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कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी (Kanaiyalal Maneklal Munshi)

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Kanaiyalal Maneklal Munshi
Kanaiyalal Maneklal Munshi

कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी (अंग्रेज़ी: Kanaiyalal Maneklal Munshi, जन्म: 29 दिसंबर, 1887; मृत्यु: 8 फरवरी, 1971) भारत के स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, क़ानून विशेषज्ञ व गुजराती, अंग्रेजी, हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार तथा शिक्षाविद थे, जो बम्बई के गृहमंत्री, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल भी रहे थे। भारत सरकार के खाद्य मंत्री पद पर रहे। उन्होंने मुम्बई में भारतीय विद्या भवन की स्थापना की। इन्होंने मुंशी प्रेमचंद के साथ हंस का संपादन भी संभाला था। (लेख – कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी Kanaiyalal Maneklal Munshi)

जीवन परिचय

कन्हैयालाल मुंशी का जन्म भड़ोच (गुजरात) के उच्च सुशिक्षित भागर्व ब्राह्मण परिवार में हुआ था। कन्हैयालाल की प्रारम्भिक शिक्षा अपनी माँ के धार्मिक गीतों और कथाओं से हुई। बड़ौदा में अपनी महाविद्यालीय शिक्षा के दौरान कन्हैयालाल मुंशी को अध्यापक के रूप में अरविंद घोष (महर्षि अरविंद) का सान्निध्य मिला। इस सम्पर्क से मुंशी के मन में औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध हथियारबंद विद्रोह का संकल्प जगा। (लेख – कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी Kanaiyalal Maneklal Munshi)

साथ ही इसी सम्पर्क ने मुंशी के हृदय में भारत की गौरवशाली सांस्कृतिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक धरोहर के प्रति अगाध श्रद्धा भी भर दी। 1910 में मुंशी ने बम्बई विश्वविद्यालय से एलएलबी की उपाधि प्राप्त की और वकालत शुरू करने के बाद बहुत कम समय में ही बम्बई उच्च न्यायालय के प्रमुख वकीलों में से एक बन गये। हिंदू कानून पर मुंशी को असाधारण महारत थी क्योंकि उन्होंने यह ज्ञान केवल कानूनी किताबों से नहीं बल्कि मिताक्षर व धर्मशास्त्रों के गम्भीर व तर्कसंगत अध्ययन से प्राप्त किया था। (लेख – कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी Kanaiyalal Maneklal Munshi)

भारतीय विद्या भवन की स्थापना

स्वाधीनता से लगभग दस साल पहले नवम्बर, 1938 में उन्होंने भारतीय विद्या भवन की स्थापना की ताकि भारत के वर्तमान तथा भविष्य को भारत के सांस्कृतिक और वैचारिक पुनर्जागरण से संजोया जा सके। 1938 में मुंशी और उनके तीन मित्रों द्वारा दिये गये 250 रुपये प्रति वर्ष के योगदान से स्थापित भारतीय विद्या भवन के आज सारे विश्व में लगभग 120 केंद्र और इनसे जुड़े हुए 350 से अधिक शैक्षणिक संस्थान हैं। भवन से संबंधित कई संस्थानों में इंजीनियरिंग, सूचना प्रौद्योगिकी, मैनेजमेंट, संचार व पत्रकारिता, विज्ञान, कला व वाणिज्य की पढ़ाई की व्यवस्था है। लेकिन इन सबसे ऊपर भवन ने भारतीय विद्या के अध्ययन-अध्यापन पर सर्वाधिक ध्यान दिया है। (लेख – कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी Kanaiyalal Maneklal Munshi)

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

भारत की स्वाधीनता के लिए आतुर कन्हैयालाल मुंशी पहले विश्व-युद्ध के दौरान एनी बेसेंट के होम रूल आंदोलन से जुड़ गये लेकिन बाद में गाँधी के सम्पर्क में आने पर उन्होंने कांग्रेस का साथ देने का फ़ैसला किया। सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में 1928 के बारदोली सत्याग्रह में कन्हैयालाल मुंशी जी ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। इसी प्रकार 1930 के नमक सत्याग्रह में मुंशी ने सपत्नीक भागीदारी की। नमक सत्याग्रह में भागीदारी के चलते उन्हें छह महीने का कारावास भी भुगतना पड़ा। 1931 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भाग लेने के दण्डस्वरूप मुंशी को दो साल की सज़ा सुनायी गयी। (लेख – कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी Kanaiyalal Maneklal Munshi)

1937 में कन्हैयालाल मुंशी को तत्कालीन बॉम्बे प्रेसीडेंसी की पहली निर्वाचित सरकार में मंत्री पद पर नियुक्त किया गया। हालाँकि उनकी व्यक्तिगत पसंद कानून व शिक्षा मंत्रालय थी, लेकिन उन्हें गृह मंत्रालय जैसे महत्त्वपूर्ण विभाग का उत्तरदायित्व सौंपा गया। यह उस दौर की बात है जब अंग्रेज़ी हुकूमत भारतीयों को स्वशासन के लिए पूर्णतः अक्षम मानती थी। विशेषकर साम्प्रदायिक मसलों पर वह भारतीयों को विफल देखना चाहती थी। लेकिन मुंशी ने अपने गृहमंत्री के कार्यकाल में कार्यकुशलता, निष्पक्षता व न्यायप्रियता का नमूना पेश किया। (लेख – कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी Kanaiyalal Maneklal Munshi)

संविधान-निर्माण में योगदान

स्वतंत्र भारत के लिए नये संविधान-निर्माण के रचयिताओं में आदर्शवाद व यथार्थवाद के मिश्रण की आवश्यकता थी। राजनीतिक अंतर्दृष्टि और कुशाग्र कानूनी बुद्धि से परिपूर्ण कन्हैयालाल मुंशी इस कार्य में सबसे दक्ष माने गये। संविधान-निर्माण के लिए बनायी गयी समितियों में से मुंशी सबसे ज़्यादा ग्यारह समितियों के सदस्य बनाये गये। डॉ. भीमराव आम्बेडकर की अध्यक्षता में बनायी गयी संविधान निर्माण की प्रारूप समिति में कानून में ‘हर व्यक्ति को समान संरक्षण’ के सिद्धांत का मसविदा मुंशी और आम्बेडकर ने संयुक्त रूप से लिखा था।

इसी प्रकार कई अड़चनों और व्यवधानों के बावजूद हिंदी तथा देवनागरी लिपि को नये भारतीय संघ की राजभाषा का स्थान दिलाने में मुंशी ने सबसे प्रमुख भूमिका निभायी। 14 सितम्बर, 1949 को संविधान सभा के इस निर्णय को प्रति वर्ष हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। संविधान-निर्माण में कन्हैयालाल मुंशी का सबसे ज़्यादा ध्यान एक मज़बूत केंद्र के अंतर्गत संघीय प्रणाली विकसित करना था, देसी रियासतों के भारत में विलय की मुश्किलों के संदर्भ में और असंख्य विविधताओं वाले इस नव-स्वतंत्र राष्ट्र में मुंशी सहित अन्य संविधान-निर्माताओं ने एक मज़बूत केंद्रीय सरकार को अपरिहार्य माना।

कन्हैयालाल मुंशी के लिए भारतीय संविधान की पहली पंक्ति ‘इण्डिया दैट इज़ भारत’ वाक्यांश का अर्थ केवल एक भूभाग नहीं बल्कि एक अंतहीन सभ्यता है, ऐसी सभ्यता जो अपने आत्म-नवीनीकरण के ज़रिये सदैव जीवित रहती है। (लेख – कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी Kanaiyalal Maneklal Munshi)

उत्तर प्रदेश के राज्यपाल

1947 में हैदराबाद के निज़ाम ने अपनी रियासत को स्वतंत्र राष्ट्र की मान्यता देने की माँग की तो इस समस्या को सुलझाने के लिए भारत सरकार ने मुंशी को हैदराबाद में भारत सरकार का प्रतिनिधि (एजेंट जनरल) नियुक्त किया। हैदराबाद राज्य के भारत में विलय के बाद तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने इस अभियान में मुंशी की अहम भूमिका की बहुत प्रशंसा की। अपने इस दुरूह कार्य को सम्पन्न करने के बाद मुंशी ने इस पर अपने संस्मरण द ऐंड ऑफ़ ऐन इरा (हैदराबाद मेमोइर्स) नामक एक पुस्तक भी लिखी। 

डॉ. राजेंद्र प्रसाद के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद मुंशी केंद्रीय मंत्रिमण्डल में उनके स्थान पर कृषि व खाद्य मंत्री बने। इसी दौरान उन्होंने पर्यावरण तथा वानिकी के संरक्षण के लिए कई कारगर प्रयास आरम्भ किये। हर वर्ष जुलाई में आयोजित वन महोत्सव कन्हैयालाल मुंशी के उन्हीं प्रयासों की ही देन है। स्वतंत्र भारत में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण भी मुंशी के एजेंडे पर था। उनकी इस सक्रियता के कारण प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने एक कैबिनेट बैठक के बाद कन्हैयालाल मुंशी से कहा कि आप सोमनाथ मंदिर की पुनःस्थापना के लिए जो प्रयास कर रहे हैं, वे मुझे पसंद नहीं हैं। 

1952 से 1957 तक कन्हैयालाल मुंशी उत्तर प्रदेश राज्य के राज्यपाल रहे। 1959 में मुंशी कांग्रेस पार्टी की सदस्यता से त्यागपत्र देकर चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की स्वतंत्र पार्टी में शामिल हो गये। इसके कुछ समय बाद उन्होंने भारतीय जनसंघ की सदस्यता ग्रहण कर ली। (लेख – कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी Kanaiyalal Maneklal Munshi)

साहित्यिक परिचय

एक रचनाकार और सम्पादक के रूप में कन्हैयालाल मुंशी की उपलब्धियाँ अनूठी हैं, जैसे यंग इण्डिया अख़बार का सम्पादन और मुंशी प्रेमचंद के साथ हंस पत्रिका का सम्पादन। कन्हैयालाल मुंशी एक असाधारण साहित्यकार थे। उन्होंने गुजराती, हिंदी व अंग्रेज़ी में सौ से ज़्यादा उत्कृष्ट ग्रंथों की रचना की। एक साहित्य सेवक के रूप में उन्होंने गुजराती साहित्य परिषद्, संस्कृत विश्वपरिषद् तथा हिंदी साहित्य सम्मलेन की अगुआई भी की। एक शिक्षाविद् के रूप में भी मुंशी ने अनेक शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की। इनमे सबसे उल्लेखनीय है सरदार पटेल के साथ मिल कर आणंद में भारतीय कृषि संस्थान की स्थापना, जो आज एक पूर्ण विश्वविद्यालय है। (लेख – कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी Kanaiyalal Maneklal Munshi)

निधन

कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी (Kanaiyalal Maneklal Munsh) का देहांत 8 फ़रवरी, 1971 को हुआ।

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