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1965 का भारत – पाकिस्तान युद्ध (India Pak War of 1965) की पुरी कहानी
भारत और पाकिस्तान के बीच दूसरा युद्ध भी कश्मीर के लिए ही हुआ था। पाकिस्तान ने कश्मीर पर कब्जे की मनसा से अपने कई सैनिकों को आम नागरिकों के वेश में कश्मीर में भेज दिया था। लेकिन जैसे ही भारतीय सेना को पता चला। उन्होनें पाकिस्तानी सैनिकों को खदेंड़ना और गिरफ्तार कराना शुरु कर दिया।
पाकिस्तान ने इस ऑपरेशन का नाम “जिब्रॉल्टर” – Operation Gibraltar रखा था। जो पूरी तरह फेल हो गया था। वहीं दूसरी तरफ भारतीय सैनिकों ने लौहार और सियालकोट पर भी जीत हासिल कर ली थी। लेकिन सोवियत संघ और अमेरिका के दबाव के चलते पाकिस्तान और भारत को युद्ध विराम की घोषणा करनी पड़ी। इसके बाद ताशंकद शहर में साल 1966 में दोनों देशों ने समझौते पर हस्ताक्षर किये।
हालांकि उस समय के भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री हस्ताक्षर नहीं करना चाहते थे। क्योंकि भारत ने पाकिस्तान के आधे से ज्यादा हिस्से पर कब्जा जमा लिया था। लेकिन सोवियत संघ और यूनाइटेड नेशन के कहने पर उन्हें ऐसा करना पड़ा। इसके दूसरे दिन ही उनकी मौत भी हो गई थी। जो आज तक एक राज है।
1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध को भारतीय इतिहास में मात्र हाशिए की जगह मिलती है. लोगों की यादों में भी उस युद्ध की वो जगह नहीं है जो शायद 1962 के भारत-चीन युद्ध या 1971 के बांगलादेश युद्ध की है.
कारण शायद ये है कि इस लड़ाई से न तो हार की शर्मसारी जुड़ी है और न ही निर्णायक जीत का उन्माद.
6 सितंबर 1965 को भारतीय सेना ने वेस्टर्न फ्रंट पर अंतरराष्ट्रीय सीमा को लांघते हुए आधिकारिक तौर पर युद्ध का बिगुल बजा दिया था. इस दिन को पाकिस्तान में ‘डिफ़ेन्स ऑफ़ पाकिस्तान डे’ मनाया जाता है और इस अवसर पर जीत का जुलूस भी निकाला जाता है.
हालांकि भारत का मानना है कि इस युद्ध में जीत भारत की ही हुई थी.
घटना के 52 साल बाद भी इस युद्ध की तस्वीरें या तो ज़हन से पूरी तरह मिट जाती हैं या धुंधली पड़ जाती हैं. लेकिन इससे एक फ़ायदा भी होता है. बीता हुआ समय तस्वीर को एक बेहतर परिप्रेक्ष्य प्रदान करता है.
बीबीसी हिंदी की संपादकीय टीम की बैठक में 1965 के युद्ध के पचास साल होने पर कवरेज की बात हो रही थी तो हमारे संपादक का सुझाव था- “क्यों न युद्ध के 22 दिनों से जुड़ी 22 कहानियों पर काम किया जाए जिनके बारे में लोगों को या तो बिल्कुल पता नहीं हैं या बहुत कम पता है”.
लेकिन ये कोई आसान काम नहीं था. वो जमाना इंटरनेट का नहीं था कि हर चीज़ गूगल पर मिल जाए. लेकिन काम शुरू हो चुका था- पुस्तकालय खंगाले गए, सैंकड़ों किताबें पढ़ी गईं, अभिलेखागार में जाकर कभी गोपनीय रहे दस्तावेज़ों पर नज़र दौड़ाई गई. इतना ही नहीं, सैनिक केंद्रों पर जाकर 50 साल पुरानी युद्ध डायरियों को भी हमने पलटा | (लेख – 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1965)
47 लोगों से बातचीत
लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत थी लड़ाई में शामिल अफ़सरों को तलाशना और उन्हें बात करने के लिए राज़ी करना क्योंकि एक तो उनमें से बहुत से लोग अब इस दुनिया में नहीं रहे, जो हैं भी वो बहुत उम्रदराज़ हो चले हैं, उनकी सेहत और याददाश्त ने भी उनका साथ छोड़ना शुरू कर दिया है. (लेख – 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1965)
बहरहाल, इस पूरे अभियान में 47 लोगों से आमने-सामने बात की गई और न जाने कितने लोगों से फ़ोन पर. इनसे मिलने के लिए भारत के कई शहरों में जाना हुआ. बात केवल इस ओर की नहीं थी, पाकिस्तान के भी कई सैनिक अफसरों को ढूँढ निकाला गया, उन्होंने भी रोमांचित कर देने वाले अनुभव सुनाए. (लेख – 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1965)
पाकिस्तानी एयर कोमोडोर सज्जाद हैदर ने बताया कि पठानकोट पर हमला करने से पहले उन्होंने एक बाल्टी में पानी भरवा कर उसमें ईयू-डे-कोलोन की पूरी बोतल खाली कर दी. आठ तौलिए मंगवाए गए. आपरेशन में शामिल सभी आठ पायलटों से कहा कि वो इस सुगंधित पानी में तौलिए भिगोकर अपना मुंह पोछ लें ताकि अगर अल्लाह से मिलने का मौक़ा आ जाए तो उनके जिस्म से खुशबू आए । (लेख – 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1965)
तारापोर की अंतिम इच्छा
उसी तरह चविंडा की लड़ाई के बीचोंबीच कर्नल तारापोर ने अपने साथी मेजर चीमा को निर्देश दिया कि अगर इस लड़ाई के दौरान वे इस दुनिया में न रहें तो उनका अंतिम संस्कार युद्ध के मैदान पर ही किया जाए.
‘मेरी प्रेयर बुक मेरी मां को दे दी जाए. मेरी अंगूठी मेरी पत्नी को और मेरा फ़ाउंटेन पेन मेरे बेटे ज़र्ज़ीस को दे दिया जाए.’ पांच दिन बाद तारापोर एक पाकिस्तानी टैंक गोले के शिकार हुए. उन्हें मरणोपरांत भारत का वीरता का सबसे बड़ा पदक परमवीर चक्र दिया गया. (लेख – 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1965)
उस लड़ाई में भारत की ओर से शरीक कैप्टन अजय सिंह ने बताया कि कुछ लोगों ने कहा कि अगर कर्नल तारापोर का अंतिम संस्कार लड़ाई के मैदान में किया जाता है तो चिता से उठते धुएँ को देखकर पाकिस्तानी टैंक उन पर फ़ायर करेंगे.
लेकिन उनकी यूनिट ने तय किया कि चाहे जो हो जाए, पाकिस्तान के कितने ही गोले उनके ऊपर आएं, तारापोर की अंतिम इच्छा का सम्मान किया जाएगा. तारापोर की अंत्येष्टि पाकिस्तानी सेना के आग उगलते गोलों के बीच लड़ाई के मैदान में ही की गई. (लेख – 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1965)
युद्ध के अधिकतर ब्योरों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता है. इस सीरीज़ में इससे बचने की कोशिश की गई है. लड़ाइयों में भी ग़लतियां होती हैं. 1965 की लड़ाई में भी ग़लतियां हुईं, दोनों पक्षों की ओर से. (लेख – 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1965)
इन्हें छिपाने की कोशिश नहीं की गई है. ऐसे भी मौके आए जब एक पक्ष ने दूसरे पक्ष के सैनिकों के कारनामों की तारीफ़ की है. ये बताता है कि सैनिक बहादुरी का सम्मान करते हैं, चाहे वो दुश्मन की ही क्यों न हो । (लेख – 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1965)
शमा जलती रहे तो बेहतर
यह सिरीज़ आपको 52 साल पहले हुए उस भारत पाकिस्तान युद्ध की ओर ले जाएगी जहाँ से बहुत से सैनिक कभी वापस नहीं लौटे, कुछ वापस आए जीवट की दास्तान लेकर.
इस युद्ध के तमाम पहलूओं को संजोने की कोशिश की. इस युद्ध के बारे में हमने भारत और पाकिस्तान से जुड़े 20 लोगों के अनुभव यहां सुनिए.
हमारा मक़सद न तो किसी का कीर्तिगान करना है और न ही किसी को सही या ग़लत ठहराना, सैनिकों की कहानियों के ज़रिए पूरी तस्वीर आपके सामने पेश करना चाहते हैं. हमारी ये कोशिश कितनी कामयाब रही, ये हमें बताइगा जरूर.
बहरहाल, साहिर लुधियानवी की नज़्म बरबस याद आती है–
टैंक आगे बढ़ें या पीछे हटें, कोख धरती की बांझ होती है.
फ़तह का जश्न हो या हार का सोग, जिंदगी मयत्तों पर रोती है.
इसलिए ऐ शरीफ़ इंसानों, जंग टलती रहे तो बेहतर है.
आप और हम सभी के आंगन में, शमा जलती रहे तो बेहतर है.
इस लड़ाई के नायकों की कहानी सुने
22 दिनों का युद्ध और 20 आवाज़ें
1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध को भारतीय इतिहास में मात्र हाशिए की जगह मिलती है. लोगों की यादों में भी उस युद्ध की वो जगह नहीं है जो शायद 1962 के भारत चीन युद्ध या 1971 के बांगलादेश युद्ध की है. कारण शायद ये है कि इस लड़ाई से न तो हार की शर्मसारी जुड़ी है और न ही निर्णायक जीत का उन्माद । (लेख – 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1965)
1965 युद्ध की 20 झलकियां
सौम्य छवि लेकिन तेवर आक्रामक1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने भारत को कुशल नेतृत्व दिया. उन्होंने इसी दौरान जय जवान जय किसान का नारा दिया था. युद्ध के तुरंत बाद रामलीला मैदान में भाषण देते हुए उन्होंने पाकिस्तनी मंसूबों पर कटाक्ष किया था. (लेख – 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1965)
अयूब ने ये नहीं सोचा था
1965 के युद्ध में पाकिस्तान का नेतृत्व राष्ट्रपति अयूब ख़ान कर रहे थे. वे ये मान कर चल रहे थे कि कश्मीर पर उनके हमले के जवाब में भारत अंतरराष्ट्रीय सीमा पार नहीं करेगा. लेकिन जब ऐसा हुआ तो वे अचरज से भर गए. उन्होंने पाकिस्तानी जनता को इस तरह संबोधित किया था.
भुट्टो ने दी थी हमले की सलाह
माना जाता है कि 1965 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान को भारत पर हमला करने की सलाह तत्कालीन विदेश मंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने दी थी. इसके बाद उन्होंने सुरक्षा परिषद में पाकिस्तानी पक्ष की पुरज़ोर वकालत भी की थी. सुरक्षा परिषद में बोलते हुए जुल्फ़िकार अली भुट्टो. (लेख – 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1965)
टैंकों को तबाह करने वाला कर्नल
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान चिविंडा की लडा़ई में लेफ्टिनेंट कर्नल तारापोर ने असीम साहस का परिचय देते हुए पाकिस्तान के कई टैंकों को तबाह किया था. इस दौरान वे शहीद भी हो गए. उनकी इस वीरता के लिए भारत सरकार ने उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया था. उनके साथी जनरल अजय सिंह (उस समय कैप्टन) से उनकी अंतिम इच्छा के बारे में सुनिए.
पाकिस्तानी विमानों पर भारी पड़े कीलर बंधु
वायुसेना के इतिहास में शायद ये पहला मौका था जब दो भाईयों को एक साथ वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. दोनों ने 1965 की लड़ाई में पाकिस्तान का एक-एक सेबर जेट गिराया था और दोनों को वीर चक्र दिया गया था. इस युद्ध में हिस्सा लेने वाले एयर मार्शल डेंज़िल कीलर ने बताए अपने अनुभव.
टैंक और हथियार भरी ट्रेन पर निशाना
1965 के युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना के फ्लाइट लेफ्टिनेंट (बाद में एयर मार्शल बने) भूप बिश्नोई ने पाकिस्तानी सीमा के अंदर जाकर टैंक और हथियार ला रही ट्रेन को निशाना बनाया. बिश्नोई ने इसी तरह का साहस 1971 के युद्ध के दौरान भी दिखाया था. उन्होंने 1965 के युद्ध में बेहद महत्वपूर्ण हमले के बारे में बताया.
बाटानगर तक पहुंचे भारतीय सेना
1965 के युद्ध में डोगराई की लड़ाई भी निर्णायक लड़ाईयों में गिनी जाती है. इसमें भारतीय सेना के जवान पाकिस्तानी सीमा में प्रवेश करते हुए बाटानगर तक पहुंच गए थे. बाद में उन्हें वहां से पीछे हटना पड़ा था. लेकिन युद्ध विराम से पहले भारतीय सैनिकों ने कड़े संघर्ष के बाद डोगराई पर दोबारा कब्ज़ा किया था. जनरल वीएन शर्मा उस समय सेनाध्यक्ष जनरल चौधरी के विशेष सहायक थे. उन्होंने इस हमले के बारे में बताया. (लेख – 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1965)
सेनाध्यक्ष को ना कहने वाला जनरल
1965 के युद्ध में भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल चौधरी चाहते थे कि भारतीय सेना व्यास नदी के पीछे आकर मोर्चा संभाले, लेकिन जनरल हरबख़्श सिंह ने उनके इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया था. हरबख़्श सिंह की बेटी हरमाला गुप्ता बता रही हैं कि पाकिस्तानी सेना में हरबख़्श के समकक्ष ना सिर्फ उनके साथ पढ़े थे बल्कि साथ में ट्रेनिंग भी ली थी. (लेख – 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1965)
भूखे पेट भारतीय सैनिकों की लड़ाई
हाजीपीर की लड़ाई को भी 1965 के युद्ध में सबसे अहम लड़ाईयों में गिना जाता है. इस लड़ाई में जीत का सेहरा मेजर आरएस दयाल के सिर बंधा था. उनके साथ लड़ रहे थे कर्नल जिमी राव. राव बता रहे हैं कि किन मुश्किलों में बिना भोजन के भारतीय सैनिकों को ये लड़ाई लड़नी पड़ी थी. राव के मुताबिक भारतीय सैनिक ने चार दिन भूखे प्यासे रहने के बावजूद अदम्य साहस दिखाया था. (लेख – 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1965)
भारतीय सैनिक का वो अदम्य साहस
सैन्य इतिहासकार रचना बिष्ट 1965 के युद्ध पर एक किताब लिख चुकी हैं. इस किताब को लिखने के सिलसिले में उन्होंने 1965 के युद्ध में शामिल कई सैनिकों से बात की. इस युद्ध से जुड़ी एक मार्मिक घटना का जिक्र वो कर रही हैं. यह वाकया डोगराई की लड़ाई के दौरान हुआ था. (लेख – 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1965)
युद्ध के दौरान रणनीति की भूमिका भी अहम
वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने इस युद्ध को नजदीक से देखा था. उन्होंने इस युद्ध में भारतीय सेना की रणनीति की बात करते हुए बताया कि तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल चौधरी चाहते थे कि भारतीय सेना को पीछे हटाया जाए लेकिन जनरल हरबख़्श सिंह ने इससे इनकार कर दिया था. (लेख – 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1965)
प्रशिक्षु पायलट ने पाकिस्तानी विमान गिराया
1965 के युद्ध में वीर चक्र पाने वाले सबसे युवा वायुसैनिक विनोद नेब बता रहे हैं कि किस तरह से उन्होंने पाकिस्तान के सेबर जेट को हलवारा हवाई ठिकाने के पास गिराया था. इन्हीं नेब ने 1971 के बांग्लादेश युद्ध में एक और सेबर जेट गिराया था, जिसके चलते उन्हें दोबारा वीर चक्र से सम्मानित किया गया. (लेख – 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1965)
पठानकोट की लड़ाई में दिखाया कमाल का कौशल
स्कावर्डन लीडर सज्जाद हैदर के नेतृत्व में पाकिस्तान की वायुसेना ने 1965 के युद्ध में भारत के पठानकोट हवाई ठिकाने पर हमला कर वहां खड़े 10 भारतीय विमानों को नष्ट कर दिया था. सज्जाद हैदर को पाकिस्तान सरकार ने सितारा-ए-जुर्रत से सम्मानित किया था. सज्जाद बता रहे हैं किस तरह उन्होंने भारतीय विमान को निशाना बनाया. (लेख – 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1965)
कैसे फ़तह हुआ बर्की?
1965 के युद्ध में जिन पांच बड़ी लड़ाईयों में एक बर्की में हुई थी. इस लड़ाई को पिल बॉक्स की लड़ाई भी कहा जाता है. इसमें भारत और पाकिस्तान दोनों तरफ़ से बहुत सारे सैनिक मारे गए थे. इस युद्ध में भारत की ओर से भाग लेने वाले ब्रिगेडियर कंवलजीत सिंह ने युद्ध का वो मंजर याद किया. (लेख – 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1965)
जहांगीर की बेटी को माफ़ी भरा ईमेल
1965 के युद्ध के दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री के विमान पाकिस्तानी वायुसेना ने उड़ा दिया था. इस हादसे के 46 साल बाद पाकिस्तानी पायलट कैस हुसेन ने भारतीय विमान उड़ा रहे पायलट जहांगीर इंजीनियर की बेटी फरीदा सिंह से माफ़ी मांगी. फरीदा सिंह याद कर रही हैं कैस हुसेन के भेजे ईमेल को. (लेख – 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1965)
कितनी मुश्किल थी ये लड़ाई?
1965 के युद्ध में हाजीपीर की लड़ाई चढ़ाई और ऊंचाईयों की लड़ाई थी. पाकिस्तानी सेना चोटी पर पहले से मौजूद थी और भारतीय सेना के जवानों के सामने चुनौती गोलियों की बौछार का सामना कर चढ़ाई पर पहुंचने की थी. ब्रिगेडियर अरविंदर सिंह बता रहे हैं कि वो लड़ाई कितनी मुश्किल थी और भारतीय सैनिकों ने किस साहस का परिचय दिया था.
अब्दुल हमीद ने दिखाया था अदम्य साहस
असल उत्तर की लड़ाई में शामिल हुए कर्नल रसूल ख़ान युद्ध में शहीद अब्दुल हमीद के साथ लड़े थे. अब्दुल हमीद को भारत सरकार ने सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया था. उस लड़ाई के बारे में बता रहे हैं रसूल ख़ान. (लेख – 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1965)
पठानकोट की लडा़ई में वायुसेना का दमखम
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान पठानकोट में तैनात भारतीय वायुसैनिकों ने अदम्य साहस दिखाया था. कीलर बंधुओं के साथ एयर मार्शल विनय कपिला यहीं तैनात थे. उन्होंने पाकिस्तानी वायुसेना के सेबर जेट को गिराने के किस्से को कुछ यूं याद किया. (लेख – 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1965)
लाहौर से क्यों लौटी भारतीय सेना?
1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने अंतरराष्ट्रीय सीमा को पार कर लिया था. पहले भारतीय सेना का इरादा लाहौर तक पहुंचने का था लेकिन बाद में पाकिस्तान के आम लोगों का ख़्याल करते हुए फ़ैसला लिया गया कि लाहौर शहर के अंदर नहीं जाया जाए. इसके बारे में बता रहे हैं तत्कालीन रक्षा मंत्री यशवंत राव चव्हाण के सचिव आरडी प्रधान. (लेख – 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1965)
भाारत नहीं जीता, लेकिन फ़ायदा हुआ?
1965 के युद्ध में ना तो पाकिस्तान हारा और ना ही भारत जीता. ऐसे में इस युद्ध से किसको क्या मिला? सैन्य इतिहासकार श्रीनाथ राघवन के मुताबिक इस युद्ध से भारत को फ़ायदा हुआ. वे मानते हैं कि युद्ध ने कश्मीर मसले पर भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति मज़बूत करने का मौका दिया । (लेख – 1965 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1965)
इसेभी देखे – भीम सेन सच्चर की जीवनी – Bhim Sen Sachar Biography Hindi, टिपू सुल्तान का इतिहास | Tiger of Mysore Tipu Sultan History, Other Links – श्री शिव, शंकर, भोलेनाथ जी की आरती