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1971 में पाकिस्तान को ऐसा जख्म मिला था जिसकी टीस हमेशा उसे महसूस होती रहेगी। उसी साल पाकिस्तान का दो टुकड़ा हुआ था और भारत ने उसे करारी शिकस्त दी थी। (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
1971 का साल भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के इतिहास में काफी अहमयित रखता है। उसी साल भारत ने पाकिस्तान को वह जख्म दिया था, जिसकी टीस पाकिस्तान को हमेशा महसूस होती रहेगी। बांग्लादेश की बात करें तो यह वही साल था, जब दुनिया के नक्शे पर बांग्लादेश एक स्वतंत्र देश के रूप में उभरा। 1971 के उस इतिहास बदलने वाले युद्ध की शुरुआत 3 दिसंबर, 1971 को हुई थी। आइए आज हम पाकिस्तान के दो टुकड़े और बांग्लादेश के अस्तित्व में आने की पूरी कहानी जानते हैं… (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
1971 का भारत – पाकिस्तान युद्ध (India Pak War of 1971) की पृष्ठभूमि
शेख मुजीबुर रहमान पूर्वी पाकिस्तान की स्वायत्ता के लिए शुरू से संघर्ष कर रहे थे। उन्होंने इसके लिए छह सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की थी। इन सब बातों से वह पाकिस्तानी शासन की आंख की किरकिरी बन चुके थे। साथ ही कुछ अन्य बंगाली नेता भी पाकिस्तान के निशाने पर था।
उनके दमन के लिए और बगावत की आवाज को हमेशा से दबाने के मकसद से शेख मुजीबुर रहमान और अन्य बंगाली नेताओं पर अलगाववादी आंदोलन के लिए मुकदमा चलाया गया। लेकिन पाकिस्तान की यह चाल खुद उस पर भारी पड़ गई। मुजीबुर रहमान इससे पूर्वी पाकिस्तान के लोगों की नजर में हीरो बन गए। इससे पाकिस्तान बैकफुट पर आ गया और मुजीबुर रहमान के खिलाफ षडयंत्र के केस को वापस ले लिया। (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
पाकिस्तान में 1970 का चुनाव
पाकिस्तान में 1970 का चुनाव बांग्लादेश के अस्तित्व के लिए काफी अहम साबित हुआ। इस चुनाव में मुजीबुर रहमान की पार्टी पूर्वी पाकिस्तानी अवामी लीग ने जबर्दस्त जीत हासिल की। पूर्वी पाकिस्तान की 169 से 167 सीट मुजीब की पार्टी को मिली। 313 सीटों वाली पाकिस्तानी संसद में मुजीब के पास सरकार बनाने के लिए जबर्दस्त बहुमत था।
लेकिन पाकिस्तान को कंट्रोल कर रहे पश्चिमी पाकिस्तान के लीडरों और सैन्य शासन को यह गवारा नहीं हुआ कि मुजीब पाकिस्तान पर शासन करें। मुजीब के साथ इस धोखे से पूर्वी पाकिस्तान में बगावत की आग तेज हो गई। लोग सड़कों पर उतरकर आंदोलन करने लगे। पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठान ने पूर्वी पाकिस्तान में विद्रोह को कुचलने के लिए सेना को बुला लिया। (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
पाक सेना का अत्याचार
पूर्वी पाकिस्तान में आजादी का आंदोलन दिन ब दिन तेज होता जा रहा था। पाकिस्तान की सेना ने आंदोलन को दबाने के लिए अत्याचार का सहारा लिया। मार्च 1971 में पाकिस्तानी सेना ने क्रूरतापूर्वक अभियान शुरू किया। पूर्वी बंगाल में बड़े पैमाने पर अत्याचार किए गए। हत्या और रेप की इंतहा हो गई। मुजीब को गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी और टॉर्चर से बचने के लिए बड़ी संख्या में अवामी लीग के सदस्य भागकर भारत आ गए।
शुरू में पाकिस्तानी सेना की चार इन्फैंट्री ब्रिगेड अभियान में शामिल थी लेकिन बाद में उसकी संख्या बढ़ती चली गई। भारत में शरणार्थी संकट बढ़ने लगा। एक साल से भी कम समय के अंदर बांग्लादेश से करीब 1 करोड़ शरणार्थियों ने भागकर भारत के पश्चिम बंगाल में शरण ली। इससे भारत पर पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव बढ़ गया। (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
भारत का हस्तक्षेप
माना जाता है कि मार्च 1971 के अंत में भारत सरकार ने मुक्तिवाहिनी की मदद करने का फैसला लिया। मुक्तिवाहिनी दरअसल पाकिस्तान से बांग्लादेश को आजाद कराने वाली पूर्वी पाकिस्तान की सेना थी। मुक्तिवाहिनी में पूर्वी पाकिस्तान के सैनिक और हजारों नागरिक शामिल थे। 31 मार्च, 1971 को इंदिरा गांधी ने भारतीय सांसद में भाषण देते हुए पूर्वी बंगाल के लोगों की मदद की बात कही थी।
29 जुलाई, 1971 को भारतीय सांसद में सार्वजनिक रूप से पूर्वी बंगाल के लड़कों की मदद करने की घोषणा की गई। भारतीय सेना ने अपनी तरफ से तैयारी शुरू कर दी। इस तैयारी में मुक्तिवाहिनी के लड़ाकों को प्रशिक्षण देना भी शामिल था। (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
अक्टूबर-नवंबर, 1971 के महीने में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके सलाहकारों ने यूरोप और अमेरिका का दौरा किया। उन्होंने दुनिया के लीडरों के सामने भरत के नजरिये को रखा। लेकिन इंदिरा गांधी और अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के बीच बातचीत किसी नतीजे पर नहीं पहुंची। निक्सन ने मुजीबुर रहमान की रिहाई के लिए कुछ भी करने से हाथ खड़ा कर दिया। निक्सन चाहते थे कि पश्चिमी पाकिस्तान की सैन्य सरकार को दो साल का समय दिया जाए।
दूसरी ओर इंदिरा गांधी का कहना था कि पाकिस्तान में स्थिति विस्फोटक है। यह स्थिति तब तक सही नहीं हो सकती है जब तक मुजीब को रिहा न किया जाए और पूर्वी पाकिस्तान के निर्वाचित नेताओं से बातचीत न शुरू की जाए। उन्होंने निक्सन से यह भी कहा कि अगर पाकिस्तान ने सीमा पार (भारत में) उकसावे की कार्रवाई जारी रखी तो भारत बदले कार्रवाई करने से पीछे नहीं हटेगा। (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
भारत पर हमला और युद्ध की शुरुआत
युद्ध की शुरुआत आखिर हुई कैसे? – Why start Indo-Pakistani War of 1971
पाकिस्तान की सरकार और सेना, पूर्वी पाकिस्तान में रहने वाले अपने ही लोगों पर जुल्म ढाह रहे थे और बेगुनाह और बेकसूर लोगों की हत्या कर रही थी क्योंकि पूर्वी पाकिस्तान में रहने वाले लोग अपने ही पाकिस्तान की सेना के खिलाफ आवाज उठा रहे थे। (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
इतना ही नहीं उनकी आवाज दबाने के लिए पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान में नरसंहार शुरु कर दिया। जिसके चलते वहां के लोग अपनी जान बचाने के लिए वहां से भागने लगे। (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
कैसे भारत ने पूर्वी पाकिस्तान की मद्द की थी और क्यों ?
सबसे पहले भारत ने पाकिस्तान पर अंतराष्ट्रीय स्तर पर दबाब बनाया था। दरअसल ये शरणार्थी पूर्वी पाकिस्तान की सीमा से लगे भारतीय राज्यों में पहुंच गए थे। (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
वहीं ऐसा भी कहा जाता है कि उस समय करीब 10 लाख शरणार्थी भारत पहुंचे थे। वहीं उस दौरान भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी। जिन्होंने इस स्थिति को देखते हुए भारतीय फौज को युद्ध की तैयारी करने के आदेश दिए और इसके साथ ही उन्होंने अंतराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान पर दबाव बनाने की कोशिश शुरु कर दी थी। (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
वहीं तत्कालीन भारत और अमेरिका के साथ हुई बैठक में भारत की प्रधानमंत्री ने साफ कह दिया था कि अगर अमेरिका, पाकिस्तान को नहीं रोकेगा तो भारत, पाकिस्तान में सैनिक कार्रवाई के लिए मजबूर होगा। (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
वहीं भारत के कई राज्यों में शांति भी भंग हो रही थी, जिसको देखते हुए इंदिरा गांधी ने 9 अगस्त 1971 को सोवियत संघ के साथ एक ऐसा समझौता किया जिसके तहत दोनों देशों की सुरक्षा का भरोसा दिया गया। (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
पूर्वी पाकिस्तान संकट विस्फोटक स्थिति तक पहुंच गया। पश्चिमी पाकिस्तान में बड़े-बड़े मार्च हुए और भारत के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की मांग की गई। दूसरी तरफ भारतीय सैनिक पूर्वी पाकिस्तान की सीमा पर चौकसी बरते हुए थे। 23 नवंबर, 1971 को पाकिस्तान के राष्ट्रपति याह्या खान ने पाकिस्तानियों से युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा। 3 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान की वायु सेना ने भारत पर हमला कर दिया।
भारत के अमृतसर और आगरा समेत कई शहरों को निशाना बनाया। इसके साथ ही 1971 के भारत-पाक युद्ध की शुरुआत हो गई। 16 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान की सेना के आत्मसमर्पण और बांग्लादेश के जन्म के साथ युद्ध का समापन हुआ। (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
1971: पाकिस्तानी सेना को क्यों करना पड़ा सरेंडर?
1971 के बांग्लादेश युद्ध में पूर्वी कमान के स्टाफ़ ऑफ़िसर मेजर जनरल जेएफ़आर जैकब ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
वह जैकब ही थे जिन्हें मानेकशॉ ने आत्मसमर्पण की व्यवस्था करने ढाका भेजा था. उन्होंने ही जनरल नियाज़ी से बात कर उन्हें हथियार डालने के लिए राज़ी किया था. जैकब 1971 के अभियान पर दो पुस्तकें लिख चुके है.
वे गोवा और पंजाब के राज्यपाल भी रह चुके हैं. इस समय वह दिल्ली में सोम विहार के अपने फ़्लैट में रिटायर्ड जीवन जी रहे हैं. बीबीसी ने उनसे 40 वर्ष पुराने अभियान पर कई सवाल पूछे. (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
आम धारणा यह है कि भारत का राजनीतिक नेतृत्व यह चाहता था कि भारतीय सेना अप्रैल 1971 में ही बांग्लादेश के लिए कूच करे लेकिन सेना ने इस फ़ैसले का विरोध किया. इसके पीछे क्या कहानी है?
मानेकशॉ ने अप्रैल के शुरू में मुझे फ़ोन कर कहा कि बांग्लादेश में घुसने की तैयारी करिए क्योंकि सरकार चाहती है कि हम वहाँ तुरंत हस्तक्षेप करें.
मैंने मानेकशॉ के बताने की कोशिश की कि हमारे पास पर्वतीय डिवीजन हैं, हमारे पास कोई पुल नहीं हैं और मानसून भी शुरू होने वाला है. हमारे पास बांग्लादेश में घुसने का सैन्य तंत्र और आधारभूत सुविधाएं नहीं हैं.
अगर हम वहाँ घुसते हैं तो यह पक्का है कि हम वहाँ फँस जाएंगे. इसलिए मैंने मानेकशॉ से कहा कि इसे 15 नवंबर तक स्थगित करिए तब तक शायद ज़मीन पूरी तरह से सूख जाए.
बांग्लादेश बनवाने वाले जनरल नहीं रहे (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
1971 युद्ध: आँसू, चुटकुले और सरेंडर लंच
आपने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि मानेकशॉ ने अपनी योजना में राजधानी ढाका पर कब्ज़ा करना शामिल नहीं किया था. उनके इस फ़ैसले के पीछे क्या कारण थे?
“मैंने उनसे कहा कि अगर हमें युद्ध जीतना है तो ढाका पर कब्ज़ा करना ही होगा क्योंकि उसका सामरिक महत्व सबसे ज़्यादा है और वह पूर्वी पाकिस्तान का एक तरह से भूराजनीतिक दिल भी है.”
मुझे पता नहीं कि इसके पीछे क्या कारण थे. मुझे सिर्फ़ इतना मालूम है कि हमें सिर्फ़ खुलना और चटगाँव पर कब्ज़ा करने के आदेश मिले थे. मेरी उनसे लंबी बहस भी हुई थी. मैंने उनसे कहा था कि खुलना एक मामूली बंदरगाह है.
उनका कहना था कि अगर हम खुलना और चटगाँव ले लेते हैं तो ढाका अपने आप गिर जाएगा. मैंने पूछा कैसे ? यह तर्क चलते रहे और अंतत: हमें खुलना और चटगाँव पर कब्ज़ा करने के ही लिखित आदेश मिले.
एयरमार्शल पीसी लाल इसकी पुष्टि करते हैं. वह कहते हैं कि ढाका पर कब्ज़ा करना कभी भी लक्ष्य नहीं था. लक्ष्य यह था कि निर्वासित सरकार के लिए जितना संभव हो उतनी ज़मीन जीत ली जाए. वह यह भी कहते हैं कि इस अभियान के दौरान सेना मुख्यालय में आपसी सामंजस्य नहीं था. (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
क्या यह सही है कि अगर पाकिस्तान ने तीन दिसंबर को भारत पर हमला नहीं किया होता तो आपने उन पर चार दिसंबर को हमला बोल दिया होता?
जी यह सही है. मैंने उपसेनाध्यक्ष से मिलकर हमले की तारीख़ पाँच दिसंबर तय की थी लेकिन मानेकशॉ ने इसे एक दिन पहले कर दिया था क्योंकि चार उनका भाग्यशाली अंक था. (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
पाँच दिसंबर चुनने के लिए कोई ख़ास वजह?
इसकी सिर्फ़ एक ही वजह थी कि तब तक सब कुछ व्यवस्थित किया जा चुका था और हमें आक्रमण शुरू करने के लिए और समय की ज़रूरत नहीं थी. (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
क्या यह सही है कि इस पूरे युद्ध के दौरान मानेकशॉ को आशंका थी कि चीन भारत पर आक्रमण कर देगा. आपने उनकी जानकारी के बिना चीन सीमा से तीन ब्रिगेड हटा कर बांग्लादेश की लड़ाई में लगा दी थी. जब उनको इसका पता चला तो उनकी क्या प्रतिक्रिया थी?
“हमें पता था कि पाकिस्तान की रणनीति शहरों की रक्षा करने की थी. इसलिए हम उनको बाईपास करते हुए ढाका की तरफ़ आगे बढ़े थे. 13 दिसंबर को अमरीकी विमानवाहक पोत मलक्का की खाड़ी में घुसने वाला था और मुझे मानेकशॉ का आदेश मिला कि हम वापस जाकर उन सभी शहरों पर कब्ज़ा करें जिन्हें हम बीच में बाईपास कर आए थे.”
उन्होंने इन ब्रिगेडों को वापस चीन सीमा पर जाने का आदेश दिया. मैंने और इंदर गिल ने मिलकर यह फ़ैसला किया था क्योंकि ढाका के अभियान में और सैनिकों की ज़रूरत थी. (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
मैं भूटान में तैनात 6 डिवीजन को इस्तेमाल करना चाहता था लेकिन उन्होंने इसकी अनुमति नहीं दी. मैं सैनिकों को नीचे ले आया लेकिन उनको पता चल गया और उन्होंने उनकी वापसी का आदेश दिया. लेकिन हमने उनको वापस नहीं भेजा. (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
16 दिसंबर का दिन याद करिए जब आपके पास मानेकशॉ का फ़ोन आया कि ढाका जाकर आत्मसमर्पण की तैयारी कीजिए.
16 दिसंबर को मेरे पास मानेकशॉ का फ़ोन आया कि जेक ढाका जाकर आत्मसमर्पण करवाइए. मैं जब ढाका पहुंचा तो पाकिस्तानी सेना ने मुझे लेने के लिए एक ब्रिगेडियर को कार लेकर भेजा हुआ था.
मुक्तिवाहिनी और पाकिस्तानी सेना के बीच लड़ाई जारी थी और गोलियाँ चलने की आवाज़ सुनी जा सकती थी. हम जैसे ही उस कार में आगे बढ़े मुक्ति सैनिकों ने उस पर गोलियाँ चलाई. (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
मैं उन्हें दोष नहीं दूँगा क्योंकि वह पाकिस्तान सेना की कार थी. मैं हाथ ऊपर उठा कर कार से नीचे कूद पड़ा. वह पाकिस्तानी ब्रिगेडियर को मारना चाहते थे. हम किसी तरह पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय पहुँचे.
जब मैंने नियाज़ी को आत्मसमर्पण का दस्तावेज़ पढ़ कर सुनाया तो वह बोले किसने कहा कि हम आत्मसमर्पण करने जा रहे हैं. आप यहां सिर्फ़ युद्धविराम कराने आए हैं. यह बहस चलती रही. मैंने उन्हें एक कोने में बुलाया और कहा हमने आपको बहुत अच्छा प्रस्ताव दिया है. (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
इस पर हम वायरलेस से पिछले तीन दिनों से बात करते रहे हैं. हम इससे बेहतर पेशकश नहीं कर सकते. हम यह सुनिश्चित करेंगे कि अल्पसंख्यकों और आपके परिवारों के साथ से अच्छा सुलूक किया जाए और आपके साथ भी एक सैनिक जैसा ही बर्ताव किया जाए.
इस पर भी नियाज़ी नहीं माने. मैंने उनसे कहा कि अगर आप आत्मसमर्पण करते हैं तो आपकी और आपके परिवारों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी हमारी होगी लेकिन अगर आप ऐसा नहीं करते तो ज़ाहिर है हम कोई ज़िम्मेदारी नहीं ले सकते. उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
मैंने उनसे कहा मैं आपको जवाब देने के लिए 30 मिनट देता हूँ. अगर आप इसको नहीं मानते तो मैं लड़ाई फिर से शुरू करने और ढाका पर बमबारी करने का आदेश दे दूँगा. यह कहकर मैं बाहर चला गया. मन ही मन मैंने सोचा कि यह मैंने क्या कर दिया है. (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
मेरे पास कुछ भी हाथ में नहीं है. उनके पास ढाका में 26400 सैनिक हैं और हमारे पास सिर्फ़ 3000 सैनिक हैं और वह भी ढाका से 30 किलोमीटर बाहर!
अगर वह नहीं कह देते हैं तो मैं क्या करूँगा. मैं 30 मिनट बाद अंदर गया. आत्मसमर्पण दस्तावेज़ मेज़ पर पड़ा हुआ था. मैंने उनसे पूछा क्या आप इसे स्वीकार करते हैं. वह चुप रहे. मैंने उनसे तीन बार यही सवाल पूछा. फिर मैंने वह काग़ज़ मेज़ से उठाया और कहा कि मैं अब यह मान कर चल रहा हूँ कि आप इसे स्वीकार करते हैं. (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
पाकिस्तानियों के पास ढाका की रक्षा के लिए 30000 सैनिक थे तब भी उन्होंने हथियार क्यों डाले?
मैं यहाँ पर हमुदुर्रहमान आयोग की एक कार्रवाई के एक अंश को उद्धृत करना चाहूँगा. उन्होंने नियाज़ी से पूछा आपके पास ढाका के अंदर 26400 सैनिक थे जबकि भारत के पास सिर्फ़ 3000 सैनिक थे और आप कम से कम दो हफ़्तों तक और लड़ सकते थे. (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
सुरक्षा परिषद की बैठक चल रही थी. अगर आप एक दिन और लड़ पाते तो भारत को शायद वापस जाना पड़ता. आपने एक शर्मनाक और बिना शर्त सार्वजनिक आत्मसमर्पण क्यों स्वीकार किया और आपके एडीसी के नेतृत्व में भारतीय सैनिक अधिकारियों को गार्ड ऑफ़ ऑनर क्यों दिया गया?
नियाज़ी का जवाब था, मुझे ऐसा करने के लिए जनरल जेकब ने मजबूर किया. उन्होंने मुझे ब्लैकमेल किया और हमारे परिवारों को संगीन से मारने की धमकी दी. यह पूरी बकवास थी. आयोग ने नियाज़ी को हथियार डालने का दोषी पाया. इसकी वजह से भारत एक क्षेत्रीय महाशक्ति बना और एक नए देश बांग्लादेश का जन्म हो सका. (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
ऑब्ज़र्वर के गैविन यंग ने सरेंडर लंच का ज़िक्र किया है, जिसमें पाकिस्तानी सेना के उच्चाधिकारी शामिल हुए थे.
मैं गैविन को काफ़ी समय से जानता था. वह मुझसे नियाज़ी के दफ़्तर के बाहर मिले और कहा जनरल मैं बहुत भूखा हूँ. क्या आप मुझे खाने के लिए अंदर बुला सकते हैं? मैंने उन्हे बुला लिया. खाने की मेज़ पर खाना लगा हुआ था ….. काँटे छुरी के साथ जैसे कि मानो पीस टाइम पार्टी हो रही हो.
मैं एक कोने में जाकर खड़ा हो गया. उन्होंने मुझसे खाने के लिए कहा लेकिन मुझसे खाया नहीं गया. गैविन ने इस पर एक लेख लिखा जिस पर उन्हें पुरस्कार भी मिला. (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
जब आप जनरल नियाज़ी के साथ जनरल अरोड़ा को रिसीव करने ढाका हवाई अड्डे पहुँचे तो वहाँ मुक्तिवाहिनी के कमांडर टाइगर सिद्दीकी भी एक ट्रक में अपने सैनिकों के साथ पहुँचे हुए थे.
मैंने अपने दोनों सैनिकों को नियाज़ी के सामने खड़ा किया और टाइगर के पास गया. मैंने उनसे हवाई अड्डा छोड़ कर जाने के लिए कहा. उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. मैंने कहा अगर आप नहीं जाते तो मैं आप पर गोली चलवा दूँगा. मैंने अपने सैनिकों से कहा कि वह टाइगर पर अपनी राइफ़लें तान दें. टाइगर सिद्दीकी इसके बाद वहाँ नहीं रुके. (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
हमारे पास एक भी सैनिक नहीं था. संयोग से मैंने दो पैराट्रूपर्स को अपने साथ रखा हुआ था. सिद्दीकी एक ट्रक भर अपने समर्थकों के साथ वहाँ पहुँच गए. मुझे नहीं पता कि वह वहाँ क्यों आए थे लेकिन ऐसा लग रहा था कि वे नियाज़ी को मारना चाहते थे. (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
इंदिरा गांधी ने संसद में घोषणा की थी कि पाकिस्तानी सेना ने 4 बजकर 31 मिनट पर हथियार डाले थे लेकिन वास्तव में यह आत्मसमर्पण 4 बज कर 55 मिनट पर हुआ था. इसके पीछे क्या वजह थी?
मुझे पता नहीं कि इसके पीछे क्या वजह थी. शायद किसी ज्योतिषी की सलाह पर ऐसा किया गया होगा. मैं सिर्फ़ इतना जानता हूँ कि दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर 5 बजने में 5 मिनट कम पर हुए थे. दस्तावेज़ में भी कुछ ग़लतियां थीं. इसलिए दो सप्ताह बाद अरोड़ा और नियाज़ी ने कलकत्ता में दोबारा उन दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर किए. (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
बांग्लादेश की वो सबसे हृदय-विदारक घटना
उस क्षण को याद कीजिए जब नियाज़ी ने अपनी पिस्टल निकाल कर जगजीत सिंह अरोड़ा को पेश की.
मैंने नियाज़ी से तलवार समर्पित करने के लिए कहा. उन्होंने कहा मेरे पास तलवार नहीं है. मैंने कहा कि तो फिर आप पिस्टल समर्पित करिए. उन्होंने पिस्टल निकाली और अरोड़ को दे दी. उस समय उनकी आँखों में आँसू थे. (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
उस समय अरोड़ा और नियाज़ी के बीच कोई बातचीत हुई?
उन दोनों और किसी के बीच एक भी शब्द का आदान-प्रदान नहीं हुआ. भीड़ नियाज़ी को मार डालना चाहती थी. वह उनकी तरफ़ बढ़े भी. हमारे पास बहुत कम सैनिक थे लेकिन फिर भी हमने उन्हें सेना की जीप पर बैठाया और सुरक्षित जगह पर ले गए. (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
आपकी किताबों से यह आभास मिलता है कि लड़ाई के दौरान भारतीय जनरलों की आपस में नहीं बन रही थी. मानेकशॉ की अरोड़ा से पटरी नहीं खा रही थी. अरोड़ा सगत सिंह से ख़ुश नहीं थे. रैना के नंबर दो भी उनकी बात नहीं सुन रहे थे.
सबसे बड़ी समस्या यह थी कि दिल्ली में वायु सेनाध्यक्ष पीसी लाल और मानेकशॉ के बीच बातचीत तक नहीं हो रही थी. लड़ाई के दौरान बहुत से व्यक्तित्व आपस में टकरा रहे थे. मेरे और मानेकशॉ के संबंध बहुत अच्छे थे. उनसे मेरे संबंध बिगड़ने तब शुरू हुए जब 1997 में मेरी किताब प्रकाशित हुई. (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
विजय दिवस की विजयगाथा
पूरा देश आज उन शहीदों की शहादत को याद कर रहा है, जिन्होंने बांग्लादेश को आजादी दिलाने में और इसके निर्माण के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। दरअसल 16, दिसंबर साल 1971 में बांग्लादेश, पाकिस्तान से अलग हुआ था और एक नए राष्ट्र के रुप में इसका निर्माण हुआ था और इसी दिन भारत-पाकिस्तान के युद्ध में भारतीय सैनिकों ने पाक सैनिकों को परास्त कर अपने साहस का परिचय दिया था। (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
16 दिसंबर को ही भारत -पाक युद्ध में पाकिस्तान के 93000 सैनिकों ने भारतीय सैनिकों के सामने आत्मसमर्पण किया था इसलिए तभी इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है – आज हम आपको अपने इस आर्टिकल में विजयदिवस – Vijay Diwas की विजयगाथा के बारे में पूरी जानकारी देंगे – (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
आइए जानते हैं विजय दिवस की विजयगाथा के बारे में – Vijay Diwas
आज हम अपने देश के सैनिकों के त्याग और बलिदान की वजह से ही बिना किसी फ्रिक के चैन की नींद सो रहे है, और खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। सैनिक जो कि न सिर्फ कड़ाकी की ठंड में और तपती धूप में हमारी सुरक्षा के लिए बॉर्डर पर तैनात रहते हैं बल्कि वे देश के लिए किसी भी तरह का हमले का डटकर सामना करते हैं और अपनी जान भी देने में नहीं हिचकिचाते। (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
वहीं 16 दिसंबर 1971, भी भारतीय सेना के पराक्रम की बेमिसाल कहानी है, इसी दिन सैकड़ों भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान से युद्ध करते हुए अपनी प्राणों की आहूति दी थी।
आपको बता दें कि साल 1971 का युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच एक सैन्य संघर्ष (Indo-Pakistani War of 1971) था। जिसकी शुरुआत तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के द्धारा 3 दिसंबर, 1971 में पाकिस्तान द्धारा भारतीय वायुसेना के 11 स्टेशनों पर हवाई हमले से हुई थी। इसके परिणामस्वरूप भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम में बंगाली राष्ट्रवादी गुटों के समर्थन के लिए तैयार हो गई थी। (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
इसी युद्द के दौरान हुआ मुक्ति वाहिनी सेना का जन्म – Mukti Bahini
दरअसल,पूर्वी पाकिस्तान में हालत बेहद खराब होते जा रहे थे। पुलिस, पैरामिलिट्री फोर्स, ईस्ट पाकिस्तानी राइफल्स और ईस्ट बंगाल रेजमेंट के लिए बंगाली सैनिकों ने पाकिस्तान फौज के खिलाफ बगावत कर खुद को आजाद घोषित करना शुरु कर दिया था।
वहीं भारत ने भी मद्द की थी, इसके साथ ही भारत ने वहां के लोगों को फौजी ट्रेनिंग भी दी, जिससे वहां पर मुक्ति वाहिनी सेना का जन्म हुआ था।
3 दिसंबर, साल 1971 को पाकिस्तानी विमानों ने भारत के कुछ शहरों में बमबारी शुरु कर दी थी, जिसकी वजह से भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरु हो गया और 4 दिसंबर 1971 को भारत ने ऑपरेशन ट्राइडेंट शुरु किया।
वहीं इस ऑपरेशन में भारतीय नौसेना ने बंगाल की खाड़ी में समुद्र की ओर से पाकिस्तानी नौसेना को टक्कर दी और दूसरी तरफ पश्चिम पाकिस्तान की सेना का भी मुकाबला किया।
भारतीय नौसेना ने 5 दिसंबर, 1971 को कराची बंदरगाह पर बमबारी कर, पाकिस्तानी मीडिया हेडक्वार्टर को तबाह कर दिया। इसी समय इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान को एक नया राष्ट्र बांग्लादेश के रूप में बनाने का ऐलान कर दिया।
जिसका मतलब बांग्लादेश पाकिस्तान का हिस्सा न होकर एक नया राष्ट्र बन गया। जिसके चलते पाकिस्तान ने 16 दिसंबर 1971 को सरेंडर कर दिया था और उस दौरान लगभग 93000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था। इस प्रकार 16 दिसंबर, 1971 को बांग्लादेश का एक नए राष्ट्र के रुप में जन्म हुआ और पूर्वी पाकिस्तान,पाकिस्तान से आजाद हो गया। (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
वहीं यह युद्ध भारत के लिए ऐतिहासिक युद्ध माना जाता है। इसलिए पूरे देश में भारत की पाकिस्तान पर जीत के उपलक्ष्य में 16 दिसंबर, 1971 को विजय दिवस – Vijay Diwas के रूप में मनाया जाता है।
इस युद्ध के दौरान 1971 में भारत 3900 सैनिक शहीद हो गए थे और करीब 9 हजार 851 सैनिक बुरी तरह घायल हो गए थे। इस तरह भारतीय सैनिको ने अपने त्याग और बलिदान से विजय गाथा लिखी थी। वहीं ऐसे शहीदों को ज्ञानीपंडित की टीम शत-शत नमन करती है और उनके साहस के लिए श्रद्धापूर्ण श्रद्धांजली देती है। (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
विजय दिवस के मुख्य बिंदु – Facts about Vijay Diwas
विजय दिवस 16 दिसम्बर को 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की जीत के कारण मनाया जाता है।
इस युद्ध के अंत के बाद 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था।
साल 1971 के युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी, जिसके बाद पूर्वी पाकिस्तान आजाद हो गया, जो आज बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है।
1971 में बांग्लादेश को आजादी दिलाने वाली जंग 16 दिसंबर को खत्म हुई थी।
तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में पाक फौज गैर-मुस्लिम आबादी को निशाना बना रही थी, जिसके बाद भारत भी इस जंग में कूद गया।
यह जंग 13 दिन चली थी, जिसमें पाकिस्तान ने हथियार डाल दिए थे।
इस लड़ाई में करीब 9 हजार पाकिस्तानी सैनिक मारे गए थे।
इस युद्ध में करीब 3,900 भारतीय जवान शहीद हुए थे और करीब 9 हजार 851 सैनिक बुरी तरह घायल हुए थे।
भारत-पाक के बीच युद्ध 3 दिसंबर 1971 से 16 दिसंबर 1971 तक चला. जिसमें भारत की जीत हुई और बांग्लादेश का निर्माण हुआ। (लेख – 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध India Pak War of 1971)
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