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भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और शहीद-ए-आजम के रूप में विख्यात भगत सिंह (Bhagat Singh) ने महज 23 साल की उम्र में देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी। भगत सिंह नौजवानों के दिलों में आजादी का जुनून भरने वाले सच्चे देश भक्त थे। इन्होंने हर भारतीय के दिल में देश प्रेम की भावना विकसित की।
गुलाम भारत को आजाद करवाने के लिए भगत सिंह (Bhagat Singh) द्धारा किए गए त्याग और बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह (Shaheed Bhagat Singh) एक ऐसे क्रांतिकारी थे, जो देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसे के फंदे पर चढ़ गए थे। भगत सिंह (Bhagat Singh) की शहादत उस समय हुई थी, जब देश को क्रान्ति के सुनामी की सख्त जरूरत थी और वहीं यही सुनामी अंग्रेजों के शासन के तबाही का कारण बनी उनकी शहादत से ना केवल देश के युवाओं में बल्कि बच्चे-बच्चे में अंग्रेजों के खिलाफ रोष भर गया था।
यही नहीं भारत की आजादी के समय भगत सिंह (Bhagat Singh) सभी नौजवानों के लिए यूथ आइकॉन थे, जो उन्हें देश की रक्षा की लिए आगे आने के लिए प्रेरित करते थे। महान क्रांतिकारी भगत सिंह (Bhagat Singh) का अल्प जीवन भी वाकई प्रेरणा देने वाला है, जिन्होंने अपने बेहद कम समय के ही जीवनकाल में अटूट संघर्ष देखा था।
आज हम अपने इस लेख में इस महान क्रांतिकारी भगत सिंह (Bhagat Singh) के जीवन के बारे में बताएंगे जिनका नाम स्वर्ण अक्षरों में इतिहास के पन्नों में अमर है। उनके नाम से ही अंग्रेज डर जाते थे और उनकी पैरों तले जमीन खिसक जाती थी। जिनका कहना था कि –
लिख रहा हूं अंजाम, जिसका कल आगाज आएगा।
मेरे लहू का एक एक कतरा इन्कलाब लाएगा।।
शहीद भगत सिंह (Bhagat Singh) जीवनी
नाम (Name) – सरदार भगत सिंह (Bhagat Singh)
जन्म (Birthday) – 27 सितम्बर 1907
जन्मस्थान (Birthplace) – बंगा, जरंवाला तहसील, पंजाब, ब्रिटिश भारत, (अब पकिस्तान में)
माता (Mother) – विद्यावती कौर
पिता (Father) – सरदार किशन सिंह सिन्धु
मृत्यु (Death) – 23 मार्च 1931, लाहौर
विवाह (Wife) – विवाह नही किया।
“सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है”
महान क्रांतिकारी भगत सिंह (Bhagat Singh) का जन्म, परिवार और प्रारंभिक जीवन Bhagat Singh Birthday, Family
महान क्रांतिकारी और सच्चे देश भक्त भगत सिंह (Bhagat Singh) पंजाब के जंरवाला तहसील के एक छोटे से गांव बंगा में 27 सितंबर 1907 को जन्मे थे। वह सिख परिवार से तालोक्कात रखते थे। इनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था।
आपको बता दें कि जिस समय भगत सिंह (Bhagat Singh) का जन्म हुआ था, उस समय इनके पिता किशन सिंह जी जेल में थे। भगतसिंह बचपन से भी आक्रमक स्वभाव के थे। बचपन में वे अनोखे खेल खेला करते थे। जब वह 5 साल के थे तो अपने साथियों को दो अलग-अलग ग्रुप में बांट देते थे और फिर आपस में एक-दूसरे पर आक्रमण कर युद्ध का अभ्यास करते थे।
वहीं भगतसिंह के हर काम में उनके वीर, धीर और निर्भीक होने का प्रमाण मिलता है। भगत सिंह (Bhagat Singh) अपने बचपन से ही हर किसी को अपनी तरफ आर्कषित कर लेते थे।
वहीं एक बार जब भगत सिंह (Bhagat Singh) अपने पिता के मित्र से मिले तो वे भी इनसे अत्याधित प्रभावित हुए और प्रभावित होकर सरदार किशन सिंह से बोले कि यह बालक संसार में अपना नाम रोशन करेगा और देशभक्तों में इसका नाम अमर रहेगा। और आगे चलकर यही हुआ।
आपको बता दें कि भगत सिंह ने बचपन से ही अपने परिवार में देश भक्ति की भावना देखी थी। अर्थात उनका बचपन क्रांतिकारियों के बीच बीता था, इसलिए बचपन से ही भगत सिंह के अंदर देश प्रेमी का बीज बो दिया था। भगत सिंह के बारे में यह भी कहा जाता है उनके खून में ही देश भक्ति की भावना थी।
शहीद भगत सिंह (Bhagat Singh) के परिवार ने भी भारत की आजादी की लड़ाई के लिए कई बड़ी कुर्बानियां दी है। भगत सिंह के चाचा का नाम सरदार अजीत सिंह था जो कि एक जाने-माने क्रांतिकारी थे, जिनसे अंग्रेज भी डरते थे। दरअसल उन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था।
भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह ने अंग्रेजी हुकुमत से खिलाफत की थी, जिससे वे अंग्रेजी सरकार की आंख की किरकिरी बन गए थे। इसीलिए सरकार उनको किसी भी तरह से खत्म करना चाहती थी।
लेकिन अंग्रेजी सरकार की इस चाल को अजीत सिंह ने भाप लिया था और वह देश छोड़कर इरान चले गए और वह वहां से भी अपने देश की आजादी के लिए लड़ते रहे।
इन्होंने भारतीय देशभक्ति एसोसिएशन भी बनाई थी। इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि इसमें उनके साथ सैयद हैदर रजा शामिल थे। अपने चाचा अजीत सिंह का भगत सिंह पर गहरा प्रभाव पड़ा था और उन्हीं से उनके अंदर देशप्रेम की भावना जागृत हुई थी।
हम आपको यह भी बता दें कि भगत सिंह के जन्म के बाद उनकी दादी ने उनका नाम ‘भागो वाला’ रखा था। जिसका मतलब होता है ‘अच्छे भाग्य वाला’। बाद में उन्हें ‘भगतसिंह’ कहा जाने लगा।
भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह पर करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय का भी काफी प्रभाव पड़ा था। 1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगतसिंह के मन पर गहरा प्रभाव डाला था।
इस हत्याकांड में कई बेकसूर भारतीय मारे गए थे और कई लोगों ने अपना परिवार खो दिया था जिसे देख भगत सिंह के मन में अंग्रेजी शासकों के खिलाफ भारी रोष पैदा हो गया था और उसी वक्त से वह भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करवाने के बारे में सोचने लगे थे।
सरदार भगत सिंह की पढ़ाई-लिखाई – Bhagat Singh Education
देश के महान क्रांतिकारी भगत सिंह जी के पिता ने सरदार किशन सिंह सिंधु ने शुरुआत में अपने बेटे का दाखिला दयानन्द एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में करवाया था। आपको बता दें कि भगत सिंह (Bhagat Singh) बचपन से ही बेहद बुद्धिमान और कुशाग्र बुद्धि के थे।
उन्होंने अपनी 9वीं तक की परीक्षा डी.ए.वी. स्कूल से पास की है। इसके बाद साल 1923 में उन्होंने अपनी इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। वहीं इसके बाद उन्होनें अपनी आगे की ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए लाहौर के नेशनल कॉलेज में एडमिशन लिया था।
उसी दौरान उनके परिवार वाले उनकी शादी की तैयारियां कर रहे थे। लेकिन शहीद-ए-आजम ने अपनी शादी के प्रस्ताव को यह कर ठुकरा दिया था कि यदि “मैं आजादी से पहले विवाह करूँगा, तो मौत मेरी दुल्हन होगी” वहीं इसके बाद उनके माता – पिता ने उनपर शादी करने के लिए दबाव डालना बंद कर दिया था।
और फिर, वे इसके बाद लाहौर से वापस कानपुर आ गए थे। उस दौरान जलियाँ वाला बाग़ हत्या कांड से भगत सिंह (Bhagat Singh) को गहरा सदमा पहुंचा था और इसके बाद उनके मन में अंग्रेजों द्धारा किये गए आत्याचार के खिलाफ विद्राह ने जन्म ले लिया था।
इसके बाद भगत सिंह (Bhagat Singh) पर देश की आजादी का जूनून इस कदर सवार हो गया था कि उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा चलाये गए असहयोग आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और अपना भरपूर योगदान दिया था।
भगत सिंह खुले आम अंग्रेजों को ललकारा करते थे, और गांधी जी के कहने पर ब्रिटिश बुक्स को जला दिया करते थे।
लेकिन बाद में “चौरी – चौरा काण्ड” (Chauri Chaura incident) में क्रांतिकरियों द्वारा पुलिस चौकी में आग लगा देने की वजह से और अन्य हिंसात्मक गतिविधियों की वजह से गांधी जी ने इस आन्दोलन को वापस ले लिया क्योंकि गांधी जी शांति से आजादी की लड़ाई लड़ना चाहते थे।
वहीं आन्दोलन वापस लेने की वजह से भगत सिंह काफी दुखी हो गए थे और उन्होंने महात्मा गांधी की अहिंसावादी बातों को छोड़ कर दूसरी पार्टी ज्वाइन करने कर ली थी।
सरदार भगत सिंह की सुखदेव से मुलाकात
सरदार भगत सिंह जब लाहौर के नेशनल कॉलेज से B.A. की पढ़ाई कर रहे थे, तभी उनकी मुलाकात सुखदेव, भगवती चरन समेत अन्य कई लोगों से हुई। और फिर उनकी सुखदेव से गहरी दोस्ती हो गई।
और उस समय आजादी की लड़ाई अपने चरम सीमा पर थी। वहीं देशप्रमी भगत सिंह भी बाद में पूरी तरह इस लड़ाई में कूद पड़े थे और देश की स्वतंत्रता के लिए खुद का जीवन समर्पित कर दिया था।
सरदार भगत सिंह (Bhagat Singh) का देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष और क्रांतिकारी गतिविधियां – Freedom Fighter Bhagat Singh
सच्चे देश भक्त सरदार भगत सिंह (Bhagat Singh) के मन में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की भावना तो तभी से भड़क उठी थी जब से जलियांवाला हत्याकांड, में कई बेकसूर भारतीयों की मौत हो गई थी।
आपको बता दें कि यह वह दौर था जब अंग्रेज शासकों का भारतीयों के खिलाफ अत्याचार बढ़ रहा था और देश की हालत बेहद बुरी हो गई थी और यही वह समय भी था जब हर कोई गुलाम भारत को अंग्रेजों की बेड़ियों से आजाद करवाना चाहता था।
यह सब देखकर भारत के महान क्रांतिकारी भगत सिंह (Bhagat Singh) ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और खुद को स्वतंत्रता संग्राम में पूरी तरह समर्पित कर दिया।
देश की आजादी के लिए भगत सिंह देश के सभी युवाओं को जागरूक करना चाहते थे और इस लड़ाई के लिए उनके अंदर जोश भरना चाहते थे, लेकिन हर युवा तक सन्देश पहुंचाने के लिए उन्हें किसी माध्यम की जरूरत थी।
इसके लिए भगत सिंह (Bhagat Singh) ने लाहौर में “कीर्ति किसान पार्टी” (KIRTI KISAN PARTY) ज्वाइन कर ली और वे अपने इस मकसद को पूरा करने के लिए किसान कीर्ति पार्टी द्दारा प्रकाशित मैगजीन के लिए काम करने लगे।
शुरुआत में भगत सिंह (Bhagat Singh) ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आक्रामक लेख लिखे और पंपलेट छपवाए और ज्यादा से ज्यादा लोगों को बांटे जिससे वह अंग्रेज सरकार की भी नजरों में चढ़ गए थे।
कीर्ति मैग्जीन के माध्यम से भगत सिंह (Bhagat Singh) अपना संदेश तमाम युवाओं तक पहुंचाने लगे, वहीं इसी का युवाओं पर इतना प्रभाव हुआ कि कई युवा भारतीयों ने स्वतंत्रता की लड़ाई में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया।
आपको बता दें कि भगत सिंह (Bhagat Singh) एक बहुत अच्छे लेखक भी थे और मैगजीन के अलावा वह पंजाबी उर्दू पेपर के लिए भी लेख लिखा करते थे।
भारत को स्वतंत्रता दिलवाने का उद्देश्य लिए सरदार भगत सिंह (Bhagat Singh) ने 1925 में यूरोपियन नेशनलिस्ट मूवमेंट के दौरान “नौजवान भारत सभा” (Naujawan Bharat Sabha) पार्टी का गठन किया, इसके वह सेक्रेटरी थे।
क्रांतिकारी भगत सिंह (Bhagat Singh) ने चंद्रशेखर आजाद के साथ किया पार्टी का गठऩ – Hindustan Socialist Republican Association (HSRA)
उस समय देश में हिंसात्मक घटनाएं जन्म ले रही थी और अंग्रेजों का अत्याचार भारतीयों के खिलाफ बढ़ रहा था। उसी दौरान काकोरी कांड में चंद्रशेखर आजाद की पार्टी “हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन” के राम प्रसाद बिस्मिल समेत 4 क्रांतिकारियों को फांसी और अन्य 16 को जेल की सजा सुना दी गई जिसका भगत सिंह पर गहरा सदमा पहुंचा था।
इसके बाद वे इतने ज्यादा बेचैन हो गए थे कि उन्होंने चन्द्रशेखर आजाद के साथ मिलकर दोनों पार्टियों के विलय की योजना बनाई थी।
इसके बाद सितंबर 1928 में दिल्ली के फिरोज़ शाह कोटला मैदान में एक गुप्त बैठक हुई। जिसमें भगत सिंह की नौजवान भारत सभा के सभी सदस्यों का विलय “हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एस्सोसिएशन” में किया गया।
और काफी विचार-विमर्श के करने के बाद सभी की सहमति से पार्टी का नया नाम “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन – Hindustan Socialist Republican Association (HSRA)” रखा गया। आपको बता दें कि “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA)” एक मौलिक पार्टी थी जिसमें भारत की आजादी के महानायक लाला लाजपत राय भी थे।
साइमन कमीशन का विरोध और लाला लाजपत राय की मौत का बदला – Opposed to Simon Commission
30 अक्टूबर साल 1928 में ब्रिटिश सरकार द्धारा साइमन कमीशन के भारत आने पर इसके बहिष्कार के लिये देश में कई जगह प्रदर्शन हुए। दरअसल साइमन कमीशन भारत में संविधान की चर्चा करने के लिए बनाया गया एक कमीशन था, जिसके पैनल में एक भी भारतीय सदस्य को शामिल नहीं किया गया।
जिसके चलते इसका विरोध किया जा रहा था। वहीं इन प्रदर्शनों में हिस्सा लेने वाले भारतीयों पर अंग्रेजी सरकार ने लाठी चार्ज करवा दिया था और इसी लाठी चार्ज के दौरान लाला लाजपत राय जी गंभीर रूप से घायल हो गए थे और उनकी मौत हो गई।
जिसके बाद भगत सिंह (Bhagat Singh) का अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा और भी ज्यादा बढ़ गया क्योंकि भगत सिंह लाला लाजपत राय जी से बहुत प्रभावित थे और इसके बाद उन्होंने और उनकी पार्टी ने भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय जी के मौत का बदला लेने का ठान लिया था।
इसके बाद भगत सिंह (Bhagat Singh) जी ने लाला जी की मौत का बदला लेने के लिए अपने क्रांतिकारियों के साथ मिलकर जेपी सांडर्स को मारने की गुप्त योजना बनाई लेकिन यह योजना ठीक तरीके से अंजाम तक नहीं पहुंच पाई।
दरअसल भगत सिंह (Bhagat Singh) ने अपने साथियों के साथ मिलकर भूल से सांडर्स की जगह पुलिस अधिकारी स्कॉट को मार दिया। जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने उनको ढूंढने के लिए चारों तरफ जाल बिछा दिया।
और फिर वह खुद को बचाने के लिए लाहौर से भाग निकले, लेकिन उन्होंने खुद को बचाने के लिए बाल और दाढ़ी कटवा दी, जो कि उनके सामाजिक, धार्मिकता के खिलाफ थी। लेकिन भगत सिंह का मकसद देश को आजाद करवाना था।
सबक सिखाने के लिए ब्रिटिश सरकार की असेम्बली पर किया हमला
भारत की आजादी के महानायक भगत सिंह (Bhagat Singh) कार्ल मार्क्स के सिद्धान्तों से अत्याधिक प्रभावित थे और वे समाजवाद के पक्के पोषक भी थे। इसीलिए वो पूंजीपतियों द्वारा मजदूरों पर हो रहे शोषण की नीति के खिलाफ थे।
वहीं उसी दौरान अंग्रेजी हुकूमत और उनके नुमाईन्दों द्वारा मजदूरों पर अत्याचार करना बढ़ता जा रहा था। वहीं उनकी पार्टी मजदूरों के लिए बनी इन नीतियों के खिलाफ थी और मजदूर विरोधी ऐसी नीतियों को ब्रिटिश संसद में पारित न होने देना उनके दल का मुख्य मकसद था।
उसी दौरान यह सभी चाहते थे कि अंग्रेजी शासन को इस बात का पता चलना चाहिए कि हिन्दुस्तान की जनता के दिल में अंग्रेजों के बढ़ रहे अत्याचार और उनकी नीतियों के खिलाफ भारी रोष है। वहीं ऐसा करने के लिए उनकी पार्टी ने दिल्ली की केन्द्रीय एसेम्बली में बम फेंकने का प्लान बनाया।
वहीं इस दौरान चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ये सब मिल चुके थे लेकिन भगत सिंह इस काम को बिना किसी खून-खराबे के अंग्रेजों तक अपनी आवाज़ पहुंचाना चाहते थे।
इसलिए उन्होंने बड़ा धमाका करने के बारे में सोचा क्योंकि भगत सिंह (Bhagat Singh) कहते थे कि अंग्रेज बहरे हो गए हैं और उन्हें ऊंचा सुनाई देता है, जिसके लिए बड़ा धमाका करना जरूरी है।
वहीं उन्होंने सिर्फ अंग्रेजों के कान तक अपनी आवाज करने के उद्देश्य से यह फैसला लिया कि वे लोग ब्रिटिश सरकार की क्रेन्द्रीय असेम्बली पर हमला कर देंगे।
हालांकि, शुरुआत में भारत के वीर सपूत सरदार भगत सिंह (Bhagat Singh) के इस विचार से उनकी पार्टी के अन्य लोग सहमत नहीं थे, लेकिन बाद में सबकी सहमति से भगत सिंह ने अपने साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर 1929 को अंग्रेज सरकार की केन्द्रीय असेम्बली हॉल में बम फेंका, आपको बता दें कि यह बम खाली जगह पर फेंका गया था जहां कोई भी शख्स मौजूद नहीं था। वहीं बम फेंकते ही तेज आवाज के साथ पूरा हॉल धुएं से भर गया।
अपने फैसले के मुताबिक भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त बम फेंकने के बाद अपनी जगह से भागे नहीं बल्कि वहां खड़े होकर उन्होंने इंकलाब-जिन्दाबाद, साम्राज्यवाद-मुर्दाबाद!” का नारा लगाया और अपने साथ लाये हुए पर्चे हवा में उछाल दिए।
बहरी हो गयी ब्रिटिश सरकार तक उसकी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने के मकसद से भगत सिंह (Bhagat Singh) ने यह कदम उठाया था। वहीं इस कदम के लिए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त दोनों को पुलिस ने ग़िरफ़्तार कर लिया था।
वहीं सजा का ऐलान होने के तुरंत बाद ब्रिटिश पुलिस ने लाहौर में HSRA की बम की फैक्ट्रियों पर छापे मारने शुरु कर दिए थे जिसके बाद उस समय देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे बहुत से क्रांतिकारियों को उसमें पकड़ा गया था।
जिनमें हंसराज वोहरा,जय गोपाल और फणीन्द्र नाथ घोष प्रमुख थे। इसके अलावा 21 अन्य क्रांतिकारियों को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया था।
जिनमें से सुखदेव जतिंद्र नाथ दास और राजगुरु भी शामिल थे। इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि लाहौर कांस्पीरेसी केस,असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट सांडर्स के मर्डर की योजना और बम बनाने के जुर्म में भी भगत सिंह (Bhagat Singh) की गिरफ्तारी का आदेश दिया गया था।
शहीद भगत सिंह और उनके साथियों की कारावास में भूख हड़ताल
भगत सिंह ब्रिटिश सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ थे और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने से वे कभी पीछे नहीं होने वाले भारत के वीर योद्धाओं में एक थे।
यही वजह है कि जब वह जेल की सजा काट रहे थे तो उन्होंने जेल में अंग्रेजी कैदियों और भारतीय कैदियों के बीच होने वाले भेद-भाव और उनके साथ हो रहे बुरे व्य्वहार और अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज उठाई थी।
और इसके साथ ही जेल में कैदियों के लिए उचित सुविधाएं देने के मांग की थी। इसके लिए भगत सिंह और उनके साथियों ने जेल में 64 दिनों की भूख हड़ताल कर दी।
वहीं उस भूख हड़ताल की वजह से जेल में उनके एक साथी जतीन्द्रनाथ ने अपने प्राण त्याग दिए, जिससे आम लोगों में क्रूर ब्रिटिश शासकों के खिलाफ और भी ज्यादा रोष भर गया।
इसके अलावा उन्हें और उनके अन्य साथियों को जेल में रहते हुए कई यातनाओं से गुजरना पड़ा था लेकिन देश की रक्षा के लिए मर मिटने वाले शहीद भगत सिंह (Bhagat Singh) के फौलादी इरादों के सामने क्रूर ब्रिटिश सरकार भी कुछ नहीं कर सकी।
देश की आजादी के लिए इस युवा क्रांतिकारी ने अपना पूरा जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया था, और इस दौरान भगत सिंह (Bhagat Singh) के फौलादी इरादे और भी ज्यादा मजबूत हो गए थे। वह गुलाम भारत को आजाद करवाने के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार थे।
जिससे वह अंग्रेजी सरकार की आंखों में खटकने लगे थे और भगत सिंह (Bhagat Singh) को इसी वजह से अपने देश प्रेम की कीमत भी चुकानी पड़ी थी। उन्हें करीब 2 साल जेल में बिताने पड़े थे।
असेम्बली की घटना के बाद करना पड़ा आलोचनाओं का सामना
ब्रिटिश सरकार की केन्द्रीय असेम्बली में बन बिस्फोट करने की घटना के बाद राजनीतिक क्षेत्र में भगत सिंह (Bhagat Singh) को काफी आलोचना का भी सामना करना पड़ा था। लेकिन भगत सिंह एक सच्चे देश भक्त की तरह अपने देश को आजाद करवाने की लड़ाई करते रहे।
आपको बता दें कि भगत सिंह (Bhagat Singh) ने इस घटना के आलोचकों को जवाब देते हुए कहा था कि आक्रामक रूप से लागू होने पर बल “हिंसा’ है और नैतिक रूप से अन्यायपूर्ण है, लेकिन जब इसका इस्तेमाल किसी वैध कारण से किया जाता है, तो इसका नैतिक औचित्य खुद व खुद विकसित हो जाता है।
इसके बाद इस केस की सुनवाई हुई थी। जिसमें भगत सिंह (Bhagat Singh) ने अपने केस की पैरवी खुद ही की थी जबकि उनके साथ बटुकेश्वर दत्त का केस अफसर अली ने लड़ा था।
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी – Bhagat Singh Death
पूरी कानूनी कार्यवाही बेहद धीमी गति से हो रही थी, जिसको देखते हुए 1 मई 1930 को वायसराय लॉर्ड इरविन ने निर्देश दिया था। जिससे जस्टिस जे. कोल्डस्ट्रीम, जस्टिस आगा हैदर और जस्टिस जीसी हिल्टन समेत एक खास ट्रिब्यूनल स्थापित किया गया था।
ट्रिब्यूनल को बिना दोषी की उपस्थिति के भी आगे बढ़ने का अधिकार था, वहीं ये पूरा मामला एक तरफा परीक्षण था जो कि शायद ही कोई सामान्य कानूनी अधिकार दिशानिर्देशों का पालन करता था।
वहीं ट्राइब्यूनल ने 7 अक्टूबर 1930 को अपने 300 पेज का फैसला सौंपा। जिसमें कोर्ट ने यह फैसला सुनाया था कि अंग्रेज सरकार के पुलिस अधिकारी सांडर्स हत्या के मामले में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को दोषी पाया गया है।
जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जिसके बाद भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु के खिलाफ मुकदमा चलाया गया।
वहीं 7 अक्टूबर 1930 को अदालत ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को भारतीय दंड संहिता की धारा 129, 302 और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 और 6एफ के तहत फांसी की सजा सुनायी गई। वहीं इन तीनों क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाने का दिन 24 मार्च 1931 को तय किया गया।
वहीं उस समय पूरे देश में भगत सिंह की रिहाई के लिए प्रदर्शन हो रहे थे जिसके चलते अंग्रेज सरकार को डर था कि इन तीनों क्रांतिकारियों को फांसी की सजा से कहीं बवाल न हो जाए और फैसला बदल न जाए।
इसलिए अंग्रेजों ने उन्हें एक दिन पहले 23 मार्च 1931 की शाम को करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह और उनके साथियों सुखदेव और राजगुरु को लाहौर की जेल में फांसी दे दी।
आपको बता दें कि भगत सिंह फाँसी पर जाने से पहले लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और जब उनसे उनकी आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने लेनिन की जीवनी को पूरा करने का समय मांगा और जब जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके फाँसी का वक्त आ गया है।
तब उन्होंने कहा था- “जरा ठहरिये! “पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले”। और फिर चंद समय बाद ही उन्होंने अपनी किताब बंद कर हवा में उछाल दी और बोले, ठीके है, अब चलो।
इसके साथ ही भगत सिंह ने फांसी दिए जाने के कुछ समय पहले ही जेल के एक मुस्लिम सफ़ाई कर्मचारी बेबे से अनुरोध किया था कि वो उनके लिए फांसी दिए जाने से एक दिन पहले शाम को अपने घर से खाना ले आए लेकिन भगत सिंह की यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी क्योंकि उन्हें 12 घंटे पहले ही फांसी देने का फैसला ले लिया गया था और सफाई कर्मचारी बेबे जेल के गेट के अंदर भी नहीं घुस पाया था।
इसके साथ ही भगत सिंह ने अपना आखिरी संदेश साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और इंकलाब जिंदाबाद दिया।
तीनों क्रांतिकारियों ने गाए आज़ादी का गीत – Independence Song
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु तीनों क्रांतिकारियों को फांसी की तैयारी के लिए उनकी कोठरियों से बाहर निकाला गया। जिसके बाद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने अपने हाथ जोड़े और अपना प्रिय आज़ादी गीत गाने लगे-
कभी वो दिन भी आएगा
कि जब आज़ाद हम होंगें
ये अपनी ही ज़मीं होगी
ये अपना आसमाँ होगा।।
फिर इन तीनों का एक-एक करके वज़न लिया गया। जिसमें सब के वज़न बढ़ गए थे। इसलिए कि वे अपने अंतिम दिनों में काफी खुश थे, क्योंकि वे अपने देश के लिए कुर्बान होने जा रहे थे लेकिन जब इन्हें फांसी देने का ऐलान किया गया तो जेल के अन्य कैदी रो रहे थे।
वहीं फांसी दिए जाने से पहले भगत सिंह को उनके साथियों को उनका आखिरी स्नान करने के लिए कहा गया और फिर उनको काले कपड़े पहनाए गए। लेकिन उनके चेहरे खुले रहने दिए गए।
इस तरह तीनों क्रांतिकारियों ने देश की रक्षा करते हुए अपने जीवन की कुर्बानी दे दी। वहीं शहीदों की फांसी देने के बाद अंग्रेजों द्धारा तीनों शहीदों के शवों को अंतिम संस्कार के लिए सतलुज नदी के किनारे चुपचाप तरीके से ले जाया गया।
और फिर इन तीनों क्रांतिकारी के शवों कों नदी के किनारे जलाया जाने लगा। जिसके बाद वहां गांव वालों की काफी भीड़ इकट्ठी होगी। जिसे देख अंग्रेज जलते हुए शवों को नदी में फेंक कर भाग खड़े हुए।
जिसके बाद गांव के लोगों ने ही विधिवित तरीके से तीनों शहीदों के शवों का अंतिम संस्कार किया और उनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना की। महान क्रांतिकारी के शब्दों को कभी नहीं भुलाया जा सकता है ” खुश रहो, हम तो सफर करते हैं ….
भगत सिंह की फांसी और गांधी जी का विरोध
आपको बता दें कि देश के लिए मर मिटने वाले शहीद भगत सिंह को फांसी दिए जाने पर लोगों ने अंग्रेजों के साथ-साथ भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को दोषी ठहराया। यही नहीं गांधी जी जब लाहौर के कांग्रेस अधिवेशन में शामिल होने जा रहे थे।
तब इससे क्रोधित हुए लोगों ने काले झंडों के साथ गांधी जी का स्वागत किया और कई जगह तो गांधी जी पर हमला तक किया गया।
दरअसल, गांधी जी का ब्रितानी सरकार के साथ समझौता हुआ था। इस समझौते में अहिंसक तरीके से संघर्ष करने के दौरान पकड़े गए सभी कैदियों को छोड़ने की बात कही गई लेकिन राजकीय हत्या के मामले में फांसी की सज़ा पाने वाले भगत सिंह को माफ़ी नहीं मिल पाई।
और फिर इसके बाद लोगों ने गांधी जी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करना शुरु कर दिया और यह सवाल उठाया कि जिस समय भारत के महान क्रांतिकारी भगत सिंह और उनके दूसरे साथियों को सजा दी जा रही है उस समय ब्रितानी सरकार के साथ समझौता कैसे किया जा सकते हैं।
वहीं गांधी जी और इरविन के इस समझौता का कांग्रेस के अंदर स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस समेत कई लोगों ने जमकर विरोध किया। क्योंकि उन लोगों का मानना था कि अगर अंग्रेज सरकार भगत सिंह की फांसी की सजा को माफ नहीं कर रही थी तो समझौता करने की कोई जरूरत नहीं थी। हालांकि, कांग्रेस वर्किंग कमेटी पूरी तरह से गांधी जी के इस फैसले के समर्थन में थी।
इस तरह से लोगों के विरोध के बाद गांधी जी ने इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रयाएं दी है और कहा है कि ‘अंग्रेजी सरकार गंभीर रूप से उकसा रही है। लेकिन समझौते की शर्तों में फांसी रोकना शामिल नहीं था। इसलिए इससे पीछे हटना ठीक नहीं है।
इसके अलावा गांधी जी ने अपनी किताब ‘स्वराज’ में इस बात का भी उल्लेख किया है कि”मौत की सज़ा नहीं दी जानी चाहिए”
इसके अलावा गांधी जी ने भगत सिंह की बहादुरी को मानते हुए उन्होंने उनके मार्ग का साफ शब्दों में विरोध किया और गैर कानूनी बताते हुए यह भी कहा था कि “भगत सिंह और उनके साथियों के साथ बात करने का मौका मि ला होता तो मैं उनसे कहता कि उनका चुना हुआ रास्ता ग़लत और असफल है।
ईश्वर को साक्षी रखकर मैं ये सत्य ज़ाहिर करना चाहता हूं कि हिंसा के मार्ग पर चलकर स्वराज नहीं मिल सकता सिर्फ मुश्किलें मिल सकती हैं।
वहीं यह भी कहा जाता है कि जब गांधी जी ने भगत सिंह की फांसी की सजा को बचाने के लिए ब्रिटिश सरकरा को चिट्ठी लिखी थी जब तक बहुत देर हो चुकी थी वहीं दूसरी तरफ भगत सिंह नहीं चाहते थे कि उनकी फांसी की सजा माफ की जाए क्योंकि भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी का मानना था कि “उनकी शहादत से भारतीय जनता और उद्विग्न हो जाएगी जो कि स्वतंत्रता के लिए जरूरी है।
और ऐसा उनके जिन्दा रहने से शायद ही हो पाये” इसी वजह से उन्होंने मौत की सजा सुनाने के बाद भी माफ़ीनामा लिखने से साफ मना कर दिया था।
गांधीजी उनकी सज़ा माफ़ नहीं करा सके, इसे लेकर गांधीजी से भगत सिंह की नाराजगी से जुड़े साक्ष्य नहीं मिले हैं।
शहीद भगत सिंह का व्यक्तित्व – Bhagat Singh Information
भगत सिंह, भारत के एकमात्र ऐसे युवा क्रांतिकारी थे जिन्होंने देश के हर युवा में देश को गुलामी की बेडि़यों से आजाद करने का जुनून भर दिया था और अपने फौलाद इरादों से उनको प्रेरित किया था।
वे देशभक्ति और कुर्बानी की वो मिसाल थे जिनके बहादुर व्यक्तित्व को उनके द्धारा लिखे गए लेखों से ठीक तरह से समझा जा सकता है।
शहीद भगत सिंह द्वारा लिखी गयी क़िताबें – Bhagat Singh Books
आपको बता दें कि भगत सिंह ने साल 1930 में लाहौर के सेंद्रल जेल में एक लेख लिखा था – ”मै नास्तिक क्यों हूं ?”(Why I am an Atheist?) । उनके इस लेख में व्यक्तित्व की झलक साफ देखी जा सकती है।
भारत के नौजवानों को प्रेरणा देने के लिए जेल में रहते हुए भी भगत सिंह कई लेख लिखते रहे और अपने लेखों के माध्यम से अपने क्रान्तिकारी विचार व्यक्त करते रहे।
जिससे हर भारतीय नौजवान में न सिर्फ अपनी देश प्रति सम्मान की भावना पैदा हुई बल्कि आजाद भारत में रहने की भी अलख जगी जो कि वाकई प्रेरणादायी है।
भगतसिंह के नाम पर देश में उनकी धरोहर – Heritage of Bhagat Singh
भारत के महान क्रांतिकारी भगत सिंह के सम्मान में देश की कई धरोहर का नाम उनके नाम पर रखा गया। जिससे उन्हें युगों-युगों तक याद किया जा सकेगा।
आपको बता दें कि पंजाब में शहीद भगत सिंह के जिले के खटकार कालन में इनके नाम पर सरदार भगत सिंह म्यूजियम हैं। जहां पर इनकी यादों को संजो कर रखा गया है।
जिनमें कुछ आधी जली हुई हड्डियाँ,भगत सिंह की हस्ताक्षरित भगवद गीता, लाहौर षड्यंत्र के जजमेंट की पहली कॉपी जैसी कुछ अविस्मरणीय धरोहर संरक्षित की गयी हैं।
यही नहीं भगत सिंह के लिखे पत्र,कविताएं और लेख देश के लिए वो अमूल्य धरोहर हैं जो हर पल देशप्रेमियों को प्रेरित करती हैं।
महान क्रांतिकारी भगत सिंह पर कुछ फ़िल्में – Bhagat Singh Movie
इसके अलावा भारत के महान क्रांतिकारी भगत सिंह पर कुछ फ़िल्में भी बनाई गयी हैं। जैसे – शहीद (1965) और दी लिजेंड ऑफ़ भगत सिंह (2002)। वहीं “मोहे रंग दे बसंती चोला” और “सरफरोशी की तम्मना” भगत सिंह से जुड़े वो गाने हैं जो हर भारतीय में देशभक्ति की भावना पैदा करते हैं।
इसके अलावा भी उन पर बहुत सी किताबें और लेख भी लिखें जा चुके हैं।
भारत के महान क्रांतिकारी भगत सिंह के देश के लिए किए गए त्याग और बलिदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है। भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारी की वीरगाथा भारत देश को गौरान्वित करती है और देश का सिर गर्व से ऊंचा करती है।
उनकी बलिदान की कहानी इतिहास के पन्नों पर अमर है और लाखों नौजवान उन्हें अपना प्रेरणास्त्रोत मानते हैं। भारत के महान क्रांतिकारी और सच्चे देशभक्त को ज्ञानी पंडित की टीम शत-शत नमन करती है।
एक नजर में हुतात्मा भगतसिंग की जानकारी – Bhagat Singh History In Hindi
1) 1924 में भगतसिंग / Bhagat Singh कानपूर गये। वह पहलीबार अखबार बेचकर उन्हें अपना घर चलाना पडा। बाद में एक क्रांतिकारी गणेश शंकर विद्यार्थी इनके संपर्क में वो आये। उनके ‘प्रताप’ अखबार के कार्यालय में भगतसिंग को जगा मिली।
2) 1925 में भगतसिंग / Bhagat Singh और उनके साथी दोस्तों ने नवजवान भारत सभा की स्थापना की।
3) दशहरे को निकाली झाकी ने कुछ बदमाश लोगोने बॉम्ब डाला था। इस के कारण कुछ लोगोकी मौत हुयी। इस के पीछे क्रांतिकारीयोका हात होंगा, ऐसा पुलिस को शक था। उसके लिये भगतसिंग को पड़कर उनको जेल भेजा गया पर न्यायालय से वो बेकसूर छुट कर आये।
4) ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन असोसिएन’ इस क्रांतिकारी संघटने के भगतसिंग सक्रीय कार्यकर्ता हुये।
5) ‘किर्ती’ और ‘अकाली’ नाम के अखबारों के लिये भगतसिंग लेख लिखने लगे।
6) समाजवादी विचारों से प्रभावित हुये युवकोंने देशव्यापी क्रांतिकारी संघटना खडी करने का निर्णय लिया। चंद्रशेखर आझाद, भगतसिंग, सुखदेव आदी। युवक इस मुख्य थे। ये सभी क्रांतिकारी धर्मनिरपेक्ष विचारों के थे।
7) 1928 में दिल्ली के फिरोजशहा कोटला मैदान पर हुयी बैठक में इन युवकोने ‘हिन्दुस्थान सोशॅलिस्ट रिपब्लिकन असोसिएशन’ इस संघटने की स्थापना की भारत को ब्रिटीशो के शोषण से आझाद करना ये उस संघटना का उददेश था।
उसके साथ ही किसान – कामगार का शोषण करने वाली अन्यायी सामाजिक – आर्थिक व्यवस्था को भी बदलना था। संघटने के नाम में ‘सोशॅलिस्ट’ इस शब्द का अंतर्भाव करने की सुचना भगतसिंग ने रखी और वो सभी ने मंजूर की।
शस्त्र इकठ्ठा करना और कार्यक्रमों की प्रवर्तन करना ये कम इस स्वतंत्र विभाग के तरफ सौपी गयी। इस विभाग का नाम ‘हिंदुस्तान सोशॅलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’ था और उसके मुख्य थे चंद्रशेखर आझाद।
8) 1927 में भारत में कुछ सुधारना देने के उद्दश से ब्रिटिश सरकार ने ‘सायमन कमीशन’ की नियुक्ति की पर सायमन कमीशन में सातो सदस्य ये अंग्रेज थे। उसमे एक भी भारतीय नही था। इसलिये भारतीय रास्ट्रीय कॉग्रेस ने सायमन कमीशन पर ‘बहिष्कार’ डालने का निर्णय लिया।
उसके अनुसार जब सायमन कमीशन लाहोर आया तब पंजाब केसरी लाला लजपतराय इनके नेतृत्त्व में निषेध के लिये बड़ा मोर्चा निकाला था। पुलिस के निर्दयता से किये हुये लाठीचार्ज में लाला लजपत राय घायल हुये और दो सप्ताह बाद अस्पताल में उनकी मौत हुयी।
9) लालाजि के मौत के बाद देश में सभी तरफ लोग क्रोधित हुये। ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन असोसिएशन ने तो लालाजी की हत्या का बदला लेने का निर्णय लिया। लालाजी के मौत के जिम्मेदार स्कॉट इस अधिकारी को मरने की योजना बनायीं गयी। इस काम के लिए भगतसिंग, चंद्रशेखर आझाद, राजगुरु, जयगोपाल इनको चुना गया।
उन्होंने 17 दिसंबर 1928 को स्कॉट को मरने की तैयारी की लेकिन इस प्रयास में स्कॉट के अलावा सँडर्स ये दूसरा अंग्रेज अधिकारी मारा गया। इस घटना के बाद भगतसिंग / Bhagat Singh भेष बदलके कोलकता को गये। उस जगह उनकी जतिंद्रनाथ दास से पहचान हुई उनको बॉम्ब बनाने की कला आती थी। भगतसिंग और जतिंद्रनाथ इन्होंने बम बनाने की फैक्टरी आग्रा में शुरु किया।
10) उसके बाद भगतसिंग / Bhagat Singh और उनके सहयोगी इनके उपर सरकार ने अलग – अलग आरोप लगाये। पहला आरोप उनके उपर कानून बोर्ड के हॉल में बम डालने का था। इस आरोप में भगतसिंग और बटुकेश्वर दत्त इन दोनों को आजन्म कारावास की सजा हुयी। लेकिन सँडर्स के खून के आरोप में भगतसिंग, सुखदेव और राजगुरु इन्हें दोषी करार करके फासी की सजा सुनाई गयी।
10) 23 मार्च 1931 को भगतसिंग, सुखदेव और राजगुरु इन तीनो को महान क्रांतिकारीयोको फासी दी गयी। ‘इन्कलाब जिंदाबाद’, ‘भारत माता की जय’ की घोषणा देते हुये उन्होंने हसते-हसते मौत को गले लगाया।
Bhagat Singh Slogans & Quotes:
“सीने पर जो जख्म हैं, सब फूलो के गुच्छे हैं। हमें पागल ही रहने डॉ हम पागल ही अच्छे हैं।”
“मैं एक मानव हू और जो कुछ भी मानवता को प्रभावित करता हैं उससे मुझे मतलब हैं!”
“जिंदगी अपने दम पर जी जाती हैं, दूसरो के कंधो पर तो जनाजे निकलते हैं।”
“सरे जहा से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा।”
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