे, इसलिए उन्होंने बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) को नेपाल में शरण दी।
हालांकि बाद में वे काठमांडू चली गईं और अपने बेटे के साथ एक साधारण महिला की तरह जीवन व्यतीत करने लगीं और यहीं उन्होंने 1879 में अपनी आखिरी सांस ली और काठमांडू के जामा मस्जिद में बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) के शव को दफना दिया गया।
बेगम हजरत महल के नाम पर स्मारक और सम्मान – Begum Hazrat Mahal Memorial
• 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाली स्वाभिमान और साहसी वीरांगना बेगम हजरत महल के सम्मान में 15 अगस्त 1962 को उत्तप्रदेश की राजधानी लखनऊ के हजरतगंज मे बने एक पार्क का नाम उनके नाम पर रखा गया।
लखनऊ के ओल्ड विक्टोरिया पार्क का नाम बदलकर “बेगम हजरत महल पार्क” कर दिया गया। यहां पर उनके सम्मान में संगमरमर का स्मारक भी बनाया गया। इस विशाल पार्क में दिपावली, दशहरा और लखनऊ महोत्सव जैसे बड़े-बड़े समारोह का आयोजन होता है। वहीं ये पार्क लखनऊ के लिए किए गए बेगम के बलिदान को याद दिलाता है।
• बेगम हजरत महल के सम्मान में भारत सरकार ने 10 मई, 1984 को एक डाक टिकट भी जारी किया। बेगम हजरत महल इतिहास की उन वीरांगनाओं में शामिल हैं, जिन्होंने अपने राज्य को बचाने के लिए न सिर्फ अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था, बल्कि लखनऊ की लड़ाई में अंग्रेजों की नाक पर दम कर दिया था।
इसके साथ ही वे भारत की पहली ऐसी मुस्लिम महिला थी, जिन्होंने अपने धर्म के पर्दे को तोड़कर बेझिझक अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला था, और अपने राज्य एवं देश के स्वाभिमान की लाज रखी थी। वहीं जब भी 1857 में हुए स्वतंत्रता संग्राम की चर्चा की जाएगी, तब बेगम हजरत महल के नाम सम्मान और गर्व के साथ लिया जाएगा।
जिस तरह बेगम हजरत महल ने तलवार की नोंक पर अपनी अद्भुत संगठन शक्ति से अंग्रजों के हौसलों को परास्त कर अपने देश का गौरव बढ़ाया था, उनके बलिदान को हमेशा याद किया जाएगा। स्वाभिमानी बेगम हजरत महल की देशभक्ति, साहस और शौर्य ने उनके नाम को इतिहास के पन्नों पर हमेशा के लिए अमर बना दिया।
इसेभी देखे- मेजर होशियार सिंह दहिया (Major Hoshiar Singh), सेकेंड लेफ़्टिनेंट अरुण खेत्रपाल (Second Lieutenant Arun Khetarpal) Other Links – अष्टांग योग (Ashtanga Yoga)