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चौसा का युद्ध (Chausa Ka Yudh)

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चौसा का युद्ध कहानी (Chausa Ka Yudh Story)

Chausa Ka Yudh
Chausa Ka Yudh

चौसा का युद्ध (Chausa Ka Yudh) इतिहास में लड़े गए प्रमुख युद्धों में से एक है। 1539 ईसवी में मुगल सम्राट हुमायूं और अफगान सरदार शेरशाह सूरी के बीच लड़े गए इस युद्ध में हुमायूं के द्धारा की गई कुछ गलतियां उस पर भारी पड़ गईं, और उसे इस युद्ध में हार का सामना करना पड़ा और युद्ध मैदान छोड़कर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। आईये आगे जानते हैं विस्तार से चौसा के युध्द की सारी जानकारी – (लेख – चौसा का युद्ध Chausa Ka Yudh)

Chausa के युद्ध का सारांश एक नजर में (Battle of Chausa Summary)

चौसा का युद्ध कब लड़ा गया था – 26 जून, 1539 ईसवी में।

चौसा के युद्ध कहां लड़ा गया था – उत्तरप्रदेश और बिहार के बॉर्डर पर बक्सर के पासकर्मनाशा नदी के किनारे बसे एक छोटे से चौसा नामक कस्बा परयुद्द लड़ा गया।

चौसा का युद्ध किस-किसके बीच लड़ा गया – यह युद्ध मुगल सम्राट हुमायूं औरशक्तिशाली अफगान शासक शेरशाह सूरी के बीच लड़ा गया।

चौसा के युद्ध की शुरुआत – Battle of Chausa Indian History

मुगल सम्राट हुमायूं का सेनापति हिन्दूबेग पर कब्जा कर वहां से अफगान सरदारों को भगा देना चाहता था, तो वहीं दूसरी तरफ मुगल भी पूरे भारत में सिर्फ अपना कब्जा जमाने चाहते थे।

ऐसी स्थिति में अपने-अपने राज्य की विस्तार नीति को लेकर चलाए गए विजय अभियानों के दौरान मुगलों और अफगानों के बीच जंग छिड़ गई और मुगल शासक हुमायूं एवं अफगार सरदार शेरशाह सूरी एक-दूसरे के प्रबल दुश्मन बन गए।

वहीं जब मुगल सम्राट हुमायूं मुगल साम्राज्य के विस्तार के लिए अन्य क्षेत्रों पर फोकस कर रहा था और अफगानों की गतिविधियों पर कोई ध्यान नहीं दे रहा था।

जिनका शेरशाह सूरी ने फायदा उठाया और आगरा, कन्नौज, जौनपुर, बिहार आदि पर कपना कब्जा जमा लिया एवं बंगाल के सुल्तान पर आक्रमण कर बंगाल के कई बड़े किले और गौड़ क्षेत्र में अपना अधिकार जमा लिया।

जिसके बाद हुंमायूं को शेरशाह की बढ़ती शक्ति जब बर्दाश्त नहीं हुआ और दोनों के बीच संघर्ष छिड़ गया। (लेख – चौसा का युद्ध Chausa Ka Yudh)

शेरशाह अपनी कूटनीति की बदौलत जीता चौसा का युद्ध (Chausa Ka Yudh):

शेरशाह पराक्रमी होने के साथ-साथ एक कूटनीतिज्ञ शासक भी था, जिसने अपना एक दूत भेजकर मुगलों की सारी कमजोरियों का पता लगा लिया था और मुगलों से युद्ध के लिए सही समय का इंतजार करने तक मुगलों को शांति रुप से संधियों में उलझाए रखा था फिर एक दिन अचानक रात के समय में मुगलों पर हमला कर दिया। (लेख – चौसा का युद्ध Chausa Ka Yudh)

26 जून, 1539 में उत्तर प्रदेश और बिहार बॉर्डर के पास कर्मनाशा नदी के किनारे चौसा नामक एक कस्बे के पास शेरशाह सूरी ने मुगलों की सेना पर रात के समय अचानक आक्रमण कर दिया।

जिसके चलते अपनी जान बचाने के लिए कई मुगल सैनिकों ने गंगा नदी में कूदकर अपनी जान दे दी तो बहुत से मुगल सैनिकों को अफगान सैनिकों द्धारा तलवार से मार दिया गया।

ऐसे में मुगल सेना का काफी नुकसान हुआ और मुगल सम्राट हुमायूं कमजोर पड़ गया, जिसके बाद हुमायूं युद्ध भूमि छोड़कर वहां से भाग निकला और किसी तरह एक भिश्ती की मद्द से अपनी जान बचाई और इस तरह अपनी कुशल कूटनीति के चलते शेरशाह सूरी की चौसा के युद्द में जीत हुई। (लेख – चौसा का युद्ध Chausa Ka Yudh)

चौसा के युद्ध में हुमायूं की हार क्यों हुई:

मुगल सम्राट हुमायूं अफगानों की गतिविधियों को नजरअंदाज कर दूसरे राज्यों मे विस्तार करने में लगा रहा।

हुमायूं ने शेरशाह सूरी से युद्ध करते वक्त अपनी सेनाओं को दो अलग-अलग समूह में बांट दिया।

हुमायूं का शिविर गंगा और कर्मनाशा नदी के बीच नीची जगह पर था, जिसके चलते बारिश का पानी भर गया और फिर गंदगी से उसकी सेना मलेरिया के चपेट में आ गई। साथ ही अव्यवस्था फैलने से मुगलों का तोपखाना नाकाम हो गया।

शेरशाह ने मुगल छावनी पर रात के समय में अचानक धोखेबाजी कर आक्रमण किया था, जिसके चलते कई मुगल सैनिक अपनी जान बचाने के लिए नदी में कूद गए, जिसमें कई सैनिकों की डूबने से मौत हो गई, जबकि कई सैनिक अफगान सैनिकों के द्धारा मारे गए, जिससे मुगल सेना का भारी नुकसान हुआ और इसी वजह से भी हुंमायूं यह युद्द हार गया था। (लेख – चौसा का युद्ध Chausa Ka Yudh)

चौसा के युद्ध के बाद क्या हुआ और इसके परिणाम (Battle of Chausa Result)

चौसा (chausa) के युद्ध (war) में शेरशाह सूरी की जीत के बाद उसे बंगाल और बिहार का सुल्तान बनाया गया। इसके बाद ही उसने ”शेरशाह आलम सुल्तान-उल-आदित्य” की उपाधि धारण की।

युद्ध के बाद अफगानों का प्रभुत्व भारत में काफी बढ़ गया और अफगानों ने आगरा समेत मुगलों के कई राज्यों पर अपना कब्जा स्थापित कर लिया।

युद्ध में जीत की खुशी में शेरशाह ने अपने नाम के सिक्के ढलवाए, ”खुतबा” पढ़वाया और इसके साथ ही फरमान जारी किए।

चौसा के युद्ध के बाद मुगलों की शक्ति कमजोर पड़ गई और मुगल सम्राट हुमायूं का लगभग पतन हो गया।

चौसा के युद्ध के बाद 1540 ईसवी में हुमायूं और शेरशाह के बीच में बलग्राम और कन्नौज का युद्ध हुआ और इस युद्द में भी हुंमायूं को हार का सामना करना पड़ा और भारत छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसके बाद हुंमायूं ने अकबर की बेटी हमीदा बानू बेगम से निकाह कर लिया था। (लेख – चौसा का युद्ध Chausa Ka Yudh)

इसेभी देखे – हल्दी का युद्ध (Haldighati ka Yudh), सारागढ़ी का युद्ध (Saragarhi War), खानवा का युद्ध (Khanwa ka yudh), 1965 का भारत – पाकिस्तान युद्ध (India Pak War of 1965), कारगिल युद्ध (Kargil War), 1971 का भारत – पाकिस्तान युद्ध (India Pak War of 1971), प्रथम विश्व युद्ध (First World War), भजन – रामापीर भक्ति गीत, जय श्री रामदेव अवतारी, कलयुग में धणी आप पधारे, पिछम धरां सूं म्हारा पीर जी पधारिया, ओउम जय श्री रामादे स्वामी जय श्री रामादे,

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