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नाम:- ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह (Brigadier Rajinder Singh)
प्रसिद्ध नाम :- NA
Father’s Name :- NA
Mother’s Name :- NA
Domicile :- NA
जन्म:- 14 जून 1899
जन्म भूमि :- NA
शिक्षा :- NA
विद्यालय :- जीजीएम साइंस कालेज
शहादत :- NA
शहादत स्थान :- NA
समाधिस्थल:- युद्ध में गुम (मृत घोषित)
सेवा/शाखा :- भारतीय थल सेना
सेवा वर्ष :- NA
रैंक (उपाधि) :- ब्रिगेडियर (Brigadier)
सेवा संख्यांक (Service No.) :- 2
यूनिट :- जम्मू और कश्मीर राज्य बल
युद्ध/झड़पें :- 1947 का भारत-पाक युद्ध,
सम्मान :- महावीर चक्र 1950 (Republic Day)
नागरिकता :- भारतीय
सम्बंध :- NA
अन्य जानकारी :- NA
ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह (Brigadier Rajinder Singh) इतिहास
कश्मीर अपने निर्माण काल से ही भारत के लिए एक सरदर्द की तरह है. भारत के इस हिस्से पर पाकिस्तान अपना दावा करता आया है और इस दावेदारी की कीमत पिछले 71 साल में करोड़ों लोगों अपनी जानें गंवा कर चुकानी पड़ी है. वर्तमान में कश्मीर जिस स्थिति में है या जिस दौर से गुज़र रहा है उसके लिए अनेक व्यक्ति जिम्मेवार हैं लेकिन उस व्यक्ति को शायद ही कोई याद करता है जिसके बूते भारत जम्मू कश्मीर को अपना अभिन्न अंग बताता है .ये शख्स थे राजेंद्र सिंह (Brigadier Rajinder Singh) जम्ब्वाल।
राजेंद्र सिंह (Brigadier Rajinder Singh) जम्वाल का जन्म 14 जून, 1899 में हुआ और जम्मू के जीजीएम साइंस कालेज से अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद राजेंद्र सिंह (Brigadier Rajinder Singh) से कश्मीर सशस्त्र सेना में भर्ती होने के लिए प्रयास करने लगे और जल्द ही अपनी निष्ठा और लगन के दम पर वे सेना में चुन लिए गए | अपने कठिन परिश्रम और अनुभव के दम पर वे 21 जून, 1921 को कश्मीर सेना के ब्रिगेडियर पद तक पहुँच गए।
कश्मीर को जबरन हथियाने के अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए पाक सेना के कबायली लड़ाकों के साथ मिलकर 22 अक्टूबर, 1947 को कश्मीर पर हमला कर दिया | महाराजा हरिसिंह को पहले ही इसका अंदेशा हो गया था और उन्होंने अपने मंत्री को भारत से सैन्य सहायता लाने के लिए भेजा, मगर नेहरू जी ने ये कहते हुए इंकार कर दिया कि भारतीय सेना भारत की सीमाओं की रक्षा के लिए है और कश्मीर भारत का अंग नहीं है अगर कश्मीर बिना किसी शर्त के भारत में शामिल होने की घोषणा करता है तो भारत की सेना मदद के लिए भेजी जा सकती है|
22 अक्टूबर, 1947 को कश्मीर पर हमला करके रावलकोट, चिकोटी और मुजफ्फराबाद सहित कश्मीर का दो तिहाई हिस्सा अपने कब्जे में कर लिया और पाकिस्तानी फ़ौज श्रीनगर से महज 164 किमी दूर थी ऐसे में कश्मीर के सेनाध्यक्ष राजेंद्र सिंह (Brigadier Rajinder Singh) जम्वाल ने महाराजा हरिसिंह से आग्रह किया कि वे जंग में जाने का विचार त्याग कर वक़्त की नजाकत को समझें और कश्मीर के भारत में विलय को जल्द से जल्द स्वीकार करने का कार्य करें अन्यथा पाक सेना सम्पूर्ण कश्मीर पर कब्ज़ा कर लेगी | जब तक भारत की सेना मदद के लिए नहीं आती तब तक मैं पाक सेना को रोक कर रखूँगा।
जब ब्रिगेडियर जम्वाल को जानकारी मिली कि पाक सेना मुजफ्फराबाद के निकट आ गई है तो मात्र 100 सैनिकों के साथ ब्रिगेडियर जम्वाल ने 6 हज़ार की पाक सेना को कश्मीर से बाहर खदेड़ने निकल पड़े और सबसे पहले उन्होंने बिना समय गंवाए उरी और बारामूला को श्रीनगर से जोड़ने वाले पुल को धमाके से उड़ा दिया जिससे दुश्मन सेना दो दिन तक आगे नहीं बढ़ सकी| 23 से 27 अक्टूबर, 1947 तक जम्वाल और पाकिस्तानी सेना में भयंकर युद्ध हुआ | ब्रिगेडियर जम्वाल ने ‘गोरिल्ला युद्ध पद्धति’ अपनाकर पाकिस्तान की सेना और कबायलियों को नाकों चने चबाने को मजबूर कर दिया| उन्होंने उरी नाले के पास अपनी सेना की एक टुकड़ी को तैनात किया और खुद गढ़ी की ओर निकल पड़े।
27 अक्टूबर, 1947 का दिन था जब ब्रिगेडियर जम्वाल ने सैनिकों के साथ मिलकर सेरी के पुल पर मोर्चा संभाला | वहां पर कबायलियों और पाक सेना द्वारा कश्मीरी सैनिकों के वाहनों पर अन्धाधुन्ध गोलियाँ बरसाई गई जिसमें दुश्मनों से जूझते जूझते ये वीर सपूत सदा सदा के लिए चिरनिद्रा में लीन हो गया और अपने पीछे छोड़ गया अपना स्वर्णिम इतिहास।
ब्रिगेडियर जम्वाल ने अपनी कुशल रणनीति और अदम्य शौर्य से दुश्मनों को आगे नहीं बढ़ने दिया और जब तक जम्वाल वीरगति को प्राप्त हुए भारत की सेना ने आकर मोर्चा संभल लिया और देखते ही देखते पाक सेना और कबायलियों के पैर उखड़ने लगे, बड़ी संख्या में सैनिक मरे गए और शेष भारतीय सेना के भय से पीछे हट गए| ब्रिगेडियर जम्वाल के कारण कश्मीर का यह भाग सदा सदा के लिए भारत का अभिन्न अंग बन गया।
18 अक्टूबर, 1947 को महाराजा हरिसिंह ने भारत के प्रतिनिधि माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर के साथ हुए विचार विमर्श के दौरान ही भारत में जम्मू-कश्मीर के विलय पर अपनी सहमति दे दी थी और अंततः 26 अक्टूबर, 1947 को महाराजा हरिसिंह ने भारत में जम्मू-कश्मीर के विलय पर सहमति देते हुए सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए और इसी के साथ ब्रिगेडियर जम्वाल की भारत में कश्मीर के विलय की मंशा भी पूरी ही गई।
30 दिसम्बर, 1949 को राजेंद्र सिंह (Brigadier Rajinder Singh) जम्वाल की पत्नी रामदेई को भारत सरकार की ओर से महावीर चक्र प्रदान कर सम्मानित किया गया | राजेंद्र सिंह (Brigadier Rajinder Singh) जम्वाल पहले व्यक्ति थे जिन्हें इस सम्मान से नवाजा गया| राजेंद्र सिंह (Brigadier Rajinder Singh) जम्वाल अपने शौर्य, अदम्य साहस, कुशल रणनीति, देशभक्ति और अपनी शहादत के साथ ही साथ कश्मीर को भारत में विलय कराने और पाक के नापाक इरादों को धुल में मिलाने वाले अमर नायक थे।
इसेभी देखे – पुरस्कार के बारे में (Gallantry Awards), परम वीर चक्र (PARAM VIR CHAKRA), महावीर चक्र (MAHAVIR CHAKRA), वीर चक्र (VIR CHAKRA), अशोक चक्र (ASHOKA CHAKRA), कीर्ति चक्र (KIRTI CHAKRA), शौर्य चक्र (SHAURYA CHAKRA), ओर – ALAKHDHANI, ALL AARTI, BIPINKUMAR LADHAVA