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Chandra Shekhar Azad – जब कभी भी आपको किसी शक्तिशाली व्यक्तित्व को देखने की इच्छा हो तो आपके दिमाग में सबसे पहले नाम आता हैं चंद्र शेखर आजाद का।
Chandra Shekhar Azad – चंद्र शेखर आजाद – एक महान युवा क्रांतिकारी जिन्होनें देश की रक्षा के लिए अपना प्राण भी न्यौछावर कर दिए। आजाद(Chandra Shekhar Azad), भारत के एक ऐसे वीर सपूत थे जिन्होनें अपनी बहादुरी और साहस की कहानी खुद लिखी है।
“मेरे भारत माता की इस दुर्दशा को देखकर यदि अभी तक आपका रक्त क्रोध नहीं करता है, तो यह आपकी रगों में बहता खून है ही नहीं या फिर बस पानी है” ~ CHANDRA SHEKHAR AZAD
चंद्रशेखर आजाद जीवन परिचय – Chandra Shekhar Azad Biography
कम उम्र से ही आजाद (Chandra Shekhar Azad) के भीतर देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी थी। भारत की आजादी में इस युवा क्रांतिकारी का अहम योगदान है।
जब भी किसी क्रांतिकारी की बात होती है तो चंद्र शेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) का नाम सबसे पहले जहन में आता है। वे भारत के युवा और उग्र स्वतंत्रता सेनानी थे Chandra Shekhar Azad – चंद्र शेखर आजाद का कहना था कि
”मैं जीवन की अंतिम सांस तक देश के लिए शत्रु से लड़ता रहूंगा।”
युवा क्रांतिकारी ने मरते दम तक अंग्रेजों के हाथ नहीं आने की कसम खाई थी और मरते दम तक वे अंग्रेजों के हाथ भी नहीं आए थे वे अपनी आखिरी सांस तक आजाद (Chandra Shekhar Azad) ही रहे और देश के लिए मर मिट गए। चंद्र शेखर आजाद ने यह भी कहा था कि –
”अभी भी जिसका खून ना खौला, वो खून नहीं पानी है जो देश के काम ना आए, वो बेकार जवानी है।”
आज इस महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद – Chandrashekhar Azad के महान जीवन के बारे में जानते हैं।
चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय – Chandra Shekhar Azad History
नाम – चंद्रशेखर आजाद (Chandrashekhar)
जन्म का नाम – पंडित चंद्रशेखर तिवारी
जन्म – 23 जुलाई, 1906
जन्मस्थान – भाभरा (मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में) (Chandra Shekhar Azad Birth Place)
पिता का नाम – पंडित सीताराम तिवारी
माता का नाम – जागरानी देवी
शिक्षा – वाराणसी में संस्कृत पाठशाला
संस्था से जुड़े – हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) बाद में नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) कर दिया गया।
मृत्यु – 27 फरवरी, 1931
मृत्युस्थान – अल्लाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क
आंदोलन – स्वतंत्रता संग्राम के प्रसिद्द क्रांतिकारी, स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका, काकोरी कांड में अहम भूमिका
राजनीतिक विचारधारा – उदारवाद, समाजवाद, अराजकतावाद
धर्म – हिन्दू धर्म
स्मारक – शेखर आज़ाद मेमोरियल (शहीद स्मारक), ओरछा, टीकमगढ़, मध्य प्रदेश
भारत के महान क्रांतिकारी चंद्र शेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) ने अटूट देश भक्ति की भावना और अपने साहस से स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाई और कई लोगों को इस आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए उकसाया।
वीर सपूत चंद्र शेखर आजाद ने अपनी बहादुरी के बल पर काकोरी ट्रेन में डकैती डाली और वाइसराय की ट्रेन को उड़ाने की कोशिश भी की यही नहीं इस महान क्रांतिकारी ने लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने के लिए सॉन्डर्स पर गोलीबारी की इसके अलावा उन्होनें भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सभा का गठन किया।
वे भगत सिंह के सलाहकार और एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे चन्द्र शेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) ने गुलाम भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करवाने के लिए अपन प्राणों की आहुति दी थी।
चन्द्र शेखर आजाद का प्रारंभिक जीवन – Chandra Shekhar Azad Information
भारत के वीर सपूत चंद्र शेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) का जन्म 23 जुलाई, 1906 (Chandra Shekhar Azad Date of Birth )को मध्यप्रदेश के भाभरा गांव में हुआ था। चंद्र शेखर आजाद का वास्तविक नाम चंद्रशेखर सीताराम तिवारी था।
क्रांतिकारी चंद शेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) के पिता का नाम सीताराम तिवारी था जिन्हें अकाल की वजह से अपना पैतृक गांव बदरका छोड़ना पड़ा इसके बाद वे अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए भाभरा गांव में बस गए।
चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) के पिता एक ईमानदार, स्वाभिमान और दयालु प्रवृत्ति के व्यक्ति थे।
बचपन से ही था निशानेबाजी का शौक – Life History of Chandrashekhar Azad
चंद्र शेखर आजाद का बचपन बाहुल्य क्षेत्र भावरा गांव में ही बीता। बचपन में चंद्रशेखर आजाद ने भील बालकों के साथ रहते-रहते धनुष बाण चलाना सीख लिया था इसके साथ ही निशानेबाजी के शौक ने उन्हें अच्छा निशानेबाज बना दिया था।
आपको बता दें कि चंद्र शेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) बचपन से ही विद्रोही स्वभाव के थे उनका मन पढ़ाई-लिखाई में नहीं लगता था उन्हें बचपन से ही खेल-कूद में मन लगता था।
चंद्र शेखर आजाद की शिक्षा – Chandra Shekhar Azad Education
चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) को प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही दी गई। बचपन से ही चंद्रशेखर की पढ़ाई में कोई खास रूचि नहीं थी। इसलिए चंद्रशेखर को पढ़ाने इनके पिता के करीबी दोस्त मनोहर लाल त्रिवेदी जी आते थे। जो कि चंद्र शेखर और उनके भाई सुखदेव को भी पढ़ाते थे।
आजाद को संस्कृत का विद्दान बनाना चाहती थी मां जगरानी देवी
Chandrashekhar Azad – चंद्र शेखर आजाद की माता का नाम जगरानी देवी था जो कि बचपन से ही अपने बेटे चंद्रशेखर आजाद को संस्कृत में निपुण बनाना चाहती थी वे चाहती थी कि उनका बेटा संस्कृत का विद्दान बने।
इसीलिए चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) को संस्कृत सीखने लिए काशी विद्यापीठ, बनारस भेजा गया।
गांधी के असहयोग आंदोलन में चंद्र शेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) ने लिया हिस्सा – Non Cooperation Movement
महात्मा गांधी ने दिसंबर 1921 में असहयोग आन्दोलन की घोषणा की। उस समय चंद्र शेखर आजाद महज 15 साल के थे लेकिन तभी से इस वीर सपूत के अंदर देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी थी यही वजह है कि वे गांधी जी के असहयोग आंदोलन का हिस्सा बने और परिणामस्वरूप उन्हें कैद कर लिया गया।
आजाद के नाम से लोकप्रिय हुए पंडित चंद्रशेखर तिवारी
जब चंद्रशेखर को जज के सामने लाया गया तो नाम पूछने पर चंद्रशेखर ने अपना नाम “आजाद” बताया था, उनके पिता का नाम “स्वतंत्र” और उनका निवास स्थान “जेल” बताया।
चंद्रशेखर के ऐसे जवाबों से जज आग बबूला हो गए और चंद्र शेखर को 15 कोड़ों से मारने की सजा सुनाई वहीं अपनी बात पर अडिग रहने वाले चंद्रशेखर ने उफ्फ तक नहीं किया और हर बेंत के सात “भारत माता की जय” का नारा लागाया।
इस घटना के बाद से पंडित चंद्रशेखर तिवारी, आजाद के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
चंद्र शेखर आजाद का क्रांतिकारी जीवन – About Chandrashekhar Azad
1922 में महात्मा गांधी ने चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) को असहयोग आंदोलन से निकाल दिया जिससे आजाद की भावना को काफी ठेस पहुंचा और आजाद ने गुलाम भारत को आजाद करने के प्रण लिया। इसके बाद एक युवा क्रांतिकारी प्रनवेश चटर्जी ने उन्हें हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के संस्थापक राम प्रसाद बिस्मिल से मिलवाया।
हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन यह एक क्रांतिकारी संस्था थी। वहीं आजाद (Chandra Shekhar Azad) इस संस्था और खास कर बिस्मिल की समान स्वतंत्रता और बिना भेदभाव के सभी को एक अधिकारी देने जैसे विचारों से काफी प्रभावित हुए।
जब आजाद ने एक कंदील पर अपना हाथ रखा और तबतक नही हटाया जबतक की उनकी त्वचा जल ना जाये तब आजाद को देखकर बिस्मिल काफी प्रभावित हुए।
जिसके बाद बिस्मिल आजाद (Chandra Shekhar Azad) को अपनी संस्था का सदस्य बना दिया था। इसके बाद चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के सक्रीय सदस्य बन गए थे और बाद में वे अपने एसोसिएशन के लिये चंदा एकत्रित करने में जुट गए।
शुरुआत में ये संस्था गांव की गरीब जनता का पैसा लूटती थी लेकिन बाद में इस दल को समझ में आ गया कि गरीब जनता का पैसा लूटकर उन्हें कभी अपने पक्ष में नहीं कर सकते।
इसलिए चंद्रशेखर के नेतृत्व में इस संस्था ने अंग्रेजी सरकार की तिजोंरियों को लूटकर, डकैती कर अपनी संस्था के लिए चंदा इकट्ठा करने का फैसला लिया।
इसके बाद इस संस्था ने अपने उद्देश्यों से जनता को अवगत करवाने के लिए अपना मशहूर पैम्फलेट ”द रिवाल्यूशनरी” प्रकाशित किया क्योंकि वे एक नए भारत का निर्माण करना चाहते थे जो कि सामाजिक और देशप्रेम की भावना से प्रेरित हो इसके बाद उन्होनें काकोरी कांड को अंजाम दिया।
काकोरी कांड – Kakori Kand
1925 में हुए काकोरी कांड इतिहास के पन्नों पर सुनहरे अक्षरों में वर्णन किया गया है।
काकोरी ट्रेन की लूट में चन्द्र शेखर आजाद – Chandrashekhar Azad का नाम शामिल हैं। इसके साथ ही इस कांड में भारत के महान क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी, और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई थी।
आपको बता दें हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के 10 सदस्यों ने काकोरी ट्रेन में लूटपाट की वारदात को अंजाम दिया था। इसके साथ ही अंग्रेजों का खजाना लूटकर उनके सामने एक चुनौती पेश की थी।
वहीं इस घटना के दल के कई सदस्यों को गिरफ्तार किया गया था तो कई को फांसी की सजा दी गई थी। इस तरह से ये दल बिखर गया था।
इसके बाद चंद्र शेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) के सामने दल को फिर से खड़ा करने की चुनौती सामने आ गई। ओजस्वी, विद्रोही और सख्त स्वभाव की वजह से वे अंग्रेजों के हाथ नहीं आ पाए और वे अंग्रेजों को चकमा देकर दिल्ली चले गए।
दिल्ली में क्रांतिकारियों की एक सभा का आयोजन किया गया। इस क्रांतिकारियों की सभा में भारत के स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह भी शामिल हुए। इस दौरान नए नाम से नए दल का गठन किया गया और क्रांति की लड़ाई को आगे बढ़ाए जाने का भी निर्णय लिया गया।
नए दल का नाम “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” रखा गया साथ ही Chandrashekhar Azad – चंद्र शेखर आजाद को इस नए दल का कमांडर इन चीफ भी बनाया गया वहीं इस नए दल का प्रेरक वाक्य ये बनाया गया कि –
“हमारी लड़ाई आखिरी फैसला होने तक जारी रहेगी और वह फैसला है जीत या मौत का।”
लाला लाजपत राय की हत्या का बदला और सांडर्स की हत्या
हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन दल ने फिर क्रांतिकारी और अपराधिक गतिविधिओं को अंजाम दिया जिससे एक बार फिर अंग्रेज चंद्र शेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) के दल के पीछे पड़ गए।
इसके साथ ही चंद्र शेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) ने लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने का भी फैसला किया और अपने साथियों के साथ मिलकर 1928 में सांडर्स की हत्या की वारदात को अंजाम दिया। भारतीय क्रांतिकारी चंद्र शेखर आजाद का मानना था कि,
“संघर्ष की राह में हिंसा कोई बड़ी बात नहीं” – आजाद
वहीं जलियांवाला बाग में हुए हत्याकांड में हजारों मासूमों को बेगुनाहों पर गोलियों से दागा गया इस घटना से चंद्र शेखर आजाद की भावना को काफी ठेस पहुंची थी और बाद में उन्होनें हिंसा के मार्ग को ही अपना लिया।
आयरिश क्रांति और असेम्बली में बम फोड़ने की घटना
भारत के दूसरे स्वतंत्रता सेनानी आयरिश क्रांति के संपर्क से काफी प्रभावित थे इसी को लेकर उन्होनें असेम्बली में बम फोड़ने का फैसला लिया।
इस फैसले में Chandrashekhar Azad – चंद्रशेखर आजाद ने भगतसिंह का निष्ठा के साथ सहयोग किया जिसके बाद अंग्रेज सरकार इन क्रांतिकारियों को पकड़ने में हाथ धोकर इनके पीछे पड़ गई और ये पुर्नगठित दल फिर से बिखर गया इस बार दल के सभी लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था जिसमें भगत सिंह भी शामिल थे जिन्हें बचाने की चंद्र शेखर आजाद ने पूरी कोशिश की लेकिन अंग्रेजों के सैन्य बल के सामने वे उन्हें नहीं छुड़ा सके।
हालांकि चंद्र शेखर आजाद हमेशा की तरह इस बार भी ब्रिटिश सरकार को चकमा देकर भागने में कामयाब रहे।
झांसी में क्रांतिकारी गतिविधियां – Revolutionary activities in Jhansi
महान देशभक्त और क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) ने झांसी को अपनी संस्था “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” का थोड़े दिनों के लिए केन्द्र बनाया।
इसके अलावा वे झांसी से 15 किलोमीटर दूर ओरछा के जंगलों में अपने साथियों के साथ मिलकर तींरदाजी करते थे और एक अच्छे निशानेबाज बनने की कोशिश में लगे रहते थे।
इसके अलावा Chandrashekhar Azad – चंद्रशेखर आजाद अपने गुट के सदस्यों को ट्रेनिंग देते थे इसके साथ ही चंद्रशेखर धार्मिक प्रवृत्ति के भी थी उन्होनें सतर नदी के किनारे हनुमान मंदिर भी बनवाया था जो कि आज लाखों हिन्दू लोगों की आस्था का केन्द्र है।
आपको बता दें कि चंद्रशेखर आजाद वेश बदलने में काफी शातिर थे इसलिए वे झांसी में पंडित हरिशंकर बह्राचारी के नाम से काफी दिनों से रह रहे थे इसके साथ ही वे धिमारपुरा के बच्चों को भी पढ़ाते थे।
इस वजह से वे लोगों के बीच इसी नाम से मशहूर हो गए। वहीं बाद में मध्यप्रदेश सरकार ने धिमारपुरा गांव का नाम बदलकर चंद्र शेखर आजाद के नाम पर आजादपुरा रख दिया था।
झांसी में रहते हुए Chandrashekhar Azad – चंद्रशेखर आजाद ने शहर के सदर बाजार में बुंदेलखंड मोटर गेराज से गाड़ी चलानी भी सीख ली थी। ये उस समय की बात है जब सदाशिवराव मलकापुरकर, विश्वनाथ वैशम्पायन और भगवान दास माहौर उनके काफी करीबी माने जाते थे और वे आजाद के क्रांतिकारी दल का भी हिस्सा बन गए थे।
इसके बाद कांग्रेस नेता रघुनाथ विनायक धुलेकर और सीताराम भास्कर भागवत भी आजाद के काफी करीब दोस्तों में गिने जाने लगे।
वहीं चंद्रशेखर आजाद कुछ समय तक रूद्र नारायण सिंह के घर नई बस्ती में भी रुके थे और झांसी में भागवत के घर पर भी रुके थे।
अल्लाहाबाद के अलफ्रेड पार्क में अमर हुए आजाद – Chandra Shekhar Azad Death
अंग्रेजों ने राजगुरू, भगत सिंह, और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई थी।
वहीं चंद्र शेखर आजाद इस सजा को किसी तरह कम और उम्रकैद की सजा में बदलने की कोशिश कर रहे थे जिसके लिए वे अल्लाहाबाद पहुंचे थे इसकी भनक पुलिस प्रशासन को लग गई फिर क्या थे अल्लाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में पुलिस ने चंद्र शेखर आजाद को चारों तरफ से घेर लिया
और आजाद को आत्मसमर्पण के लिए कहा लेकिन आजाद हमेशा की तरह इस बार भी अडिग रहे और बहादुरी से उन्होनें पुलिस वालों का सामना किया लेकिन इस गोलीबारी के बीच जब चंद्रशेखर के पास मात्र एक गोली बची थी इस बार आजाद ने पूरी स्थिति को भाप लिया था और वे खुद को पुलिस के हाथों नहीं मरना देना चाहते थे इसलिए उन्होनें खुद को गोली मार ली।
इस तरह भारत के वीर सपूत चंद्रशेखर आजाद अमर हो गए और उनकी अमरगाथा इतिहास के पन्नों पर छप गई इसके साथ ही इस क्रांतिकारी वीर की वीरगाथा भारतीय पाठ्यक्रमों में भी शामिल की गई है।
Chandrashekhar Azad – शहीद चंद्रशेखर आजाद का अंतिम संस्कार अंग्रेज सरकार ने बिना किसी सूचना के कर दिया। वहीं जब लोगों को इस बात का पता चला तो वे सड़कों पर उतर आए और ब्रिटिश शासक के खिलाफ जमकर नारे लगाए इसके बाद लोगों ने उस पेड़ की पूजा करनी शुरु कर दी जहां इस भारतीय वीर सपूत ने अपनी आखिरी सांस ली थी।
इस तरह लोगों ने अपने महान क्रांतिकारी को अंतिम विदाई दी। वहीं भारत के आजाद होने के बाद जहां चंद्रशेखर आजाद ने अपनी आखिरी सांस ली थी उस पार्क का नाम बदलकर चंद्रशेखर आजाद पार्क रखा गया इसके साथ ही जिस पिस्तौल से चंद्रशेखर आजाद ने खुद को गोली मारी थी उसे इलाहाबाद के म्यूजियम में संजो कर रखा गया है।
उनकी मृत्यु के बाद भारत में बहुत सी स्कूल, कॉलेज, रास्तो और सामाजिक संस्थाओ के नामो को भी उन्ही के नाम पर रखा गया था।
आजाद एक विरासत – Azad a legacy
महान योद्धा चंद्र शेखर आजाद जिसे ब्रिटिश राज की नींव को हिलाकर रख दिया था और अंग्रेजों को अपनी हिंसात्मक गतिविधियों से डरा दिया था और जिन्होनें अपने पूरी तरह से खुद को स्वतंत्रता संग्राम में समर्पित कर दिया था।
इसके साथ ही वे ब्रिटिश शासकों के लिए बड़ी समस्या बन गए थे क्योंकि आजाद को पकड़ पाना ब्रिटिश शासकों के लिए एक चुनौती बन गई थी। भारत की आजादी में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
इसके साथ ही Chandrashekhar Azad – चंद्रशेखऱ आजाद ने समाजवादी आदर्शों के आधार पर एक स्वतंत्र भारत का सपना देखा था और उन सपनों को साकार करने के लिए खुद का बलिदान कर दिया था।
आजाद के भव्य बलिदान से तुरंत आजादी नहीं मिली थी लेकिन उन्होनें भारतीय क्रांतिकारियों में ब्रिटिश शासकों के खिलाफ विद्रोह और तेज कर दिया था।
वे उग्र क्रांतिकारी योद्दा थे जो कि वीरगति को प्राप्त हुए और भारतवर्ष का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। वहीं ऐसे वीर सपूतों के जन्म से भारत सदा के लिए पवित्र हो गया।
भारतीय संस्कृति में लोकप्रिय हुए आजाद
आजादी के बाद, चंद्रशेखर आजाद की बहादुरी याद करने के लिए इलाहाबाद में अल्फ्रेड पार्क का नाम बदलकर चंद्रशेखर आजाद पार्क रखा गया।
आपको बता दें कि इस महान क्रांतिकारी योद्धा ने इसी पार्क में अपनी आखिरी सांस ली थी।
इसके साथ ही भारत में कई स्कूल, कॉलेज, सड़क मार्गों और सामाजिक संस्थाओ के नाम भी चंद्रशेखर आजाद के नाम पर रखे गए थे।
कई देशभक्ति फिल्मों में भी चंद्रशेखर आजाद के चरित्र को बखूबी दर्शाया गया है। आपको बता दें कि 1965 में आई फिल्म शहीद से लेकर कई फिल्म उनके चरित्र को लेकर बनाई गयी है।
2002 में आयी फिल्म शहीद में सनी देओल ने चंद्रशेखर आजाद के किरदार को बड़े अच्छे से टीवी के बड़े परदे पर निभाया था। वहीं इस फिल्म में लिजेंड भगत सिंह का किरदार अजय देवगन ने निभाया था।
इसके साथ ही 2006 में आई फिल्म रंग दी बसंती में आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, बिस्मिल और अश्फाक के जीवन को दिखाया गया था, इस फिल्म में आमिर खान ने आजाद का किरदार निभाया था।
और आज के युवा भी चंद्रशेखर के नक्शेकदम पर चलने के लिये प्रेरित है।
भारत के महान योद्दा Chandrashekhar Azad – चंद्रशेखर आज़ाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के मशहूर आंदोलनकारी थे। जिन्होनें अपने बहादुरी और साहस से अपनी अमर गाथा खुद लिखी।
महान क्रांतिकारी चंद्र शेखर आजाद के भारत को स्वतंत्र करवाने में दिए गए भव्य बलिदान से लोगों में ब्रिटिश शासकों के खिलाफ विद्रोह भर दिया और आजादी के लिए जारी आंदोलन तेज हो गया।
Chandrashekhar Azad – चंद्रशेखर आजाद से प्रेरित होकर की हजार युवक स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए थे। आपको बता दें कि आजाद के बलिदान से देश को तुरंत तो आजादी नहीं मिली लेकिन ब्रिटिश शासकों के खिलाफ लोगों में चिंगारी जरूर लग गई थी।
आजाद के शहीद होने के 16 साल बाद 15 अगस्त, 1947 को भारत को आजादी मिली और उनका भारत की आजादी का सपना पूरा हुआ।
वहीं आजाद भारत की जंग में आत्मबलिदान करने वाले आजाद का नाम हमेशा के लिए अमर हो गया। वहीं शहीद-ए- आजम चन्द्रशेखर आजाद का कहा हुआ एक शेर इस प्रकार है –
आओ झुक कर सलाम करें उनको,
जिनके हिस्से में ये मुकाम आता है,
खुशनसीब होते हैं वो लोग,
जिनका लहू इस देश के काम आता है ।।
इसेभी देखे – मेजर धनसिंह थापा (Major Dhan Singh Thapa), कैप्टन गुरबचन सिंह सालारिया (Captain Gurbachan Singh Salaria), Other Links – लिंग पुराण (Ling Purana), मार्कण्डेय पुराण (Markandeya Purana)