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नेताजी सुभाषचंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose)

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Netaji Subhash Chandra Bose
Netaji Subhash Chandra Bose

स्वतंत्रता अभियान के एक और महान क्रान्तिकारियो में सुभाष चंद्र बोस – Netaji Subhash Chandra Bose का नाम भी आता है। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भारतीय राष्ट्रिय सेना का निर्माण किया था। जो विशेषतः “आजाद हिन्द फ़ौज़” के नाम से प्रसिद्ध थी। सुभाष चंद्र बोस, स्वामी विवेकानंद को बहुत मानते थे।

“तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूंगा”

सुभाष चंद्र बोस का ये प्रसिद्ध नारा था। उन्होंने अपने स्वतंत्रता अभियान में बहोत से प्रेरणादायक भाषण दिये और भारत के लोगो को आज़ादी के लिये संघर्ष करने की प्रेरणा दी। (लेख – नेताजी सुभाषचंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose)

सुभाषचंद्र बोस की जीवनी / About Netaji Subhash Chandra Bose In Hindi

नाम (Name) – सुभाष चंद्र जानकीनाथ बोस

जन्म (Birth) – 23 जनवरी 1897

जन्म स्थान (Birthplace) – कटक, उड़ीसा राज्य, बंगाल प्रांत, ब्रिटिश भारत

पिता (Father) – जानकीनाथ बोस

माता (Mother) – प्रभावती देवी

जीवन साथी (Wife) – एमिली शेंकल

बच्चे (Daughter) – अनीता बोस फाफ

शिक्षा (Education) – 1909 में बैप्टिस्ट मिशन की स्थापना के बाद रावेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल में एडमिशन लिया। 1913 में मैट्रिक परीक्षा में द्वितीय स्थान हासिल करने के बाद उन्हें प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय में दाखिल कराया गया जहाँ उन्होंने अपनी पढ़ाई की।

संगठन – आजाद हिन्द फौज, आल इंडिया नेशनल ब्लॉक फॉर्वड, स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार

मृत्यु (Death Date): 18 अगस्त 1945

सुभाष चन्द्र बोस का बचपन और आरम्भिक जीवन – Subhash Chandra Bose Information

सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 187 को ओडिशा के कटक में हुआ था। ये जानकीनाथ बोस और श्री मति प्रभावती देवी के 14 संतानों में से 9वीं संतान थे। सुभाष चन्द्र जी के पिता जानकीनाथ उस समय एक प्रसिद्ध वकील थे उनकी वकालत से कई लोग प्रभावित थे आपको बता दें कि पहले वे सरकारी वकील थे इसके बाद फिर उन्होंने निजी प्रैक्टिस शुरू कर दी थी। (लेख – नेताजी सुभाषचंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose)

इसके बाद उन्होंने कटक की महापालिका में काफी लम्बे समय तक काम भी  किया था और वे बंगाल विधानसभा के सदस्य भी रहे थे। उन्हें रायबहादुर का ख़िताब भी अंग्रेजों द्वारा दिया गया था।

सुभाष चन्द्र बोस को देशभक्ति अपने पिता से विरासत के रूप में मिली थी। जानकीनाथ सरकारी अधिकारी होते हुए भी कांग्रेस के अधिवेशनों में शामिल होने जाते थे और लोकसेवा के कामों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते थे आपको बता दें कि ये खादी, स्वदेशी और राष्ट्रीय शैक्षिक संस्थाओं के पक्षधऱ थे।

सुभाष चन्द्र बोस की माता प्रभावती उत्तरी कलकत्ता के परंपरावादी दत्त परिवार की बेटी थी। ये बहुत ही दृढ़ इच्छाशक्ति की स्वामिनी, समझदार और व्यवहारकुशल स्त्री थी साथ ही इतने बड़े परिवार का भरण पोषण बहुत ही कुशलता से करती थी। (लेख – नेताजी सुभाषचंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose)

सुभाष चन्द्र बोस की पढ़ाई-लिखाई – Subhash Chandra Bose Education

साहसी वीर सपूत सुभाष चन्द्र बोस बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में काफी होनहार थे उन्होनें अपनी प्राइमरी की पढ़ाई कटक के प्रोटेस्टैंड यूरोपियन स्कूल से पूरी की और 1909 में उन्होनें रेवेनशा कोलोजियेट स्कूल में एडमिशन ले लिया।

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस पर अपने प्रिंसिपल बेनीमाधव दास के व्यक्तित्व का बहुत प्रभाव पड़ा इसके साथ ही उन्होनें स्वामी विवेकानंद जी के साहित्य का पूरा अध्ययन कर लिया था।

पढ़ाई के प्रति अपने मेहनत और लगन से सुभाष चन्द्र बोस ने मैट्रिक परीक्षा में दूसरा स्थान हासिल किया था और अपने अध्ययन से सफलता हासिल की। (लेख – नेताजी सुभाषचंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose)

आपको बता दें कि इसके बाद 1911 में सुभाष चंद्र बोस ने प्रेसीडेंसी कॉलेज में एडमिशन लिया लेकिन बाद में अध्यापकों और छात्रों के बीच भारत विरोधी टिप्पणियों को लेकर झगड़ा हो गया।

जिसके बाद सुभाष चन्द्र बोस ने छात्रों का साथ दिया और उन्हें एक साल के लिए कॉलेज से निकाल दिया गया और परीक्षा नहीं देने दी थी। उन्होंने बंगाली रेजिमेंट में भर्ती के लिए परीक्षा दी लेकिन आंखों के खराब होने की वजह से उन्हें मना कर दिया गया।

इसके बाद सुभाष चन्द्र बोस ने 1918 में, कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्कॉटिश कॉलेज से दर्शन शास्त्र में बी.ए की डिग्री प्राप्त की। फिर सुभाष चन्द्र बोस ने भारतीय सिविल सेवा परीक्षा (ICS) में शामिल होने के लिए कैम्ब्रिज के फिट्जविल्लियम कॉलेज में एडमिशन लिया। (लेख – नेताजी सुभाषचंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose)

अपने पिता जानकीनाथ की इच्छा पूरी करने के लिए, सुभाष चन्द्र  बोस ने चौथे स्थान के साथ परीक्षा उत्तीर्ण की और सिविल सेवा विभाग में नौकरी हासिल की लेकिन सुभाष चंद्र बोस लंबे समय तक इस नौकरी को नहीं कर पाए क्योंकि सुभाष चन्द्र बोस के लिए ये नौकरी मानो किसी ब्रिटिश सरकार के अंदर काम करने जैसी थी इसलिए उन्होनें इस नौकरी को नैतिक रूप से स्वीकार नहीं किया था।

इसके बाद सुभाष चन्द्र बोस ने इस नौकरी  को छोड़ने का फैसला लिया और वे भारत वापस आ गए। वहीं सुभाष चन्द्र बोस के अंदर बचपन से ही देश प्रेम की भावना थी इसलिए वे स्वतंत्रता संग्राम मे योगदान देने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और भारत को आजादी दिलाने के लिए उन्होनें अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

इस संग्राम में विजयी होने के लिए सुभाष चंद्र बोस ने पहला कदम समाचार पत्र ‘स्वराज’ शुरु कर उठाया इसके अलावा उन्होनें बंगाल प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के लिए भी प्रचार-प्रसार का काम संभाला।

चित्तरंजन दास के मार्गदर्शन और सहयोग के साथ, नेता जी सुभाष चन्द्र बोस में राष्ट्रवाद की भावना का विकास हुआ इसके बाद जल्द ही उन्होंने अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के लिए राष्ट्रपति की अध्यक्षता हासिल की और 1923 में बंगाल राज्य के लिए कांग्रेस के सचिव के रूप में काम किया। (लेख – नेताजी सुभाषचंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose)

इसके अलावा सुभाष चन्द्र बोस को ‘फॉरवर्ड’ अखबार का संपादक बना दिया गया इस अखबार को चितरंजन दास ने स्थापित किया था इसके साथ ही बोस ने कलकत्ता नगर निगम के सीईओ पद के लिए भी सफलता हासिल की।

राष्ट्रहित की भावना सुभाष चन्द्र बोस में कूट-कूट कर भरी थी इसलिए आजादी के लिए भारतीय संघर्ष में उनका राष्ट्रवादी नजरिया और योगदान अंग्रेजों के साथ अच्छा नहीं रहा इसलिए 1925 में उन्हें मांडले में जेल भेजा गया। (लेख – नेताजी सुभाषचंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose)

नेता जी का राजनीतिक जीवन – Subhash Chandra Bose Political Career

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस 1927 में जेल से बाहर आ गए इसके बाद उन्होनें अपने राजनैतिक करियर एक आधार देकर विकसित किया। सुभाष चन्द्र बोस ने कांग्रेस पार्टी के महासचिव के पद को सुरक्षित कर लिया और गुलाम भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराने की लड़ाई में भारत के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ काम करना शुरू कर दिया।

सुभाषचंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) अपने कामों से लोगों पर अपना प्रभाव छोड़ रहे थे इसलिए इसके 3 साल बाद उन्हें कलकत्ता का मेयर के रूप में चुना गया। 1930 के दशक के मध्य में, नेता जी ने बेनिटो मुसोलिनी समेत पूरे यूरोप की यात्रा की।

अपने कामों से नेता जी ने कुछ ही सालों में लोगों के बीच अपनी एक अलग छवि बना ली थी इसके साथ ही वे एक नौजवान सोच लेकर आए थे जिसके चलते वे यूथ लीडर के रूप में लोगों के प्रिय और राष्ट्रीय नेता भी बन गए। (लेख – नेताजी सुभाषचंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose)

महात्मा गांधी से मेल नहीं खाती थी नेता जी की विचारधारा

कांग्रेस की एक बैठक के दौरान कुछ नए और पुरानी विचारधारा के लोगों के बीच मतभेद हुआ जिनमें युवा नेता किसी भी नियम पर चलना नहीं चाहते थे जबकि वे खुद के हिसाब से चलना चाहते थे, वहीं पुराने नेता ब्रिटिश सरकार के बनाए नियम के साथ आगे बढ़ना चाहते थे।

वहीं सुभाष चन्द्र बोस और गांधी जी के विचार भी बिल्कुल अलग थे वे नेता जी महात्मा गांधी जी की अहिंसावादी विचारधारा से सहमत नहीं थे उनकी सोच नौजवानों वाली थी जो हिंसा में भी भरोसा रखते थे। दोनों की विचारधारा अलग थी लेकिन मकसद गुलाम भारत को आजाद कराने का ही था। 

आपको बता दें जब नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में नामांकन जीता था उस समय उनके नामांकन से महात्मा गांधी खुश नहीं थे यहां तक कि उन्होनें बोस के प्रेसीडेंसी के लिए भी विरोध किया था जबकि ये पूर्ण स्वराज प्राप्त करने के लिए ही था।

बोस ने अपना कैबिनेट बनाने के साथ-साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में मतभेदों का भी संघर्ष किया। 1939 के कांग्रेस के अध्यक्ष पद के चुनावों में बोस ने पट्टाभी सीताराय्या (गांधीजी के चुने हुए उम्मीदवार) को भी हराया था, लेकिन लंबे समय तक उनकी प्रेसीडेंसी जारी नहीं रह सकी क्योंकि उनकी विश्वास प्रणाली कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के विपरीत थी। (लेख – नेताजी सुभाषचंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose)

नेता जी का कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा, फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन- Forward Bloc

1939 का वार्षिक कांग्रेस अधिवेशन त्रिपुरी में हुआ। इस अधिवेशन में बीमारी की वजह से वह शामिल नहीं हो सके। इसके बाद 29 अप्रैल 1939 को सुभाष चन्द्र बोसने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।

कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद सुभाष चन्द्र बोस ने  22 जून, 1939 को फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया, हालांकि बोस ने ब्रिटिश शासकों का विरोध किया, लेकिन सुभाषचन्द्र बोस ब्रिटिश सरकार के सुव्यवस्थित और अनुशासित रवैया से बेहद प्रभावित थे। (लेख – नेताजी सुभाषचंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose)

जेल में नेता जी को काटनी पड़ी सजा

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, सुभाष चन्द्र बोस ने कांग्रेस नेतृत्व से बिना सलाह लिए बिना भारत की तरफ से युद्ध करने के लिए वाइसराय लॉर्ड लिनलिथगो के फैसले के विरोध में सामूहिक नागरिक अवज्ञा की वकालत की। उनके इस फैसले की वजह से उन्हें 7 दिन की जेल की सजा काटनी पड़ी और 40 दिन तक गृह गिरफ्तारी झेलनी पड़ी थी।

गृह गिरफ्तारी के 41 वें दिन जर्मनी जाने के लिए सुभाष चन्द्र बोस मौलवी का वेष धारण कर अपने घर से निकले और इटेलियन पासपोर्ट में ऑरलैंडो मैज़ोटा नाम से अफगानिस्तान, सोवियत संघ, मॉस्को और रोम से होते हुए जर्मनी पहुंचे। (लेख – नेताजी सुभाषचंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose)

जर्मनी से नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का संबंध

एडम वॉन ट्रॉट ज़ू सोल्ज़ के मार्गदर्शन में, सुभाष चन्द्र बोस ने भारत के विशेष ब्यूरो की स्थापना की, जिसने जर्मन प्रायोजित आज़ाद हिंद रेडियो पर प्रसारण किया। सुभाषचन्द्र बोस ने इस तथ्य पर भरोसा किया कि दुश्मन का दुश्मन एक दोस्त होता है और इस तरह उन्होनें ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ जर्मनी और जापान के सहयोग की मांग की।

बोस ने बर्लिन में फ्री इंडिया सेंटर की स्थापना की वहीं फ्री इंडिया लीजियन के लिए लगभग 3000 भारतीय कैदी ने साइन अप किया था।

जर्मनी का युद्ध में पतन और जर्मन सेना की आखिरी वापसी से सुभाष चन्द्र बोस ने इस बात का अंदाजा लगा लिया कि अब जर्मन सेना भारत से अंग्रेजों को बाहर निकालने में मद्द नहीं कर पाएगी। (लेख – नेताजी सुभाषचंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose)

आजाद हिंद फौज का गठन – Indian National Army (Azad Hind Fauj)

इसके बाद सुभाष चन्द्र बोस जुलाई 1943 में जर्मनी से सिंगापुर चले गए जहां  उन्होनें भारतीय राष्ट्रीय सेना के गठन की उम्मीद फिर से जगाई आपको बता दें कि भारतीय राष्ट्रीय सेना को सबसे पहले कप्तान जनरल मोहन सिंह ने 1942 में स्थापित किया था इसके बाद राष्ट्रवादी नेता राश बिहारी बोस ने इसकी अध्यक्षता की थी।

बाद में राश बिहारी बोस ने इस संगठन की पूरी जिम्मेदारी सुभाष चन्द्र बोस को सौंप दी थी। वहीं इसके बाद INA को आजाद हिंद फौज और सुभाष चन्द्र बोस को नेता जी के नाम से जाने जाना लगा। (लेख – नेताजी सुभाषचंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose)

नेताजी ने न केवल सैनिकों को फिर से संगठित किया उन्होनें दक्षिणपूर्व एशिया में आप्रवासी भारतीयों का ध्यान भी अपनी तरफ खींचा। वहीं लोगों में फौज में भर्ती होने के अलावा, वित्तीय सहायता भी देना शुरू कर दिया।

आपको बता दें कि इसके बाद आज़ाद हिंद फौज एक अलग महिला इकाई के साथ भी उभर कर सामने आई, एशिया में इस तरह की पहला संगठन था।

आजाद हिंद फौज ने काफी विस्तार किया और इस संगठन ने अजाद हिंद सरकार के एक अस्थायी सरकार के तहत काम करना शुरू कर दिया। उनके पास अपनी डाक टिकट, मुद्रा, अदालतें और नागरिक कोड थे और नौ एक्सिस राज्यों द्वारा स्वीकृत थी। (लेख – नेताजी सुभाषचंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose)

नेता जी ने अपने भाषण से लोगों को किया प्रेरित – Subhash Chandra Bose Speech

1944 में नेता जी सुभाष चन्द्र बोस अपने भाषण से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया इसके साथ ही उनके इस भाषण ने उस समय काफी सुर्खियां भी बटोरी थी आपको बता दें  कि नेता जी ने अपने इस प्रेरक भाषण में लोगों से कहा कि –

तुम मुझे खून दोमै तुम्हें आजादी दूंगा

नेता जी का भाषण का लोगों पर इतना प्रभाव पड़ा कि काफी तादाद में लोग बिट्रिश शासकों के खिलाफ आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए।

सेना, आजाद हिंद फौज के मुख्य कमांडर नेताजी के साथ, ब्रिटिश राज से देश को मुक्त करने के लिए भारत की तरफ बढ़ी। (लेख – नेताजी सुभाषचंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose)

रास्ते में अंडमान और निकोबार द्वीपों को स्वतंत्र किया गया इसके बाद इन दो द्वीपों का स्वराज और शहीद का नाम दिया गया। इसके साथ सेना के लिए रंगून नया आधार शिविर बन गया।

बर्मा मोर्चे पर अपनी पहली प्रतिबद्धता के साथ, सेना ने अंग्रेजों के खिलाफ प्रतिस्पर्धी लड़ाई लड़ी और आखिरकार इम्फाल, मणिपुर के मैदान पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराने में कामयाब रहे।

हालांकि, राष्ट्रमंडल बलों के अचानक हमले में  जापानी और जर्मन सेना को आश्चर्यचकित कर लिया। रंगून बेस शिविर के पीछे हटने से सुभाष चन्द्र बोस का राजनीतिक हिन्द फौज का को प्रभावी राजनीतिक इकाई बनने के सपने को चूर-चूर कर दिया। (लेख – नेताजी सुभाषचंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose)

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु – Subhash Chandra Bose Death

आजाद हिंद फौज की हार से निराश, नेताजी ने सहायता मांगने के लिए रूस यात्रा करने की योजना बनाई। लेकिन 18 अगस्त 1945 को सुभाष चन्द्र बोस जी के विमान का ताईवान में क्रेश हो गया, जिसकी वजह से उनकी मृत्यु हो गई।

फिलहाल नेता जी की लाश नहीं मिली थी साथ ही उस दुर्घटना का कोई सबूत भी नहीं मिला था इसलिए सुभाष चन्द्र बोस की मौत आज भी विवाद का विषय है और भारतीय इतिहास में सबसे बड़ी संशय है। (लेख – नेताजी सुभाषचंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose)

नेता जी का व्यक्तिगत जीवन और विरासत – Subhash Chandra Bose Jeevan Parichay

फॉरवर्ड ब्लॉक के सदस्यों की अवहेलना के बाद, बोस ने 1937 में ऑस्ट्रेलिया के पशुचिकित्सक की बेटी एमिली शेंकल के साथ विवाह कर लिया। दोनों की शादी हिन्दू रीति-रिवाजों से की गई थी इसके काफी समय बाद इन दोनों से एक बेटी अनीता बोस फाफ का जन्म हुआ था।

18 अगस्त, 1945 को रूस जाते समय रास्ते में दुर्भाग्यपूर्ण उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया जिससे उनकी मौत हो गई। बताया जाता है कि जापानी सेना वायुसेना मित्सुबिशी की -21 बॉम्बर, जिस पर वे यात्रा कर रहे थे उस विमान में इंजन में परेशानी होने की वजह से विमान ताइवान में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। (लेख – नेताजी सुभाषचंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose)

इस दुर्घटना में नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के पूरे शरीर में घाव थे और ये पूरी तरह जल चुके थे हालांकि इलाज के लिए उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया लेकिन बच नहीं सके और इसके चार घंटे बाद वे सदा के लिए सो गए ।

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का अंतिम संस्कार किया गया था और ताइहोकू में निशी हांगानजी मंदिर में बौद्ध स्मारक सेवा आयोजित की गई थी। बाद में, टोक्यो, जापान में रेन्कोजी मंदिर में उनकी अस्थियों को दफन कर दिया गया थ। (लेख – नेताजी सुभाषचंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose)

पुरस्कार और उपलब्धियां – Subhash Chandra Bose Awards

नेताजी सुभाष चंद्र बोस को भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न पुरस्कार से मरणोपरांत सम्मानित किया गया था। हालांकि, बाद में इसे पीआईएल के बाद वापस ले लिया गया, जिसे अदालत में पुरस्कार की ‘मरणोपरांत’ प्रकृति के खिलाफ दायर किया गया था।

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की एक प्रतिमा पश्चिम बंगाल विधान सभा के सामने बनाई गई है, जबकि उनकी तस्वीर की झलक भारतीय संसद की दीवारों में भी देखने को मिलती है।

कुछ दिनों पहले ही नेता जी सुभाष चन्द्र बोस को लोकप्रिय संस्कृतियों में चित्रित किया गया है। हालांकि वह कई लेखकों के विचारों के साथ धोखाधड़ी कर रहा है, जिन्होंने उन पर कई किताबें लिखी हैं, वहीं ऐसी कई फिल्में हैं जो इस भारतीय राष्ट्रवाद नायक को चित्रित करती हैं। (लेख – नेताजी सुभाषचंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose)

सामान्य ज्ञान में सुभाष चन्द्र बोस – Subhash Chandra Bose Short Biography

“तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा!” आजादी के लिए छेड़े गए स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान इस भारतीय राष्ट्रवादी नेता ने कहा था जिसके बाद से लोग इससे काफी प्रेरित हुए थे और इस संग्राम में बड़ी संख्या में शामिल भी हुए थे। नेता जी की अन्य प्रसद्धि नारेो में “दिल्ली चलो”, ‘जय हिंद’ शामिल हैं।

सुभाष चनद्र बोस अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक के संस्थापक थे। (लेख – नेताजी सुभाषचंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose)

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के विचार – Subhash Chandra Bose Quotes

1. तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।

याद रखिये – सबसे बड़ा अपराध, अन्याय को सहना और गलत व्यक्ति के साथ समझौता करना हैं।

यह हमारा फर्ज हैं कि हम अपनी आजादी की कीमत अपने खून से चुकाएं| हमें अपने त्याग और बलिदान से जो आजादी मिले, उसकी रक्षा करनी की ताकत हमारे अन्दर होनी चाहिए।

मेरा अनुभव हैं कि हमेशा आशा की कोई न कोई किरण आती है, जो हमें जीवन से दूर भटकने नहीं देती।

जो अपनी ताकत पर भरोसा करता हैं, वो आगे बढ़ता है और उधार की ताकत वाले घायल हो जाते हैं।

हमारा सफर कितना ही भयानक, कष्टदायी और बदतर हो सकता हैं लेकिन हमें आगे बढ़ते रहना ही हैं। सफलता का दिन दूर हो सकता हैं, लेकिन उसका आना अनिवार्य ही हैं।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक ऐसे स्वतंत्रता सैनानी थी जिन्होनें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के तहत भारत को आजादी दिलावाने के लिए अपने प्राण भी न्यौछावर कर दिए।

उनमें वो तेज था जो लोगों को उनकी तरफ आर्कषित करता था इसके साथ ही वे उस समय युवाओं में नया जोश और शक्ति का प्रसार करने में भी कामयाब हुए थे। सुभाष चन्द्र बोस का नाम इतिहास के पन्नों पर सुनहरे अक्षरों में लिखा गया। (लेख – नेताजी सुभाषचंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose)

एक नजर में सुभाषचंद्र बोस का इतिहास / Netaji Subhash Chandra Bose History In Hindi

1) 1921 में सुभाषचंद्र बोस / Subhash Chandra Bose इन्होंने सरकारी नोकरी में बहोत उच्च स्थान का त्याग करके राष्ट्रीय स्वातंत्र के आंदोलन में कुद पडे। स्वातंत्र लढाई में हिस्सा लेने के लिये अपनी नौकरी का इस्तीफा देणे वाले वो पहले आय.सी.एस. अधिकारी थे।

2) 1924 में कोलकत्ता महानगर पालिका के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में उनको चित्तरंजन दास इन्होंने चुना। पर इसी स्थान होकर और कौनसा भी सबुत न होकर अंग्रेज सरकार ने क्रांतीकारोयों के साथ सबंध रखा ये इल्जाम लगाकर उन्हें गिरफ्तार मंडाले के जेल में भेजा गया।

3) 1927 में सुभाषचंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) और पंडित जवाहरलाल नेहरू इन दो युवा नेताओं को कॉंग्रेस के महासचिव के रूप में चुना गया। इस चुनाव के वजह से देशके युवाओं में बड़ी चेतना बढ़ी।

4) सुभाषचंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) इन्होंने समझौते के स्वातंत्र के अलावा पुरे स्वातंत्र की मांग कॉंग्रेस ने ब्रिटिशों से करनी चाहिये। ऐसा आग्रह किया। 1929 के लाहोर अधिवेशन में कॉंग्रेस ने पूरा स्वातंत्र का संकल्प पारित किया। ये संकल्प पारित होने में सुभाषचंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) इन्होंने बहोत प्रयास किये।

5) 1938 में सुभाषचंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) हरिपुरा कॉंग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष बने।

6) 1939 में त्रिपुरा यहा हुये कॉंग्रेस के अधिवेशन में वो गांधीजी के उमेदवार डॉ. पट्टाभि सीतारामय्या इनको घर दिलाकर चुनकर आये। पर गांधीजी के अनुयायी उनको सहकार्य नहीं करते थे। तब उन्होंने उस स्थान का इस्तीफा दिया और ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ ये नया पक्ष स्थापन किया।

7) इंग्लंड दुसरे महायुध्द में फसा हुवा है। इस स्थिति का लाभ लेकर स्वातंत्र के लिए भारत ने सशस्त्र लढाई करनी चाहिए’ ऐसा प्रचार वो करते थे। इस वजह से अंग्रेज सरकार का उनके उपर का गुस्सा बढ़ा। (लेख – नेताजी सुभाषचंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose)

सरकारने उन्हें जेल में डाला पर उनकी तबियत खराब होने के वजह से उन्हें घर पर ही नजर कैद में रखा। 15 जनवरी १९४१ में सुभाषबाबू भेस बदलकर अग्रेजोंके चंगुल से भाग गये। काबुल के रास्ते से जर्मनी की राजधानी बर्लिन यहा गये।

8) भारत के स्वातंत्र लढाई के लिये सुभाषबाबू ने हिटलर के साथ बातचीत की। जर्मनी में ‘आझाद हिंद रेडिओ केंद्र’ शुरु किया। इस केंद्र से अंग्रेज के विरोध में राष्ट्रव्यापी संकल्प करने का संदेश वो भारतीयोंको देने लगे।

9) जर्मनी में रहकर भारतीय स्वतंत्र के लिये हम कुछ महत्वपूर्ण रूप की कृति कर सकेंगे। ऐसा ध्यान में आतेही सुभाषचंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) जर्मनी से एक पनडुब्बी से जपान गये।

रासबिहारी बोस ये भारतीय क्रांतिकारी उस समय जपान में रहते थे। उन्होंने मलेशिया, सिंगापूर, म्यानमार आदी। पूर्व आशियायी देशों में के भारतीयोका ‘इंडियन इंडिपेंडेंट लीग‘ (हिंदी स्वातंत्र संघ) स्थापन किया हुवा था।

जपान इ हिंदी के हाथ में आये हुये अंग्रेजो के लष्कर में के हिंदी सैनिकोकी ‘आझाद हिंद सेना’ उन्होंने संघटित की थी। उसका नेतृत्व स्वीकार करने की सुभाषबाबू को रासबिहारी बोस ने उन्होंने आवेदन किया। नेताजीने वो आवेदन स्वीकार किया। इस तरह सुभाषचंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) आझाद हिंद सेने के सरसेनापती बने।

10) 1943 में अक्तुबर महीने में सुभाषबाबू के अध्यक्षता में ‘आझाद हिंद सरकार’ की स्थापना हुयी। अंदमान और निकोबार इन व्दिपो कब्जा कटके आझाद हिंद सरकार ने वहा तिरंगा लहरा दिया।

अंदमान को ‘शहीद व्दिप’ और निकोबार को ‘स्वराज्य व्दिप’ ऐसे नाम दिये। जगन्नाथराव भोसले, शहनवाझ खान, प्रेम कुमार सहगल, डॉ. लक्ष्मी स्वामीनाथन आदी उनके पास के साथी थे। डॉ. लक्ष्मी स्वामी नाथन ये ‘झाशी की राणी’ पथक के प्रमुख थी। (लेख – नेताजी सुभाषचंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose)

‘तिरंगा झेंडा’ ये आझाद हिंद सेन का निशान ‘जयहिंद’ ये अभिवादन के शब्द, ‘चलो दिल्ली’ ये घोष वाक्य और ‘कदम कदम बढाये जा’ ये समरगित था। इसी सेना ने 1943 से 1945 तक शक्तिशाली अंग्रेजों से युध्द किया था तथा उन्हें भारत को स्वतंत्रता प्रदान कर देने के विषय में सोचने को मजबूर किया।

11) जपान सरकार के निवेदन के अनुसार सुभाषचंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) एक विमान से टोकियो जाने के लिये निकले उस विमान को फोर्मोसा मतलब ताइहोकू व्दिप के हवाई अड्डे के पास दुर्घटना हुयी। इस दुर्घटना में 18 अगस्त 1945 को नैताजी की मृत्यु हो गयी।

बचपन से ही सुभाष में राष्ट्रीयता के लक्षण प्रकट होने लगे थे और निस्वार्थ सेवा भावना उनके चरित्र की विशेषता थी। इन सभी उदात्त प्रवुत्तियों से ही उनके क्रांतिकारी पर उदार व्यक्तित्व का निर्माण हुआ था। (लेख – नेताजी सुभाषचंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose)

इसेभी देखे – पुरस्कार के बारे में (Gallantry Awards), Other Links – वेद (Vedas)

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