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पीर अली खान (Peer Ali Khan)

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Peer Ali Khan
Peer Ali Khan

जन्म – 1812

जन्म भूमि – मुहम्मदपुर, आज़मगढ़ जिला, उत्तर प्रदेश, भारत

शहादत – 7 जुलाई 1857

प्रसिद्धि – स्वतंत्रता सेनानी

नागरिकता – भारतीय

जीवन परिचय ओर क्रान्तीकारी जीवन

1757 ई. से लेकर 1947 ई. तक बिहार में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह चलता रहा। बिहार में 1757 ई. से ही ब्रिटिश विरोधी संघर्ष प्रारम्भ हो गया था। यहाँ के स्थानीय जमींदारों, क्षेत्रीय शासकों, युवकों एवं विभिन्‍न जनजातियों तथा कृषक वर्ग ने अंग्रेजों के खिलाफ अनेकों बार संघर्ष या विद्रोह किया। बिहार के स्थानीय लोगों द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ संगठित या असंगठित रूप से विद्रोह चलता रहा, जिनके फलस्वरूप अनेक विद्रोह हुए। (लेख – पीर अली खान Peer Ali Khan)

जैसे के बहावी आन्दोलन , नोनिया विद्रोह , लोटा विद्रोह , छोटा नागपुर का विद्रोह, तमाड़ विद्रोह , हो विद्रोह , कोल विद्रोह , भूमिज विद्रोह , चेर विद्रोह , संथाल विद्रोह , पहाड़िया विद्रोह , खरवार विद्रोह , सरदारी लड़ाई , मुण्डा विद्रोह , सफाहोड आन्दोलन , ताना भगत आन्दोलन , पर इन सबमे सबसे मशहूर जो हुआ वो था 1857 का सिपाही आंदोलन , 1857 ई. का विद्रोह अंग्रेजों के खिलाफ भारतवासियों का प्रथम मज़बूत विद्रोह था।

1857 की क्रांति ने बिहार को भी प्रभावित किया। यह सच है कि यहाँ आगरा, मेरठ तथा दिल्ली की भाँति क्रांति का जोर नहीं था, फिर भी बिहार के कई क्षेत्रों में क्रांति ने भीषण रूप धारण कर लिया था। सैकड़ो ब्रितानियों को यहाँ मौत के घाट उतार दिया गया।

गया, छपरा, पटना, मोतिहारी तथा मुजफ्फरपुर आदि नगरों में क्रांति ने भीषण रूप धारण कर लिया। ब्रितानियों ने दानापुर में एक छावनी की स्थापना की, ताकि बिहार पर नियंत्रण स्थापित किया जा सके। स्वदेशियों की सातवीं, आठवीं तथा चालीसवीं पैदल सेनाएँ भीं, जिन पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए एक विदेशी कंपनी और तोप सेना रखी गई थी।

इसका प्रधान सेनापति मेजर जनरल लायड था। टेलर पटना का कमिश्नर था, जो बहुत दूरदर्शी था। उसमें प्रशासनिक क्षमता अत्यधिक थी। उसका यह मानना था कि पटना के मुसलमान भी इस क्रांति में हिंदुओं के साथ भाग लेंगे। पटना में बहावी मुसलमानों की संख्या बहुत अधिक थी। (लेख – पीर अली खान Peer Ali Khan)

टेलर ने वहाबी मुस्लिम नेताओं पर कड़ी नज़र रखना प्रारंभ कर दिया। पटना के नागरिकों ने कुछ वर्ष से ही क्रांति की तैयार शुरू कर दी थी, इसके लिए संगठन स्थापित किए जा चुके थे, जिसमें शहर के व्यवसायी एवं धनी वर्ग के लोग सम्मिलित थे। 

पटना के कुछ मौलवियों का लखनऊ के गुप्त संगठनों से पत्र व्यवहार चल रहा था। उनका दानापुर के सैनिकों से भी संपर्क हो चुका था। ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस वाले भी क्रांतिकारियों का सहयोग कर रहे थे। दानापुर के सैनिक भी वृक्षों के नीचे गुप्त बैठकें किया करते और क्रांति की योजना बनाते थे।

दानापुर के सैनिक मेरठ सैनिकों के असन्तोष के बारे में जानते थे, परन्तु वे अवसर की प्रतिक्षा में थे। टेलर को पता चला कि दानापुर के सैनिकों में असन्तोष व्याप्त है, तो उसने विस्फोट होने से पूर्व ही उसे कुचलना उचित समझा। इसके लिए उसने तुरन्त प्रभावशाली कदम उठाए, जिसके कारण वहाँ क्रांति भीषण रूप धारण नहीं कर सकी। हाँ, 3 जुलाई 1857 को एक छोटी सी क्रांति अवश्य हुई, जिसे ब्रितानियों ने सिक्ख सैनिकों की सहायता से कुचल दिया।

1857 ई. की क्रान्ति की शुरुआत बिहार में 12 जून 1857 को देवधर जिले के रोहिणी नामक स्थान से हुई थी। यहाँ 32वीं इनफैन्ट्री रेजीमेण्ट का मुख्यालय था एवं पाँचवीं अनियमित घुड़सवार सेना का मेजर मैक्डोनाल्ड भी यहीं तैनात था। इसी विद्रोह में लेफ्टीनेंट नार्मल लेस्ली एवं सहायक सर्जन ग्राण्ट लेस्ली भी मारे गये थे।

इस विद्रोह में तीन सैनिक सम्मिलित थे जिनका नाम शहीद अमानत अली, शहीद सलामत अली और शहीद शेख हारो था, ये तीनों 1857 के दौरान अस्थायी 5वीं घुड़सवार फ़ौज में सिपाही के हैसियत से तैनात थे. 12 जून 1857 को अजीमुल्लाह खाँ के मुखबिरों के ज़रिये मेरठ में हुई सिपाहियों की बगावत एवं उनकी शहादत की खबर जैसे ही रोहिणी के फौजी छावनी में पहुंची, इन तीनो सिपाहियों ने बग़ावत का बिगुल फूंक दिया.

तीनों शहीदों ने यहाँ तैनात मेजर मैकडोनाल्ड एवं उनके दो साथी अफसर नार्मन लेसली तथा डॉ. ग्रांट को उनके घर पर चाय पीते हुए घेर लिया. लेसली इस हमले में मारा गया लेकिन अन्य दो घायल वहां से भागलपुर मुख्यालय भागने में सफल रहे।

भागलपुर मुख्यालय ने इसके बाद और फ़ौज भेजकर रोहिणी के सिपाही विद्रोह को बर्बरतापूर्वक कुचल दिया. रोहिणी में ही इन तीनों सैनिकों का कोर्ट मार्शल हुआ और 16 जून 1857 को आम के पेड़ पर लटकाकर फांसी दे दी गई थी। (लेख – पीर अली खान Peer Ali Khan)

शीघ्र ही पटना की स्थिति बिगड़ने लगी। पटना तथा दानापुर आदि स्थानों पर क्रांति की योजनाएँ बनने लगीं। जगदीशपुर के शासक कुँवर सिंह का नाना साहब से संपर्क था। हरकिशन सिंह और उनके समर्थक दानापुर छावनी में बिहार के सिपाहियों में क्रांति की भावना का प्रसार कर रहे थे। पटना के पीर अली मुसलमानों को संगठित कर रहे थे।

पटना के कमिश्नर एस. टेलर का यह मानना था कि बिहार में क्रांति का प्रसार निश्चित रूप से होगा। अतः उसने पुरे बिहार में सी.आई.डी. का जाल बिछा दिया। इसी समय उसे यह सूचना प्राप्त हुई कि तिरहुत ज़िले का पुलिस जमादार वारिस अली ब्रितानियों का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने क्रांतिकारियों से अपना संपर्क स्थापित कर रखा था। एक सरकारी पदाधिकारी का विद्रोहियों का साथ देना सरकार की नज़र में राजद्रोह था।

सरकारी आदेश से उनके मकान को घेर लिया गया, उस समय वे गया के अली करीम नामक क्रांतिकारी को पत्र लिख रहे थे। इस छापे में उनके घर से बहुत आपत्तिजनक पत्र प्राप्त हुए। इसको आधार बनाकर 23 जून, 1857 ई. को उनको गिरफ़्तार कर मेजर होम्स के पास भेज दिया गया।

मेजर होम्स ने उस दानापुर कचहरी के कमिश्नर के पास भेज दिया। वहाँ उन पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें मृत्यु दंड की सजा दी गई। 3 जुलाई, 1857 ई. को वारिस अली को फाँसी पर लटका दिया गया। (लेख – पीर अली खान Peer Ali Khan)

वारिस अली अपने वतन को बहुत प्यार करते थे। अतः उसके लिए उन्होंने अपनी ज़िंदगी तक कुर्बान कर दी। अनेक क्रांतिकारियों को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया गया। नागरिकों के हथियार लेकर चलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। रात को नौ बजे घर से निकलने पर रोक लगा दी गई और कर्फ्यू लगा दिया गया। परिणाम स्वरूप क्रांतिकारी रात्रि को मीटिंग नहीं बुला सकते थे। (लेख – पीर अली खान Peer Ali Khan)

बिहार के ही एक प्रमुख मुस्लिम क्रांतिकारी परी अली के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। वे सिर्फ़ मुसलमानों के ही नेता नहीं थे, अपितु उन्हें समस्त क्रांतिकारियों का विश्वास एवं समर्थन प्राप्त था।

या ये कहें की जिस तरह ‘अज़िमुल्लाह खाँ’ के नाम का ज़िक्र किये बग़ैर पुरे भारत मे हुए 1857 कि क्रांती का इतिहास अधुरा है ठीक उसी तरह ‘पीर अली ख़ान’ के कारनामो का ज़िक्र किये बग़ैर बिहार मे हुई 1857 कि क्रांती अधुरी है … 1857 ई. के सिपाही विद्रोह में ‘वहाबी’ लोगों ने प्रत्यक्ष रूप से विद्रोह में न शामिल होकर अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लोगों को भड़काने का प्रयास किया।

पर पीर अली खान (Peer Ali Khan) और उनके साथियो ने 1857 में इस आन्दोलन का नेतृत्व किया था, क्योकि वो खुद इससे जुड़े थे इनकी नुमाइंदगी “उलमाए सादिक़पुरीया” करते थे। (लेख – पीर अली खान Peer Ali Khan)

पीर अली बचपन में ही आजमगढ़ से पटना आकर बस गए थे वो आजमगढ़ के मुहम्मदपुर में पैदा हुवे थे। पटना में उन्हें जमींदार नवाब मीर अब्दुल्लाह ने अपने बेटे लुत्फ़ अली के साथ पाला, और पटना में ही उनकी पढाई पूरी हुई जहां उन्होंने उर्दू , फ़ारसी और अरबी सीखा , आजीविका के लिए उन्होंने नवाब की मदद से किताब ब्रिकी का कारोबार शुरू किया।

वे चाहते तो अन्य काम भी कर सकते थे, पर उनका मुख्य उद्देश्य लोगों में क्रांति संबंधित पुस्तकों का प्रचार करना था। वे पहले पुस्तक पढ़ते और इसके बाद दूसरों को पढ़ने के लिए देते थे। वह पुरुष धन्य है, जो अपने ज्ञान को अपने तक ही समिति नहीं रखकर समस्त जनता को लाभान्वित करता है। (लेख – पीर अली खान Peer Ali Khan)

पीर अली खान (Peer Ali Khan) हिंदुस्तान को गुलामियों की बेड़ियों से आज़ाद करनवाना चाहते थे। उनका मानना था कि गुलामी से मौत ज्यादा बहेतर होती है। उनका दिल्ली तथा अन्य स्थानों के क्रांतिकारियों के साथ बहुत अच्छा सम्पर्क था। वे अजीमुल्लाह खान से समय-समय पर निर्देश प्राप्त करते थे। जो भी व्यक्ति उनके सम्पर्क में आता, वह उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता था। (लेख – पीर अली खान Peer Ali Khan)

गरचे वे साधरण पुस्तक विक्रेता थे, फिरभी उन्हें पटना के कद्दावर लोगो का समर्थन प्राप्त था। क्रांतिकारी परिषद्, पर उनका अत्यधिक प्रभाव था। उन्होंने धनी वर्ग के सहयोग से अनेक व्यक्तियों को संगठित किया और उनमें क्रांति की भावना का प्रसार किया। लोगों ने उन्हें यह आश्वासन दिया कि वे ब्रिटिशी सत्ता को जड़मूल से नष्ट कर देंगे। जब तक हमारे बदन में खून का एक भी रहेगा , हम फिरंगियों का विरोध करेंगे, लोगों ने कसमे खाईं। (लेख – पीर अली खान Peer Ali Khan)

वारिस अली की कुर्बानी के बाद सारे प्रांत में क्रांति की लहर फैल गई।

3 जुलाई को पीर अली खान (Peer Ali Khan) के घर सब मुसलमान इकट्‌ठे हुए और उन्होंने पूरी योजना तय की। 200 से अधिक हथियारबंद लोगो की नुमाइंदगी करते हुए पीर अली ख़ान (Peer Ali Khan) ने गुलज़ार बाग मे स्थित प्राशासनिक भवन पर हमला करने को ठानी जहां से पुरे रियासत पर नज़र राखी जाती थी।

ग़ुलाम अब्बास को इंक़लाब का झंडा थमाया गया , नंदू खार को आस पास निगरानी की ज़िम्मेदारी दी गई, पीर अली ने क़यादत करते हुवे अंग्रेज़ो के खिलाफ ज़ोरदार नारेबाज़ी की पर जैसे ही ये लोग प्राशासनिक भवन के पास पहुंचे , डॉ. लॉयल हिंदुस्तानी(सिख) सिपाहियों के साथ इनका रास्ता रोकने पहुंच गया. डॉ. लॉयल ने अपने सिपहयों को गोली चलने का हुकुम सुनाया , दोतरफा गोली बारी हुयी जिसमे डॉ. लॉयल मारा गया , ये ख़बर पुरे पटना में आग के तरह फैल गई.

पटना के कमिश्नर विलियम टेलर ने भीड़ पर अँधा दून गोली बरी हुक्म दिया जिसके नतीजे में कई क्रन्तिकारी मौके पर ही शहीद हो गए और दर्जनों घायल, फिर  इसके बाद जो हुआ उसका गवाह पुरा पटना बना , अंग्रेज़ो के द्वारा मुसलमानो के एक एक घर पर छापे मारे गए , बिना किसी सबुत के लोगो को गिरफ़्तार किया गया।

शक के बुनियाद पर कई लोगो क़त्ल कर दिया गया बेगुनाह लोगो मरता देख पीर अली ने खुद को फिरंगियों के हवाले करने को सोची इसी सब का फायदा उठा कर पटना के उस वक़्त के कमिश्नर विलियम टेलर ने पीर अली ख़ान (Peer Ali Khan) और उनके 14 साथियों को 5 जुलाई 1857 को बग़ावत करने के जुर्म मे गिरफ्तार कर लिया। (लेख – पीर अली खान Peer Ali Khan)

चूँकि पीर अली खान और उनके साथियो ने 1857 में ‘वहाबी’ आन्दोलन का नेतृत्व किया था, क्योकि वो खुद इससे जुड़े थे ,  इनकी नुमाइंदगी “उलमाए सादिक़पुरीया” करते थे. इस लिए इनके मदरसे और बस्ती पर बिल्डोज़र चला दिया गया और बिल्कुल बराबर कर दिया गया , और सैंकड़ों की तादाद मे लोग काला पानी भेज दिए गए .. अंगरेज़ अपनी तरफ से पूरा बन्दोबस्त कर चुका था इसमे उस को कई साल लगे ॥

कमिश्नर विलियम ने पीर अली से कहा ‘अगर तुम अपने नेताओँ और साथियों के नाम बता दो तो तुम्हारी जान बच सकती है’ पर इसका जवाब पीर अली ने बहादुरी से दिया और कहा ‘ज़िँदगी मे कई एसे मौक़े आते हैँ जब जान बचाना ज़रुरी होता है पर ज़िँदगी मे ऐसे मौक़े भी आते हैँ जब जान दे देना ज़रुरी हो जाता है और ये वक़्त जान देने का ही है..

“हाथों में हथकड़ियाँ, बाँहों में ख़ुन की धारा, सामने फांसी का फंदा, पीर अली के चेहरे पर मुस्कान मानों वे सामने कहीं मौत को चुनौती दे रहे हों। महान शहीद ने मरते-मरते कहा था, “तुम मुझे फाँसी पर लटका सकते हों, किंतु तुम हमारे आदर्श की हत्या नहीं कर सकते। मैं मर जाऊँगा, पर मेरे ख़ुन से लाखो बहादुर पैदा होंगे और तुम्हारे ज़ुलम को ख़त्म कर देंगे।” कमिश्नर टेलर ने लिखा है कि पीर अली ने सज़ाए मौत के वक़्त बड़ी बहादुरी तथा निडरता का एहसास दिलाया।

लेकिन ये भी सच है की पीर अली खान (Peer Ali Khan) की मौत का बदला “उल्माए सदिकपुरिया” ने लिया । (लेख – पीर अली खान Peer Ali Khan)

शहादत

अंग्रेजी हुकूमत ने 7 जुलाई, 1857 को पीर अली के साथ घासिटा, खलीफ़ा, गुलाम अब्बास, नंदू लाल उर्फ सिपाही, जुम्मन, मदुवा, काजिल खान, रमजानी, पीर बख्श, वाहिद अली, गुलाम अली, महमूद अकबर और असरार अली को बीच सड़क पर फांसी पर लटका दिया था।

दूसरा ट्रायल जुलाई 13, 1857 को होता है जिसमे घसीटा डोमेन , कल्लू खान और पैगम्बर बख्श को फांसी पर लटका दिया जाता है , अशरफ अली को 14 साल की जेल होती है .

तीसरा ट्रायल अगस्त 8, 1857 को होता है जिसमे औसफ हुसैन और छेदी ग्वाला को फांसी पर लटका दिया जाता है , शेख नबी बख्श, रहमत अली व दिलावर को आजीवन कारावास की सजा होती है और ख्वाजा आमिर जान को 14 साल की जेल होती है .

उनकी मौत की खबर सुनकर दानापुर की फौजी टुकड़ी ने 25 जुलाई को बग़ावत कर दिया। (लेख – पीर अली खान Peer Ali Khan)

बिहार सरकारने सहीद दिवस मनाया

शहीद पीर अली ख़ान (Peer Ali Khan) को याद करते हुए बिहार सरकार के द्वारा 2008 मे हर साल 7 जुलाई को शहीद दिवस के रूप मनाने का फैसला लिया गया था. मौजूदा सरकार आज भी इस बात पर क़ाएम है जो एक अच्छी बात है। (लेख – पीर अली खान Peer Ali Khan)

पथ का नाम पीर अली ख़ान रखा

Times of India के हिसाब से पटना हवाई अड्डे के पास “पीर अली ख़ान” के नाम पर एक पथ का नाम भी रखा गया था। (लेख – पीर अली खान Peer Ali Khan)

श्रद्धांजलि  कार्यक्रम

2015 मे पीर अली के 158वें शहादत दिवस पर हुए कार्यक्रम में माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमारने दी। (लेख – पीर अली खान Peer Ali Khan)

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