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Aurobindo Ghosh – अरविन्द घोष को सारी दुनिया श्री अरविन्द नाम से अधिक जानती है। वो एक महान विद्वान, राष्ट्रीय नेता और अध्यात्मिक गुरु थे। अरविन्द घोष ने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
अरविंद घोष जीवन परिचय – Aurobindo Ghosh Biography in Hindi
पूरा नाम -अरविंद कृष्णघन घोष
जन्म – 15 अगस्त 1872
जन्मस्थान – कोलकता (पं. बंगाल)
पिता – कृष्णघन
माता – स्वर्णलता देवी
शिक्षा – सात साल के उम्र मे शिक्षा के लिये इंग्लंड गये। सेंटपॉल स्कुल मे प्राथमिक शिक्षा और केंब्रिज किंगज मे उच्च शिक्षा ली। I.C.S. परिक्षा उत्तीर्ण पर अश्र्वारोहण के परीक्षा मे मार्क अच्छे न मिलने के वजह से उन्हें उपाधि नहीं मिल पायी।
विवाह – मृणालिनी के साथ (1901 में)।
अरविन्द घोष का जन्म 15 अगस्त 1872 में बंगाल प्रान्त के कोलकाता (भारत) में हुआ था। कृष्ण धुन घोष उनके पिताजी थे और स्वर्णलता देवी उनकी माँ थी। उनके पिताजी बंगाल के रंगपुर में सहायक सर्जन थे और उन्हें अग्रेजो की संस्कृति काफी प्रभावित करती थी इसीलिए उन्होंने उनके बच्चो को इंग्लिश स्कूल में डाल दिया था। (लेख – अरविंद घोष Sri Aurobindo Ghosh)
क्यों की वो यह भी चाहते थे की उनके बच्चे ख्रिश्चन धर्मं के बारे में भी बहुत कुछ जान सके। अरविन्द घोष को उनके भाइयो के साथ में दार्जिलिंग के लोरेटो हाउस बोर्डिंग में पढाई के लिए भेज दिया गया था। यह अंग्रेज सरकार के संस्कृति का मुख्य केंद्र माना जाता था।
अरविन्द घोष के परदादा ब्राह्मो समाज जैसी धार्मिक सुधारना आन्दोलन में काफी सक्रिय रहते थे। उनसे प्रेरित होकर ही अरविन्द घोष भी सामाजिक सुधारना लाना चाहते थे। (लेख – अरविंद घोष Sri Aurobindo Ghosh)
जब अरविन्द घोष केवल सात साल के थे तो उन्हें इंग्लैंड भेज दिया गया था और वहापर वह पुरे चौदा साल तक रहे।
वहापर उन्होंने अपनी पढाई की शुरुवात सैंट पौल्स स्कूल (1884) से की और वहापर छात्रवृत्ति मिलने के बाद में उन्होंने कैम्ब्रिज के किंग्स कॉलेज (1890) में पढाई पूरी की। वो अपने पढाई में काफी चतुर और बुद्धिमान थे जिसके चलते उन्होंने भारतीय सनदी सेवा की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली थी।
28 साल की उम्र में सन 1901 में अरविन्द घोष ने भूपाल चन्द्र बोस की लड़की मृणालिनी से विवाह किया था। बोस सरकारी अधिकारी थे।
मगर दिसंबर 1918 में इन्फ्लुएंजा के संक्रमण से मृणालिनी की मृत्यु हो गयी थी। (लेख – अरविंद घोष Sri Aurobindo Ghosh)
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका – Role in the Indian freedom Struggle
जब अरविन्द घोष को सन 1893 में बरोदा के गायकवाड के यहाँ नौकरी मिल गयी तो वह भारत वापस आ गए थे। उन्हें अन्य देशोकी कई सारी भाषाए आती थी मगर उन्हें भारतीय संस्कृति के बारे में बहुतही कम जानकारी थी।
उन्होंने बरोदा में 12 साल तक शिक्षक रूप में काम किया, कुछ समय के लिए वह गायकवाड महाराजा के सचिव भी थे। कुछ समय के लिए उन्होंने बरोदा कॉलेज के वाईस प्रिंसिपल पद पर भी काम किया जिसकी वजह से उन्हें भारतीय सस्कृति और भाषा के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला।
बारा साल भारत में रहने के बाद में अरविन्द घोष को पता चला की किस हद तक अंग्रेजो ने भारतीय सस्कृति को हानी पहुचाई है और इसलिए धीरे धीरे वह भी राजनीति में रुची लेने लगे थे।
उन्होंने शुरू से ही भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता की मांग पर जोर दिया था।
1905 मे व्हाईसरॉय लॉर्ड कर्झन ने बंगाल का विभाजन किया। पुरे देश मे बंगाल के विभाजन के खिलाफ आंदोलन शुरु हुये। पूरा राष्ट्र इस विभाजन के खिलाफ उठ खडा हुवा। ऐसे समय में Aurobindo Ghosh जैसे क्रांतीकारक को चैन से बैठना नामुमकीन था। (लेख – अरविंद घोष Sri Aurobindo Ghosh)
बंगाल का विभाजन होने के बाद वह सन 1906 में कोलकाता आ गए थे। ऊपर से अरविन्द घोष असहकार और शांत रूप से अंग्रेज सरकार का विरोध करते थे मगर अंदरसे वह क्रांतिकारी संघटना के साथ काम करते थे।
बंगाल के अरविन्द घोष कई क्रांतिकारियों के साथ में रहते थे और उन्होंने ही बाघा जतिन, जतिन बनर्जी और सुरेन्द्रनाथ टैगोर को प्रेरित किया था। उन्होंने कई सारी समितिया स्थापन की थी जिसमे अनुशीलन समिति भी शामिल है।
सन 1906 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में भी उन्होंने हिस्सा लिया था और दादाभाई नौरोजी इस अधिवेशन के अध्यक्ष थे। उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन के चार मुख्य उद्देश- स्वराज, स्वदेश, बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा की पूर्ति के लिए काम किया था। उन्होंने सन 1907 में ‘वन्दे मातरम’ अखबार की शुरुवात की थी।
सरकार के अन्याय पर ‘वंदे मातरम्’ मे से उन्होंने जोरदार आलोचना की। ‘वंदे मातरम्’ मे ब्रिटीश के खिलाफ लिखने के वजह से उनके उपर मामला दर्ज किया गया लेकीन वो छुट गये। (लेख – अरविंद घोष Sri Aurobindo Ghosh)
सन 1907 में कांग्रेस मध्यम और चरमपंथी ऐसे दो गुटों में बट चूका थे। अरविन्द घोष चरमपंथी गुटों में शामिल थे और वह बाल गंगाधर तिलक का समर्थन करते थे। उसके बाद मे अरविन्द घोष पुणे, बरोदा बॉम्बे गए और वहापर उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन के लिए बहुत काम किया।
1908 मे खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी इन अनुशीलन समिती के दो युवकोंने किंग्जफोर्ड इस जुलमी जज को मार डालने की योजना बनाई। पर उसमे वो नाकाम रहे। खुदीराम बोस पुलिस के हाथो लगे। उन्हें फासी दी गयी। पुलिस ने अनुशीलन समिती ने सदस्योंको पकड़ना शुरु किया।
अरविंद घोष (Sri Aurobindo Ghosh) को गिरफ्तार किया गया। उन्हें अलीपुर में एक साल तक एकांत कारावास में रखने के बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया। तब उन्हें अहसास हुआ की वह स्वतंत्रता आन्दोलन के लिए नहीं बने और धीरे धीरे वह अध्यात्म की और जाने लगे। (लेख – अरविंद घोष Sri Aurobindo Ghosh)
श्री अरविन्द आश्रम – Shri Arvind Ashram
1910 के अप्रैल में वह जीवन की एक नयी शुरुवात करने के लिए पोंडिचेरी चले गए। उन्होंने वहा ‘योगाश्रम’ निकाला। अरविंद (Sri Aurobindo Ghosh) के इस आश्रम की किर्ती पुरे दुनिया मे फैली और उन्हें बहोत अनुयायी मिले। अरविंद (Sri Aurobindo Ghosh) बाबु हमेशा एकांत मे अध्यात्मचिंतन करते थे। 1914 से 1921 इस समय मे उन्होंने ‘आर्य’ नाम का अध्यात्मिक मासिक चलाया। (लेख – अरविंद घोष Sri Aurobindo Ghosh)
पांडिचेरी में रहते समय, Aurobindo Ghosh आध्यात्मिकता का अभ्यास किया और सम्पूर्ण योग भी सिखा। ये सब करने का मुख्य उद्देश मानवी विकास करना और मानवी जीवन और अधिक सुन्दर बनाना था।
नका आध्यात्मिकता पर पूरा भरोसा था, उनके अनुसार आध्यात्मिकता ये हर एक इंसान से जुडी हुई है। 1926 में, उनके आध्यात्मिक सहकर्मियों, मिर्रा अल्फस्सा(माता), की मदद से श्री औरोबिन्दो आश्रम की स्थापना की। (लेख – अरविंद घोष Sri Aurobindo Ghosh)
अरविन्द घोष को मिले पुरस्कार – Aurobindo Ghosh Awards
उन्होंने कविता, अध्यात्म और तत्त्वज्ञान में जो योगदान दिया उसके लिए उन्हें नोबेल का साहित्य पुरस्कार(1943) और नोबेल का शांति पुरस्कार(1950) के लिए भी नामित किया गया था।
अरविन्द घोष की मृत्यु – Arvind Ghosh’s Death
5 दिसंबर 1950 को श्री अरविन्द घोष की मृत्यु हो गयी थी।
उन्होंने अध्यात्म और तत्वज्ञान के क्षेत्र में जो अमूल्य योगदान दिया उसके लिए स्वतंत्र भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरु और भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने भी उनकी काफी प्रशंसा की थी।
देश को आजादी दिलाने में उन्होंने सभी रास्तो से प्रयास किये और उसमे वह सफल भी रहे। देश के युवा को जगाने के लिए और उनके दिल में आजादी की चिंगारी को और तीव्र करने के लिए उन्होंने ‘वन्दे मातरम’ अख़बार निकाला था। इस अखबर के विचारो को पढ़कर कई क्रांतिकारी निर्माण हुए।
देश को आजादी दिलाने के लिए उन्होंने कई सारे आन्दोलन किये। उनके आन्दोलन इतने उग्र होते थे की उसके लिए उन्हें एक बार जेल भी जाना पड़ा। अरविन्द घोष सामाजिक सुधारना की मदत से भी देश को बेहतर बनाना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने बहुत सारे सामाजिक आन्दोलन भी किये। (लेख – अरविंद घोष Sri Aurobindo Ghosh)
अरविन्द घोष की ग्रंथसंपत्ती – Aurobindo Gghosh Books
दी लाईफ दिव्हाईन, अहिंसात्मक प्रतिकार का सिध्दान्त, भारतीय नवजीवन वेद – रहस्य, यौगिक समन्वय आदी ग्रंथ बहोत प्रसिध्द है। इसके अलावा जब अरविन्द घोष इंग्लैंड में रहते थे तो वहापर कविताये भी लिखा करते थे। कविता को समृद्ध बनाने में उन्होंने 1930 के दौरान बड़ा योगदान दिया है। उन्होंने “सावित्री” नाम की एक बड़ी 24000 लाइन वाली कविता लिखी है और उनकी यह कविता अध्यात्म पर आधारित है।
इन सब के साथ-साथ वे दर्शनशास्त्री, कवी, अनुवादक और वेद, उपनिषद और भगवत् गीता पर लिखने का भी काम करते थे। (लेख – अरविंद घोष Sri Aurobindo Ghosh)
इसेभी देखे – सूबेदार संजय कुमार (Subedar Sanjay Kumar), ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव (Subedar Major Yogendra Singh Yadav), Other Links – वराह पुराण (Varah Purana)