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Motilal Nehru – मोतीलाल नेहरु (Motilal Nehru) एक भारतीय वकील, भारतीय राष्ट्रिय अभियान के कार्यकर्ता और भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के सक्रीय नेता थे, जिन्होंने 1919-1920 और 1928-1929 तक कांग्रेस का अध्यक्ष बने रहते हुए सेवा की। नेहरु-गाँधी परिवार के वे संस्थापक कुलपति थे।
मोतीलाल नेहरु का शुरुवाती जीवन – Motilal Nehru Early life
मोतीलाल नेहरु (Motilal Nehru) का जन्म 6 मई 1861 को गंगाधर नेहरु और उनकी पत्नी जीवरानी की संतान के रूप में हुआ था। नेहरु परिवार सदियों से दिल्ली में बसा हुआ था और गंगाधर नेहरु शहर के कोतवाल हुआ करते थे।
1857 में जब भारत आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहा था तब गंगाधर नेहरु दिल्ली छोड़ आगरा चले गए थे, जहाँ उनके कुछ रिश्तेदार रहते थे। ग़दर के समय किसी कारणवश नेहरु परिवार के दिल्ली वाले घर को विद्रोहियों ने लूटकर जला दिया।
फरवरी 1861 को उनकी मृत्यु हो गयी और इसके तीन महीने बाद उनके सबसे छोटे बेटे मोतीलाल का जन्म हुआ। 1857 की क्रांति में जब परिवार ने सबकुछ खो दिया था ।
इसके बाद मोतीलाल भी अपना बचपन व्यतीत करने खेत्री आ गये, जो जयपुर (वर्तमान राजस्थान राज्य) राज्य का सबसे बड़ा ठिकाना था। जब उन्हें अहसास हुआ की उन्हें ब्रिटिश औपनिवेशिक कानून का अभ्यास करना चाहिए तो उन्होंने तुरंत क़ानूनी अभ्यास करना शुरू कर दिया। आगरा के प्रोविंशियल हाई कोर्ट में वे कानून का अभ्यास करते थे।
लेकिन कुछ समय बाद ही हाई कोर्ट को आगरा से अल्लाहाबाद स्थानांतरित कर दिया गया और उनके परिवार को भी उसी शहर में जाना पड़ा।
इस तरह से उनका परिवार का संबंध अल्लाहाबाद से हुआ, बहुत से लोगो का ऐसा मानना है की अल्लाहाबाद ही नेहरु परिवार का निवासस्थान था। नंदलाल की कड़ी महेनत की बदौलत मोतीलाल ने आगरा और अल्लाहाबाद की सर्वोत्तम और बेहतरीन स्चूलो से प्राथमिक शिक्षा हासिल की।
नंदलाल ने अपनी महेनत के बदौलत मोतीलाल को पश्चिमी कॉलेज में पढने वाले उस समय के गिने-चुने विद्यार्थियों में से एक बनाया। इसके बाद कानपूर से मोतीलाल ने मेट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और अल्लाहाबाद के मुइर सेंट्रल कॉलेज में दाखिल हुए।
इसके बाद 1883 में उन्होंने हाई कोर्ट की परीक्षा पास की। बाद में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से “बार एट लॉ” की योग्यता हासिल की और ब्रिटिश इंडियन कोर्ट में अपना नाम दर्ज करवाया।
मोतीलाल नेहरु (Motilal Nehru) का करियर – Career
1883 में मोतीलाल ने वकिली की परीक्षा उत्तीर्ण की और कानपूर में वकिली का अभ्यास करने लगे। तीन साल बाद वे अल्लाहाबाद चले गये और वहां उन्होंने अपने भाई नंदलाल द्वारा पहसे से स्थापित संस्था में अभ्यास करने लगे।
अगले साल अप्रैल 1887 में 42 साल की उम्र में उनके भाई की मृत्यु हो गयी और अपने पीछे वे पांच बेटे और 2 बेटियों का हरा-भरा परिवार छोड़ चले गए। तभी से केवल 25 साल की उम्र में हि मोतीलाल अपने विशाल नेहरु परिवार के कर्ता-धर्ता बन चुके थे।
बाद में उन्होंने अल्लाहाबाद में खुद के वकिली के ज्ञान को स्थापित किया। सफल अभ्यास के बाद 1900 में उन्होंने शहर के सिविल लाइन्स में अपने परिवार के लिए एक विशाल घर भी ख़रीदा और उस घर को उन्होंने आनंद भवन का नाम दिया।
1909 में अपने वकिली के करियर में वे शिखर पर पहुचे और महान ब्राह्मणों की गुप्त मंत्रीपरिषद् में उन्हें जाने की अनुमति भी मिल चुकी थी। अल्लाहाबाद के प्रमुख्य दैनिक प्रकाशित अखबार के वे बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर भी थे।
5 फरवरी 1919 को उन्होंने नये दैनिक अख़बार, दी इंडिपेंडेंट की घोषणा की।
इसके बाद उन्होंने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के समृद्ध नेता बनने की राह पर चलने की कोशिश की। 1918 में महात्मा गांधी के प्रभाव में नेहरु (Motilal Nehru) ने विदेशी वस्त्रो का त्याग कर देशी वस्त्रो को पहनना शुरू किया।
अपने विशाल परिवार और घर के खर्चो को पूरा करने के लिए नेहरु को कभी-कभी कानून का अभ्यास करना पड़ता था। स्वराज्य भवन असल में 19 वि शताब्दी के मुस्लिम नेता और शिक्षावादी सर सैयद अहमद खान से जुड़ा हुआ था। कुछ समय बाद भारतीय स्वतंत्रता अभियान के संघर्ष में भाग लेने निकल पड़े, ताकि वे भारत से ब्रिटिश कानून का सफाया कर सके।
राजनितिक करियर
मोतीलाल नेहरु (Motilal Nehru) ने दो बार कांग्रेस का अध्यक्ष रहते हुए सेवा की है, एक बाद अमृतसर (1919) में और दूसरी बार कलकत्ता (1928) में। आने वाले वर्षो में कांग्रेस की छवि को विकसित करने में नेहरु ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
सितम्बर 1920 में असहकार आंदोलन में उन्होंने पार्टी का नेतृत्व किया था। इसके बाद कलकत्ता अधिवेशन में गांधीजी ने सभी के सामने एक प्रस्ताव जारी किया, जिसमे लिखा हुआ था की यदि ब्रिटेन एक साल के भीतर अपने वर्चस्व और प्रभाव को कम नही करेगा तो भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस सम्पूर्ण आज़ादी की मांग करेगी और जरुरत पड़ने पर सविनय अवज्ञा आंदोलन कर अंग्रेजो से लड़ेगी भी।
असहकार आंदोलन के समय मोतीलाल नेहरु (Motilal Nehru) को गिरफ्तार भी किया गया था। गांधीजी के करीबी होने के बावजूद 1922 में उन्होंने गांधीजी द्वारा नागरिक प्रतिरोध को निलंबित किये जाने का विरोध किया था। क्योकि उत्तर प्रदेश के चौरी चौरा में दंगेदार भीड़ में एक पुलिसकर्मी की हत्या कर दी गयी थी।
इसके बाद मोतीलाल स्वराज्य पार्टी में शामिल हो गये, उन्होंने वहां ब्रिटिश-प्रायोजित परिषद् में जाने की मांग भी की। इसके बाद मोतीलाल नेहरु (Motilal Nehru) की नियुक्ति यूनाइटेड प्रोविंस लेजिस्लेटिव कौंसिल में की गयी जहाँ सबसे पहले उन्होंने एक संकल्प की अस्वीकृति को लेकर विरोध किया।
1923 में नेहरु (Motilal Nehru) की नियुक्ति नयी दिल्ली में ब्रिटिश भारत के सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में की गयी और वहां वे विरोधी पार्टी के नेता बन गए। उस भूमिका में उन्होंने अपनी हार को सुरक्षित रखा।
इसके बाद भारतीय सेना में भारतीय अधिकारियो को शामिल करने के उद्देश्य से वे कमिटी में शामिल हो गये, लेकिन उनके इस निर्णय के चलते दुसरे लोग सीधे सरकार में शामिल होने लगे थे।
मार्च 1926 में एक कानून ड्राफ्ट करने के लिए किसी प्रतिनिधि की मांग की ताकि वे भारतीय राज्यों पर अपना अधिकार जमा सके। लेकिन उनकी इस मांग को असेंबली ने अस्वीकृत कर दिया और परिणामस्वरूप नेहरु और उनके सहयोगियों ने असेंबली की सीटो से इस्तीफा दे दिया और वापिस कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए।
इसके बाद 1916 में मोतीलाल के बेटे जवाहरलाल नेहरु ने राजनीती में प्रवेश किया, उन्होंने एक शक्तिशाली और प्रभावशाली भारतीय राजनितिक साम्राज्य की शुरुवात की।
1929 में जब मोतीलाल नेहरु (Motilal Nehru) ने कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षता जवाहरलाल को सौपी, इससे मोतीलाल और नेहरु परिवार काफी खुश हुआ। जवाहरलाल ने अपने पिता द्वारा दी जा रही राज्य पर प्रभुत्व की प्राथमिकता का विरोध किया और जब मोतीलाल ने स्वराज्य पार्टी की स्थापना में सहायता की तब भी जवाहरलाल ने कांग्रेस पार्टी नही छोड़ी।
नेहरु रिपोर्ट 1928 – Nehru report 1928:
नेहरु (Motilal Nehru) की अध्यक्षता में ही 1928 में नेहरु कमीशन पारित किया गया, जो सभी ब्रिटिश साइमन कमीशन के लिए किसी काउंटर से कम नही था।
नेहरु रिपोर्ट के अनुसार भारत का कानून किसी भारतीय द्वारा ही लिखा जाना चाहिए और साथ ही उन्होंने इस रिपोर्ट में ऑस्ट्रेलिया, न्यू ज़ीलैण्ड और कैनाड में भी भारत के प्रभुत्व की कल्पना की थी। कांग्रेस पार्टी ने तो उनकी इस रिपोर्ट का समर्थन किया लेकिन दुसरे राष्ट्रवादी भारतीयों ने इसका विरोध किया, जो पूरी आज़ादी चाहते थे।
मोतीलाल नेहरु की मृत्यु – Motilal Nehru Death:
मोतीलाल नेहरु (Motilal Nehru) की उम्र और घटते हुए स्वास्थ ने उन्हें 1929 से 1931 के बीच होने वाली एतिहासिक घटनाओ से दूर रखा। उस समय कांग्रेस ने भी पूरी आज़ादी को अपने लक्ष्य के रूप में अपना लिया था और गांधीजी ने भी नमक सत्याग्रह की घोषणा कर दी थी।
उन्हें उनके बेटे जवाहरलाल नेहरु के साथ जेल में डाला गया लेकिन ख़राब स्वास्थ के चलते उन्हें रिहा कर दिया गया। जनवरी 1931 के अंतिम सप्ताह में गांधीजी और कांग्रेस की कार्यकर्ता समिति को सर्कार ने रिलीज़ कर दिया था। अंतिम दिनों में गांधीजी और अपने पुत्र को अपने पीछे देख मोतीलाल नेहरु (Motilal Nehru) काफी खुश थे। 6 फरवरी 1931 को उनकी मृत्यु हो गयी।
विरासत
मोतीलाल नेहरु ने ही भारत के शक्तिशाली राजनितिक साम्राज्य की शुरुवात की थी और भारत को तीन प्रधानमंत्री दिए।
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