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भारत को विकास के मार्ग पर ले जाने वाले क्रांतिकारी आचार्य जे बी कृपलानी – Acharya J B Kripalani
कुछ क्रांतिकारियों ने देश को आजाद करने के लिए पूरी कोशिश की और उनकी कोशिश कामयाब भी हुई। लेकिन जब उनकी कोशिश को कामयाबी मिली ऐसे समय को देखने के लिए वे मौजुद नहीं थे मतलब की आजादी मिलने से पहले ही उनकी मृत्यु हो गयी थी। कुछ क्रांतिकारी इसके बिलकुल विपरीत थे। देश को आजादी मिलते हुए उन्होंने देखा था और उसके बाद उन्होंने देश के लिए काम करना शुरू कर दिया था।
कहने का मतलब यह है की जिन्होंने गुलाम बने हुए देश को देखा और आजाद भारत को भी देखा और बादमे आजाद भारत को विकास के मार्ग पर ले जाने का काम बड़ी सरलता से किया। एक ऐसे ही क्रांतिकारी के बारे में हम आपको बताने वाले है जिन्होंने देश को आजादी दिलाने में योगदान तो दिया ही साथ ही देश को स्वतन्त्र करने के बाद में देश को सुचारू रूप से चलाने का काम भी किया। इस क्रांतिकारी का नाम है आचार्य जे बी कृपलानी – J. B. Kripalani।
इनका पूरा सफ़र कैसा रहा इसकी पूरी जानकारी निचे दी गयी है साथ इन्हें आचार्य नाम कैसे मिला इसकी भी पूरी जानकारी निचे दी गयी है।
भारत को विकास के मार्ग पर ले जाने वाले क्रांतिकारी आचार्य जे बी कृपलानी – J. B. Kripalani
राजनीती और सामाजिक क्षेत्र में आचार्य जे बी कृपलानी ने आजादी से पहले और बाद में भी बड़ा योगदान दिया था। वे महात्मा गांधी को आदर्श मानते थे और उनके बताये गए मार्ग पर चलने का काम करते थे।
जे बी कृपलानी जीवन परिचय – J. B. Kripalani Jivan Parichay
जीवतराम भगवानदास कृपलानी (J B Kripalani) का जन्म 11 नवम्बर 1888 मे हिन्दू क्षत्रिय अमिल परिवार में हैदराबाद के सिंध में हुआ था। काका भगवानदास उनके पिताजी थे। उनके पिताजी एक सरकरी विभाग में राजस्व और न्यायिक अधिकारी थे। उनका परिवार बहुत बड़ा था और उनके घर में आठ बच्चे थे और उनमे आचार्य जी का छटा नंबर था।
जे बी कृपलानी की शिक्षा – J. B. Kripalani Education
कृपलानी (J B Kripalani) ने अपनी शिक्षा सिंध के स्कूल में पूरी करने के बाद में बॉम्बे के विल्सन कॉलेज में आगे के पढाई की। वहापर पढाई करते समय उन्हें अहसास हुआ की उन्हें इंग्लिश कविताओ में काफी रुची है। लेकिन उनकी एक खास बात यह भी थी की उन्हें इंग्लिश कविताये बहुत अच्छी लगती थी लेकिन उससे भी ज्यादा उन्हें अंग्रेज लोगो से नफ़रत थी।
जब वे कॉलेज के पढाई कर रहे थे तो उस वक्त बंगाल का विभाजन किया गया था जिसकी वजह से अंग्रेजो के प्रति उनका क्रोध और भी बढ़ता गया। उनके इस तरह के स्वभाव के कारण उन्हें उनके कॉलेज ने कराची के डी जे सिंध कॉलेज में जबरदस्ती भेज दिया था ताकी वे वहापर शांत रहकर पढाई कर सके।
उसके बाद में वे पूना के फर्ग्युसन कॉलेज से सन 1908 में ग्रेजुएट हुए। आगे उन्होंने इतिहास और अर्थशास्त्र में एमए की डिग्री हासिल की।
जे बी कृपलानी के सराहनीय कार्य – J. B. Kripalani Works
पढाई पूरी करने के बाद में उन्होंने बिहार के मुजफ्फरपुर कॉलेज में इंग्लिश और इतिहास के प्रोफ़ेसर पद पर काम किया। इस तरहसे उन्होंने सन 1912 से 1917 तक इसी कॉलेज में काम किया।
जब वे सन 1917 में चंपारण सत्याग्रह (Champaran Satyagraha) के दौरान गांधीजी से मिले तो काफी प्रभावित हुए और वहासे ही उनके जीवन का दूसरा दौर शुर हुआ। गांधीजी से मिलकर वे इतने प्रभावित हुए की उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ में काम करना शुरू कर दिया।
सन 1919 में महात्मा गांधी द्वारा स्थापित किये गए गुजरात विद्यापीठ में प्रिंसिपल के रूप में काम करने से पहले कुछ समय के लिए उन्होंने बनारस हिन्दू कॉलेज में भी शिक्षक पद पर काम किया। इस विद्यापीठ में उन्होंने सन 1920 से 1927 तक काम किया।
सन 1920 के दौरान आचार्य कृपलानी (J B Kripalani) पूरी तरह से असहकार आन्दोलन के लिए ही काम करते थे। महात्मा जीन बातो पर जोर देते थे और जो सामाजिक सुधारना लाना चाहते थे उनपर ही कृपलानी काम करते थे। महात्मा गांधी इन सब बातो को गुजरात और बॉम्बे के आश्रम में बताते थे।
गुजरात और बॉम्बे के आश्रम में कुछ समय रहने के बाद वे उत्तर भारत में गए और वहापर उन्होंने नए आश्रमों की स्थापना की और वहापर गांधीजी द्वारा बताई गयी बातो का विस्तार करने का काम किया।
नमक सत्याग्रह (Salt March), सविनय अवज्ञा आन्दोलन (Savinay Avagya Andolan), भारत छोड़ो आन्दोलन (Quit India Movement )में वे सबसे आगे थे और इन आन्दोलन में हिस्सा लेने की वजह से उन्हें कई बार जेल में भी जाना पड़ा। वे अंग्रेज सरकार के खिलाफ लोगो को भड़काने का काम करते थे और लोगो को अंग्रेज सरकार के खिलाफ लड़ाई के लिए प्रेरित करते थे इसीलिए उन्हें कई बार कैद में भी रखा गया था।
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में वे बहुत ही सक्रिय थे जिसकी वजह से वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में कम समय में काफी उचे पद पर पहुच गए थे। सन 1934 से 1945 के दशक में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महासचिव भी थे।
भारत में सन 1946 से 1947 तक जो अंतरिम सरकार बनी थी उसमे कृपलानी (J B Kripalani) ने अहम भूमिका निभाई थी। भारतीय संविधान सभा में भी उन्होंने बहुमूल्य योगदान दिया था।
दाये विचारधारा वाले सरदार वल्लभभाई पटेल और बाये विचारधारा वाले जवाहरलाल नेहरु की सोचे से कृपलानी (J B Kripalani) की सोच काफी भिन्न थी। इन दोनों के विचारो से कृपलानी (J B Kripalani) कभी सहमत नहीं थे। इसीलिए ही वे सन 1946 तक कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं बन पाए थे। जब देश का विभाजन हो रहा था और आजादी मिल रही थी ऐसे समय में उन्होंने पार्टी को अच्छे तरह से सँभालने का काम किया।
नवम्बर 1947 में उन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष पड़ से इस्तीफा दे दिया क्यों की वे चाहते थे की कांग्रेस का नियंत्रण संसदीय संस्था पर हो लेकिन कांग्रेस पार्टी के अन्य सदस्य उनकी सोच के खिलाफ थे। विशेष रूप से नेहरु और पटेल का उनकी विचारधारा को विरोध था। इसीलिए कृपलानी (J B Kripalani) के बाद में डॉ राजेंद्र प्रसाद को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया था।
जवाहरलाल नेहरु और कृपलानी (J B Kripalani) के विचारो में भिन्नता होने के बाद भी सन 1950 में कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में नेहरु ने कृपलानी (J B Kripalani) का समर्थन किया था और इस चुनाव में वे पटेल के उम्मीदवार पुरुषोत्तम दास टंडन के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे। लेकिन इस दुखद चुनाव में कृपलानी (J B Kripalani) को टंडन ने हरा दिया था।
चुनाव में हारने के बाद में उन्होंने कांग्रेस के सदस्य पद से इस्तीफा दे दिया और किसान मजदूर प्रजा पार्टी की स्थापना की। कुछ समय बाद इनकी पार्टी भारत की समाजवादी पार्टी में शामिल हो गयी और एक नयी पार्टी बनी जिसका नाम प्रजा समाजवादी पार्टी रखा गया।
सन 1954 में उन्होंने प्रजा समाजवादी पार्टी से भी इस्तीफा दे दिया और आगे चलकर उन्होंने केवल एक स्वतन्त्र नेता के रूप में काम करना शुरू कर दिया।
वे प्रजा समाजवादी पार्टी के सदस्य होने के कारण वे अपने राजनितिक करियर में हमेशा विरोध में रहे। सन 1952, 1957, 1963 और 1967 ऐसे चार बार वे लोक सभा के सदस्य भी थे।
भारत चीन युद्ध के भीषण परिणाम सामने आने के बाद में उन्होंने सन 1963 में लोकसभा में पहली बार सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया था।
सन 1971 में लोकसभा के चुनाव में हारने के बाद उन्होंने राजनीती छोड़कर अध्यात्म में रुची दिखाना शुरू किया। उन्होंने पुरे 1970 के दशक में पूरी तरह से पर्यावरण का संतुलन बनाये रखने पर ध्यान केन्द्रित किया।
सन 1972 में उन्होंने इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ आवाज उठाई और उनके शासन को तानाशाह का शासन ऐसे शब्दों में कड़ी आलोचना की। उन्होंने अहिंसा के मार्ग से इंदिरा गांधी सरकार का विरोध किया। इतना ही उन्होंने सविनय अवज्ञा आन्दोलन करके पुरे देश में इंदिरा गांधी सरकार का तीव्र विरोध किया। इसकी वजह से देश में 26 जून 1975 को आपातकाल घोषित किया गया और इसमें कृपलानी (J B Kripalani) को गिरफ्तार भी किया गया।
देश में अचानक रूप से आपातकाल घोषित होने के कारण देश में पहली बार एक गैर कांग्रेस पार्टी की सरकार को बनते हुए उन्होंने सन 1977 के चुनाव में देखा था।
आचार्य कृपलानी का निजी जीवन – J. B. Kripalani ki Jivani
सन 1936 में उनकी सुचेता से शादी हुई। वे बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के महिला विद्यापीठ में शिक्षक थी। बनारस के गांधी आश्रम में सुचेता कृपलानी (J B Kripalani) के चचेरे भाई सचिव थे उनके जरिये ही आचार्य कृपलानी (J B Kripalani) की मुलाकात सुचेता कृपलानी (Sucheta Kriplani )से हुई थी।
उनकी पत्नी उनकी तरह बिलकुल नहीं थी वे हमेशा कांग्रेस पार्टी के साथ रही। राजनितिक करियर में उन्होंने कई मंत्रिमडल में बड़े बड़े पद पर काम किया। उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री बनने वाली वे पहली महिला थी।
आचार्य कृपलानी की मृत्यु – J. B. Kripalani Death
19 मार्च 1982 में आचार्य कृपलानी (J B Kripalani) की मृत्यु गयी उस वक्त वे 94 साल के थे।
आचार्य कृपलानी की लिखी क़िताबे – J. B. Kripalani Books
‘माय टाइम्स’ नाम का आचार्य कृपलानी (J B Kripalani) का आत्मचरित्र था जो उनकी मृत्यु के 22 साल बाद रूपा प्रकाशक ने 2004 में प्रकाशित किया था।
आचार्य कृपलानी (J B Kripalani) महात्मा गांधी को बहुत मानते थे। उनका बहुत सम्मान करते थे। उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से एक सत्याग्रह के दौरान हुई थी। जब वे महात्मा गांधी से मिले, उनसे बातचीत की, उनके विचारो को समझे तो उस समय महात्मा गांधी से मिलकर वे बहुत ही प्रभावित हो गए थे।
वे इतने प्रभावित हुए की उन्होंने सब काम छोड़कर महात्मा गांधी के साथ में काम करना शुरू कर दिया था। वे महात्मा गांधी के हर आन्दोलन में हिस्सा लेते थे और केवल हिस्सा ही नहीं लेते थे बल्की उस आन्दोलन में सबसे आगे वही रहते थे।
पुरे समर्पण के साथ वे देश की सेवा करते थे। हर आन्दोलन में वे आगे होने की वजह से उन्हें बहुत बार जेल में भी जाना पड़ता था। लेकिन इसका उनपर कोई विपरीत परिणाम नहीं होता था बल्की इससे उन्हें और भी प्रेरणा मिलती थी।
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