Type Here to Get Search Results !

लाला हर दयाल (Lala Hardayal)

0

विषय सूची

Lala Hardayal
Lala Hardayal

Lala Hardayal – लाला हर दयाल एक भारतीय राष्ट्रवादी क्रांतिकारी थे। वे एक बहुश्रुत थे जिन्होंने अपना करियर भारतीय नागरिक सेवा में बना लिया था। उनके साधे जीवन और उच्च विचार वाली विचारधारा का कनाडा और USA में रहने वाले भारतीय लोगो पर काफी प्रभाव पड़ा। पहले विश्व युद्ध में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ उन्होंने आवाज उठाई थी।

लाला हर दयाल की जीवनी – Lala Hardayal Biography

उनका जन्म 14 अक्टूबर 1884 को दिल्ली के पंजाबी परिवार में हुआ। हरदयाल(Lala Hardayal), भोली रानी और गौरी दयाल माथुर की सांत संतानों में से छठी संतान थे। उनके पिता जिला न्यायालय के पाठक थे। लाला कोई उपनाम नही बल्कि कायस्थ समुदाय के बीच उप-जाति पदनाम था। साथ ही उनकी जाति में ज्ञानी लोगो को पंडित की उपाधि भी दी जाती है।

जीवन के शुरुवाती दिनों में ही उनपर आर्य समाज का काफी प्रभाव पड़ा। साथ ही वे भिकाजी कामा, श्याम कृष्णा वर्मा और विनायक दामोदर सावरकर से भी जुड़े हुए थे। कार्ल मार्क्स, गुईसेप्पे मज्ज़िनी, और मिखैल बकुनिन से उन्हें काफी प्रेरणा मिली।

कैम्ब्रिज मिशन स्कूल में पढ़कर उन्होंने सेंट स्टीफन कॉलेज, दिल्ली से संस्कृत में बैचलर की डिग्री हासिल की और साथ ही पंजाब यूनिवर्सिटी से उन्होंने संस्कृत में मास्टर की डिग्री भी हासिल की थी। 1905 में संस्कृत में उच्च-शिक्षा के लिए ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से उन्होंने 2 शिष्यवृत्ति मिली।

इसके बाद आने वाले सालो में वे ऑक्सफ़ोर्ड से मिलने वाली शिष्यवृत्ति को त्यागकर 1908 में भारत वापिस आ गए और तपस्यमायी जीवन जीने लगे। लेकिन भारत में भी उन्होंने प्रसिद्ध अखबारों के लिए कठोर लेख लिखना शुरू किया, जब ब्रिटिश सरकार ने उनके कठोर लेखो को देखते हुए उनपर प्रतिबंध लगाया तो लाला लाजपत राय ने उन्हें भारत छोड़कर विदेश चले जाने की सलाह दी थी।

1909 में वह पेरिस चले गये और वंदेमातरम् के एडिटर बन गये। लेकिन पेरिस में वे ज्यादा खुश नही थे इसीलिए उन्होंने पेरिस छोड़ दिया और अल्जीरिया चले गए। वहां भी वे नाखुश ही थे और क्यूबा या जापान जाने के बारे में सोचने लगे। सोच विचार करने के बाद वे मार्टीनीक चले गये, जहाँ वे एक तपस्वी का जीवन व्यतीत करने लगे।

इसके बाद हरदयाल (Lala Hardayal) एक तपस्वी का जीवन जीने लगे थे और केवल उबला हुआ धान्य और उबले हुए आलू खाकर फर्श पर ही सोते और किसी एकांत जगह पर ध्यान करते।

लाला हरदयाल की कुछ प्रसिद्ध क़िताबे – Lala Hardayal Books:

हमारी शैक्षणिक समस्या (1922)

शिक्षा पर विचार/सोच (1969)

हिन्दू दौड़ की सामाजिक जीत

राइटिंग ऑफ़ लाला हरदयाल (1920)

जर्मनी और टर्की के 44 माह

लाला हरदयालजी के स्वाधीन विचार (1922)

अमृत में विष (1922)

आत्म संस्कृति के संकेत (1934)

विश्व धर्मो की झलक

बोधिसत्व सिद्धांत (1970)

भारत एक महान देश है। यहाँ हर युग में महान आत्माओं ने जन्म लेकर इस देश को और भी महान बनाया है। ऐसे ही युग पुरुषों में से एक थे, लाला हरदयाल। जो न केवल महान व्यक्तित्व के स्वामी थे, बल्कि गंभीर चिन्तक, विचारक, लेखक और महान देशभक्त थे। उन्होंने उस समय के भारतीय समाज में व्याप्त बुराईयों को दूर करने के लिये बहुत से प्रयास किये थे।

उनके बोलने की शैली बहुत प्रभावशाली और विद्वता पूर्ण थी। उन्होंने अपनी भाषा-शैली में गागर में सागर भरने वाले शब्दों का प्रयोग किया। ये अपनी मातृ भूमि को गुलामी की बेड़ियों में जकड़े हुए देखकर स्वंय के जीवन को धिक्कारते थे और भारत को आजाद कराने के लिये आखिरी सांस तक संघर्ष करते हुए शहीद हो गए।

उस समय के विद्वानों का मानना था कि लाला हरदयाल (Lala Hardayal) जैसे प्रखर बुद्धि वाले महापुरूषों की आजाद भारत को वाकई में जरूरत थी। विदेशी की धरती पर ना जाने कितने लोगों को उन्होंने भारत मां को आजाद करवाने की पावन काम के प्रति जागरूक किया था और पीढ़ियों तक हिंदू और बौद्ध संस्कृति पर लिखी उनकी किताबें लोगों का मार्गदर्शन करती रहेंगी।

इसेभी देखे – जतिंद्र मोहन सेनगुप्त (Jatindra Mohan Sengupta), कमलादेवी चट्टोपाध्याय (Kamaladevi Chattopadhyay), शौर्य चक्र (SHAURYA CHAKRA), Other Links – Indian Medical Association Journal

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ